Friday, December 26, 2008

शोले के महाराज


हमारे एक मित्र बनारस गये थे । उन्होने एक वाक्या सुनाया ..अच्छा लगा इसलिये आपलोगों के साथ भी शेयर कर रहा हूँ। सन १९७५ में शोले फिल्म की तैयारी चल रही थी ..जिपी सिप्पी इसे एक अनोखी फिल्म बनाना चाहते थे । खैर फिल्म अनोखी बनी भी । फिल्म के सीन में उन्हें घोडों के टाप की जीवंत आवाज चाहिये थी । लोगों ने सलाह दिया कि ऐसी आवाज तो बनारस के गोदइ महाराज के ही वश में है । सिप्पी ने उस महाशय से पूछा कितना पैसा लगेगा। खैर तीन चार लाख से अधिक भी सिप्पी देने को तैयार थे । गोदइ महाराज को इत्तला दी गयी कि बंबइ के बहुत बडे फिल्म मेकर अपनी फिल्म में आपके पास तबला बजवाने के लिये आ रहे है । स्वभाव से बेहद कंजूस गोदइ महाराज तैयार बैठे थे सिप्पी के लिये । सिप्पी बनारस पहुंचकर चल दिये गोदइ महाराज के यहां । महाराज ने सिप्पी साहब को अपने ड्रांइग रुम में बिठाया । ज्यादा बिजली के बील की खपत ना हो इसलिये वहां शून्य वाट का ही बल्ब हमेशा जलता था । सिप्पी साहब ने कहा महाराज फिल्म में आपसे तबले की थाप बजवानी है । महाराज बोले कि भाइ तबला बजवाना हो तो ठिक है और अगर खंजरी बजवाना हो तो सामने किशनवा ( किशन महाराज ) रहता है चले जाओं उसके पास । सिप्पी साहब ने कहा नही महाराज हम तो आप के पास आये है जितना आपको पैसा चाहिये ले लें। महाराज ने सोचा बढिया मुल्ला फँसा है ..बोले भाइ ४० हजार लूंगा । सिप्पी साहब ने हां कर दी । महाराज को लगा कि कितना बडा मूर्ख है । तुरंत मान गया ...ठिक है भाइ मैं ट्रेन से नही प्लेन से बंबइ जायेंगे । सिप्पी साहब ने कहा कोइ बात नही । फिर अचरज में पड गये महाराज ...बोले भाइ सिप्पी ऐसा करों कि ८ आदमी के प्लेन का भाडा मुझे नकदी दे दों । नकद पैसे भी मिल गये उन्हें। महाराज ने फिर कहा कि भाइ वहां फाइव स्टार होटल में हम लोग पांच दिन रुकेंगे । सिप्पी साहब ने कहा ठिक है । महाराज ने कहा कि उसका भी भाडा नकदी दे दो। वो पैसे भी मिल गये । सिप्पी साहब चले गये बंबइ। महाराज ने कहा कि कितना बडा मूर्ख है आसानी से ठगा गया । चय समय पर उन दिनों महाराज ने अपनी टीम के साथ ट्रेन में थर्ड क्लास का टिकट कटा कर पहुंच गये मुंबइ ..वहां उनका भतीजा रहता था उसी के यहां महाराज टिक गये । अमुक दिन पर महाराज को स्टूडियों ले जाया गया । सिप्पी साहब को बताया गया कि जब महाराज ट्रायल ले आप रिकार्डिंग आन कर दिजीयेगा। महाराज अपने तबले की थाप से सुनाने लगे ...देखो एक घोडा दौडेगा तो कैसे बजेगा ..और कइ घोडे दौडेंगे तो थाप क्या होगा । खैर रियाज खत्म हुआ ..तबतक रिकार्डिंग पूरी हो चुकी थी ।महाराज बोले चलो भाइ अब रिकार्ड करों मेरा रियाज खत्म हो गया । सिप्पी साहब ने कहा कि महाराज मेरा काम हो चुका अब आप चाहें तो जा सकते है । खैर सिप्पी साहब को फिल्म में एक ही घोडे को दौडाना था तबले की थाप पर ..लेकिन महाराज के अनोखे तबले की थाप ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होने फिल्म में सामूहिक घोडे के दौडने की भी आवाज को परदे पर दिखाया ।

Monday, December 8, 2008

दलों के लिये आंखे खोलने वाला है यह परिणाम







( कुमार आलोक said... ) मुंबइ में आतंकी हमले के बाद मेरे एक पत्रकार मित्र ने दिल्ली से फोन किया मैं उस समय पटना में था । कांग्रेस निपट गइ भइया ..चारो स्टेट में बीजीपी को क्लीयर मैंडेट मिल गया । मेरा दोस्त बडे चैनल में है । हमें लगा कि सचमुच कांग्रेस के लिये यह कांड वाटरलू साबित हो गया । कुछ देर बाद मैं एक दोस्त के दूकान पर गया ..हमसे सीनियर है पेंट और लोहा लक्कट की छोटी दूकान चलाते है । मैने कहा भइया कांग्रेस निपट गइ दिल्ली से फोन आया है । उन्होने कहा कैसे । मैने बोला आतंक की जो घटना हुइ है मुंबइ में पव्लिक उसी के चलते काग्रेस के खिलाफ वोट देगा ।ज्यादा पढे लिखे नही है भइया बोले बाबू चुनाव में यह मुद्दा ही नही रहेगा ..लोगों के अपने स्थानिय मुद्दे होते है । यहां तो कांग्रेस के राज में होटल में आतंकी घटना हुइ ..उनके राज में तो संसद में ही आतंकी घुस गये थे । खैर ८ तारिख को पता चलेगा कि मेरे भाइ साहब सही थे चा फिर मेरा पत्रकार दोस्त ।
December 6, 2008 7:36 PM)
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मैनें यह कमेंट रविश कुमार जी के व्लाग पर ६ दिसंबर को लिखा था । अब जबकि चुनाव परिणाम सामने है ..तो यह कहा जा सकता है कि देश का आम आदमी हम तथाकथित बुद्धीजीवियों से बेहतर पालिटिकल नालेज रखता है । पांचों राज्यों के चुनाव परिणाम ने यह साबित किया कि अगर कहीं गुड गर्वँनेंस है तो मतदाता उसको दुबारा सत्ता की सीढी पर आसानी से चढा देगा । बीजीपी ने आतंकवाद को मुद्दा बनाया , इंटरनल सिक्यूरीटी ...और पोटा जैसे मुद्दे शायद जनता के गले नही उतरे । दिल्ली में इस भरोसे पर रहे कि बीएसपी कांग्रेस का बैंड बजा देगी जिसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलेगा यह भी आकलन गलत साबित हुआ ...और इसका उल्टा असर यह हुआ कि अल्पसंख्यक समुदाय पूरी गोलबंदी के साथ बीजेपी के खिलाफ हो गया । दिल्ली चुनाव के रोज जिस तरह के विग्यापन अखबारों में छपे कि आतंक की सरकार को वोट मत दें शायद वोटरों का टर्नआउट शीला जी के लिये सहानुभूती का सबब बन गया । खैर ये तो दिल्ली की बात हुइ । अगर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ की बात करें तो यह जीत बीजेपी के लिये ऐतेहासिक ही नही बल्कि यादगार है । अजीत जोगी जो स्वंयभू मुख्यमंत्री बनकर रमन सिंह को लबरा राजा का खिताब दे रहे थे ..जनता ने बता दिया कि लबरा यानि झूठा कौन है ? अजीत जोगी , श्यामाचरण शुक्ल और महेंद्र करमा एक दूसरे खो फूटी आंख नही देखना चाहते । रमन सिंह ने बडे पैमाने पर निवर्तमान विधायकों के टिकट काटकर युवाओं को मौका दिया ..लेकिन कांग्रेस यह हिम्मत नही दिखा पाइ । चुनाव परिणामों ने रमन सिं को बडा नेता बना दिया है । रही बात मध्यप्रदेश की रही वहां भी कांग्रेस खेमों में बंटी रही और शिवराज सिंह के कद में कोइ भी कांग्रेसी टिक नही पाया । शिवराज ने अपने कार्यकाल में बोला कम और किया ज्यादा .. मध्यप्रदेश के एक बडे कांग्रेसी नेता ने हमें बताया कि शिवराज सिंह व्यक्तिगत रुप से इमानदार है भले ही उनके मंत्रीमंडलीय सहयोगी भ्रष्ट ।लेकिन जनता ने इमानदार कप्तान पर पूर्ण भरोसा किया । रहीं बात राजस्थान की अगर वहां भी कांग्रेसी गुटों में नही बंटे रहते तो परिणाम कुछ और होता । एक बात इस चुनाव परिणाम से और उभकर सामने आइ कि मोदी अगर कद्दावर हाल में कद्दावर नेता बनकर उभरे है सिर्फ इस बिना पर कि गुजरात में लगातार तीसरी बार अपने दम पर भाजपा को उन्होने सत्ता में वापस लाया है तो कल के लिये शिवराज सिंह और रमन सिंह भी पार्टी के स्टार कंपेनर हो सकते है । और बात करें मिजोरम की तो वहां एंटी इंकंबेन्सी के फैक्टर ने कांग्रेस को शानदार जीत दिलवाइ । अंत में यह कहा जा सकता है कि कि बढिया काम करोगे जनता के नजदीक रहोगे तो इनाम अवश्य मिलेगा ..हाल के वर्षों में जो ट्रेन्ड रहा है चुनाव परिणामों का हालिया चुनावों में बदला है । तवक्कों की जानी चाहिये की राजनीति में अच्छे और पढे लोग जो सेवा की भावना को लेकर राजनीति की चौखट पर आये है उन्हें जनता सर आंखो पर बिठाएगी ।

Monday, November 17, 2008

छत्तीसगढिया सबले बढिया


एक बार आया था छत्तीसगढ ..थोडा दिन रायपुर में रुका और चला गया था । इस बार लगभग आधा छत्तीसगढ घूम गया । चुनाव कवर करने आया हूं। कांग्रेस और भाजपा यहां के प्रमुख राजनैतिक दल है ..लेकिन अगर नेताओं की बात करें तो बडे नेता या कहे कि उंची रसूख रखने वाले नेता यहां के बाहर के है । यहां की मूल जाति हाशिये पर है । बस्तर के पूरे इलाके में आदिवासियों का हथियार उठाना ये साबित करता है कि उन्हें राजनैतिक दलों से कोइ आशा नही रह गयी है । नया राज्य बनने के बाद यहां की अर्थव्यवस्था पर विल्डरों और प्रापर्टी डिलरों का लगभग कब्जा हो गया है । बिलासपुर के आसपास बडे कारखाने पर्यावरण कानूनों की धज्जीया उडा रहे है और सरकारी टैक्स की भी जमकर चोरी कर रहे है । अग्रवाल , खंडेलवाल , पाणडेय , चौबे आदि का राजनैतिक और सामाजिक रसूख है । विधानसभा के सदर प्रेम प्रकाश पांडे भिलाइ से जीतते है और रहने वाले गोरखपुर के है ..हालांकि अब वे यहां के निवासी हो चुके है । वैशालीनगर विधानसभा हल्के में गया ..वहां भाजपा की तेजतर्रार नेत्री सरोज पांडे का मुकाबला कांग्रेस के ब्रजमोहन सिंह से है ..सरोज वाराणसी की और ब्रजमोहन उन्नाव के ..वहां लड रहे चौदह प्रत्याशियों में १२ बनारस से है । मुख्यमंत्री रमन सिंह का मुकाबला वहां दो बार विधायक रह चुके उदय मुदलियार से है ..जानकर बडा आश्चर्य हुआ कि मुदलियार का पैत्रिक निवास तमिलनाडू में है । आदिवासियों के एक गांव में गया ..बडी दीन हिन स्थिती में गुजर बसर करने पर मजबूर है ...ऐसा लगभग प्रत्येक आदिवासी गांवों में आपको देखने को मिलेगा । परसापानी गांव का नाम है ..विलासपुर जिले में है । जब वहां के गिने चुने हैंडपंपों से पानी निकलना बंद हो जाता है तो ग्रामवासी एक गंदे पानी के नाले को रेत का मोटा बांध बांधकर बांध के दूसरी तरफ से बालू को खोदकर पानी पीते है ...वो पानी फिल्टर हो जाता है ...विल्कुल शुद्ध पानी की तरह हमने भी पीया ..मीठा लगा । सरकारों ने खूब योजनाए बनायी आदिवासियों के कल्यान के लिये ..लेकिन ऐसा लगता है कि उन योजनाओं के पैसे सेठ ., दलाल , साहूकारो और पालिटिसीयन की तिजोरियों में पहुंच गयी । ऐसे लोगों के घरों को हमने देखा ..आवाक रह गये ।

Tuesday, October 28, 2008

फिल्म इंडस्ट्री को कमजोर किजीये ..एमएनएस को जबाब मिल जाएगा ।

एम एन एस का नामलेवा कोइ नही था ..बिहार के कतिपय नेताओं ने राज को अमर कर दिया , कांग्रेस को लगता है कि राज को प्रोत्साहित करने से शिवसेना का वोट बंटेगा और आनेवाले चुनावों में कांग्रेस इसका फायदा उढा लेगी । बिहार के विद्यार्थियों के साथ जो कुछ भी मुंबइ में हुआ वह भारत की अखंडता और एकता पर हमला है । यह देश किसी के वाप की जागिर नही है और कोइ भी व्यक्ति या पार्टी संविधान से उपर नही है । सोमवार का इनकांउटर भी महाराष्ट्र पुलिस की विभत्स तस्वीर को बयां करता है । बिहार के छात्रों ने जिस प्रकार से बिहार में तांडव मचाया उसकी भी जितनी निंदा की जाए कम है । उनके उग्र होने से खासकर वैसे लोगों को खासी परेशानियों का सामना करना पडा जो बडी मशक्कत से दो महिने पहले से अपनी टिकट रिर्जव करा अपने घरों को लौट रहे थे । राज का सामना या शिवसेना का जबाब यही हो सकता है ..जितना भी औकात बिहार और यूपी के लोगों में है उसका इस्तेमाल करों और सिनेमाघरों में हिन्दी फिल्मों के प्रदर्शन पर रोक लगाओं । तालाबंदी करो सिनेमा हाल और पीवीआर में । कम से कम बिहार और यूपी में तो लोग ऐसा कर ही सकते है । फिल्म इंडस्ट्री जैसे ही रसातल की ओर जाते दिखेगी ..राज तो क्या ..रिजनल राजनीति करने वालों की महाराष्ट्र में दुकानदारी बंद हो जाएगी । वहां की स्थानिय जनता ही राज और शिवसेना को उसकी औकात बता देगी ।

Monday, October 27, 2008

रविश कुमार मीडिल क्लास के नही लगते ?


रवीश कुमार को जानता था ..एनडीटीवी के बाद उनकी खबरों और रपटों को भी देखने लगा । इलैक्ट्रानिक मीडिया में वैसे भी खबरें कहां होती है ...रावण ने यहीं अपने पांव रखे थे ..सरक गयी चुनरी रैंप पर ..खैर इसमें तह तक जाने की आवश्यकता नही । एक दिन हाफ एन आवर रवीश कुमार का आ रहा था ..मेरे कुछ पत्रकार दोस्त जो मेरे साथ काम करते है ..बोले आलोक देखो यार बहुत अच्छी डाक्यूमेंट्री है ..मैं टीवी से चिपका ...कुछ लोग रविश कुमार के नाम से चिढते थे ..पहले तो उन्होने कहा बंद करो टीवी ..चैनल चेंज करों ..जाहिर था वो सब मेरे मित्र अंग्रेजी जर्नलिस्ट थे ..हमारे यहां आधे आधे घंटे पर हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में बुलेटिन प्रसारित होता है । खैर शुरु में तो उन अंग्रेजीदा पत्रकारों ने विरोध किया ..लेकिन जैसे जैसै कहानी आगे बढी ..सब के सब टीवी से चिपक गये । बात मीडिल क्लास के महानगर के समंदर में खो जाने की थी । एंकर कहता है कि मेरे चाचा ने अपनी बेटी की शादी के लिये गांव में कर्ज लिया था ...बडी जगहंसाइ हुइ थी ..कारें गिने चुने लोगों के पास होती थी ..लेकिन अब आम है । आज मेट्रों में सब कुछ उपलब्ध है ..लोन का पहाड जो आम आदमी के हाथ लग गया है ..हर चीज उपलब्ध है लोन पर ....प्रोग्राम खत्म हुआ ..सब को बडा अच्छा लगा ...उसी रात को सब एक महफिल में जुटे ...दो तीन भारी भरकम पत्रकार भी मौजूद थे ..अब हम सब यही चर्चा करने लगें ..वाह वाह ..क्या हाफ एन आवर था रविश कुमार का ..कोइ लोन वाले प्रसंग का जिक्र करता ...कोइ बजाज स्कूटर पर बैठकर रविश कुमार के जर्नलिस्टिक ऐप्रोच का बखान करता तो कोइ कुछ और भी...महफिल का एक बडा वक्त रविशकुमार के नाम खर्च हो गया ..भारी भरकम में से एक ने कहा ...शायद वो दूसरे की प्रशंशा सुनकर लगभग आपे से बाहर हो चुके थे ... बोले ..शर्म आनी चाहिये ..आप लोगों को .. कुछ करना नही चाहते ..अगर करतें तो रविश कुमार भला किस खेत की मूली है ..हिंदी जर्नलिस्म में आखिर रखा ही क्या है ...हम बोल नही सकते थे ..क्यूंकि कुछ भी बोलना आफत को न्यौता देना था । खैर बाद में हमलोगों ने रविश कुमार दूसरे भी हाफएन आवर प्रोग्राम को देखा करते रहें । कस्बा में भी रविश साहब ऐसा लगता है कि मीडिल क्लास के सच्चे प्रणेता है ....बस एक दिन टीवी पर देखा रविश कुमार ..साला मैं तो साहब वन गया ..ये बात दीगर थी कि साहब बनकर तनें नही थी । कोर्ट ..और टू पीस एंड थ्री-पीस ..विल्कुल इलिट लग रहे थे ..आम नही ..एंकरिंग कर रहे है हो सकता है कि मजबूरी हो लेकिन इस भेष में रविश कुमार मीडिल क्लास के नही अभिजात्य वर्ग के प्रणेता लगते है ।

Sunday, October 5, 2008

सेल के सौजन्य से


रामविलास पासवान जी भी डाइनमिक नेता है । बिहार की सत्ता की कुंजी भले ही उनके हाथ से छि‍टक गइ हो लेकिन केंद्र में जिस विभाग के भी मंत्री होते है ॥उस विभाग से जनहित का काम लेना उन्हें बखूबी आता है । हाल में मैं उनके संसदीय हल्के हाजीपुर में पहुंचा ..गंगा ब्रीज को पार करते ही हर चौक चौराहे पर स्टील आथँरिटी आफ इन्डिया के सौजन्य से के बैनर लहरा रहे थे । उत्तर बिहार में बाढ की विभिषीका के बाद राहत और इमदाद में उनकी पार्टी लोजपा के साथ साथ सेल भी पूरी मुस्तैदी से अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहा है । वैसे तो पूरे बिहार में सेल और उसके अधिकारी या तो मुफ्त में स्वास्थ्य शिवीर लगाकर लोगों का हेल्थ चेकअप कर रहे है या मरीजों को मुफ्त में दवा वितरण कर रहे है और हाजीपुर के क्या कहने ..ये काम वहां व्यापक स्तर पर प्रत्येक स्थानों पर किये जा रहे है । घूमते हुए मैं एक गांव सुल्तान पुर पहुंचा ..वहां सेल ने दलित बाहुल्य आबादी में गरीबों के लिये शौचालयों का निर्माण कराया है । लगभग २० घरों में इन शौचालयों का निर्माण कराया गया है और प्रत्येक चार घरों में से एक पर चापाकल गाडे गये है । दो तीन घरों को छोड दें तो लगभग बाकि घरों में लोग अपने शौचालयों का इस्तेमाल शौचालय के लिये नही बल्कि इसका इस्तेमाल स्ट्रांगरुम के तौर पर कर रहे है । सभी के मकान कच्चे है इसलिये लोगों ने अपने घरों के गहने और किमती सामानों को शौचालयों में भरकर उनमें बजाप्ता ताला लगा रखा है ।शायद उनके लिये शौचालय से अधिक जरुरी एक अदद मकान की रही होगी ...लेकिन इंदिरा आवास योजना के तहत मिलने वाले सरकारी मकान इन गरीबों के बीच वितरीत नही किये गये है । प्रत्येक चार मकानों पर एक चापाकल होने से पानी भरने के लिये यहां रोज दंगा फसाद होते है । राजस्थान जैसे राज्य में सुना था कि कि वहां के गांवों में दवंग लोग दलितों को अपने कुंए से पानी नही लेने देते ॥लेकिन यहां तो दलित बस्ती में रहने वाले दलित भाइ ही एक दूसरे को पानी नही भरने देते । खैर टीएन शेषण के पहले आमलोग चुनाव आयोग का नाम नही जानते थे ॥ठिक उसी तरह से बिहार के लोग रामविलास जी के पहले सेल का नाम नही जानते थे ..लेकिन आज वहां बच्चें बच्चों की जुवान पर है ...सेल के सौजन्य से ........

Saturday, August 30, 2008

आइये शशीकला की दुनिया देखें

पहले यवतमाल के जलका गांव की रहने वाली कलावती के दिन बहुरे ...तो अब सोनखास गांव की शशीकला अब गांव की सबसे इलिट हो गइ है । कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने विश्वास मत के दौरान इन्ही दो नामों का उल्लेख किया था । आपके सामने कुछ छाया चित्रों को प्रदर्शित कर रहा हूँ ।








(शशीकला क्या अब बकरी चराएगी ? )


(कपास के खेतों में जुता विदर्भ का किसान )








(शशीकला के पति के लिये राहुल गांधी किसी देवता से कम नही )




(विदर्भ के यवतमाल जिले में सोनखास गांव में स्थित शशीकला का घर)





(सुलभ इंटरनेशनल के विंदेश्वर पाठक शशीकला को चेक प्रदान कर रहे है )






Monday, July 28, 2008

व्लाग के चिरकुट

चिरकुटों से व्लाग का हर सदस्य परेशान है । आप कुछ भी लिखों भद्दे या पर्सनल कमेंट करके ये चिरकुट अपनी पहचान और वजूद बनाने के लिये प्रयासरत है। अखबार में नाम पढा था बचपन में ठिक उसी तरह ट्रक के निचे जान देकर अपना नाम कमाने की चाहत रखते है ये चिरकुट । कुछ बेहया टाइप के चिरकुट तो अपने वास्तविक नाम और इमेल के जरिये अपनी खुजली करते नजर आते है तो कुछ कायर चिरकुट छद्म नाम से गंदी टीका टिप्पनी करने से बाज नही आते । आलोचना साहित्य की एक महत्वपूणॆ विधा् है लेकिन ये चिरकुट आलोचना नही करते खुल्लम खुल्ला गाली देते है । आप इनके मुंह नही लगियेगा ये लरछुत प्राणी है ।

Sunday, July 27, 2008

चैनल वालों को इंतजार है हरिकिशन सिंह सुरजीत की .........का ....

सीपीएम के वेटरन नेता है हरिकिशन सिंह सुरजीत । काफी दिनों से बीमार चल रहे है । उनकी हालत गंभीर है ..नोएडा के मैट्रो अस्पताल में भर्ती है । ९० के दशक के बाद की उनकी प्रत्येक गतिविधीयों का लगभग मुझे स्मरण है । लेकिन मुझे उनके पूरे जीवनक्रम की एक एक इंच की जानकारी प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।२३ मार्च १९१६ को इनका जन्म पंजाब के जालंधर बंडाला ग्राम में हुआ था। सन १९६४ से ये पार्टी के पोलित व्यूरो के सदस्य रहें । अप्रील २००८ के पार्टी कांग्रेस में इनकी गंभीर बिमारी के चलते पहली बार इन्हें पोलित व्यूरो में शामिल नही किया गया । हालांकि इन्हें पार्टी के विशेष आमंत्रीत सदस्य के रुप में केंद्रीय कमीटी में रखा गया है। सन १९३० में इन्होने भारत के स्वंत्रता आंदोलन में भगत सिंह की प्रेरणा से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की। २३ मार्च १९३१ को शहीदे आजम को अंग्रेजों ने फासी की सजा दी । उनकी पुन्यतिथी पर सुरजीत ने होशियारपुर न्यायालय के परिसर में तिरंगा फहराया उनके इस कारवाइ पर दो बार पुलीस ने उन्हें गोलियों का निशाना बनाया। उन्हें गिरफ्तार कर जब न्यायालय के सामने पेश किया गया तो इन्होने अपना नाम लंदन तोड सिंह बताया (one who breks london)। सन १९३६ में इन्होने कम्युनिष्ट पार्टी को ज्वाइन किया। अगंरेजों के खिलाफ इनकी लडाइ जारी रही। चिंगारी और दुखी दुनीया के प्रकाशन का जिम्मा अपने हाथों में लेकर अंग्रेजों से टकराव लेते रहे जिससे अंग्रेज सरकार ने इन्हें कइ बार गिरफ्तार भी किया । जब मुल्क आजाद हुआ तो ये सीपीआइ के पंजाब इकाइ के अविभाजित कम्युनिष्ट पार्टी के जेनरल सेकेरेट्री थे । मुल्क की आजादी के बाद इनकी लडाइ गरीब मेहनतकश और किसानों के वाजिब हक के लिये जारी रही । सीपीएम के वरिष्ठ नेता एके गोपालन के साथ केंद्र सरकार ने विशेष कानून बनाकर इनलोगों को गिरफ्तार किया। सन १९५० से १९५९ तक किसानों से अवैध लेवी वसूलने के सवाल पर एतेहासिक आंदोलन की इन्होने अगुवाइ की ।बाद में इन्हे अकिल भारतीय किसान सभा का जेनरल सेकेरेट्री बनाया गया । सन १९६४ में जब सीपीआइ टूटी तो सुरजीत ने अपने आपको सीपीएम के साथ रखा । उस समय जब सीपीएम के ९ पोलितब्यूरो के सदस्यों का चयन हुआ उनमें से एक सुरजीत भी थे । सन १९९२ में वे पार्टी के जेनरल सेकेरेट्री बनाये गये और सन २००५ तक इस पद पर रहकर पार्टी की सेवा करते रहे । सन १९९० की वीपी सिंह सरकार हो या १९९६ में देवेगौडा की सरकार सुरजीत ने तीसरे मोरचे के गठन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाइ । चलिये मैं आपको बता दूं कि चैनल में सुरजीत का ब्लू प्रिंट तैयार है लेकिन सुरजीत जिंदगी और मौत की लडाइ में ठिक उसी ढंग से लड रहे है जैसी जंग उन्होने अंग्रेजों के खिलाफ लडी थी । बीच में एक बार बाजपेयी जी भी बिमार पडे थे चैनल वालों ने उनके भी जीवनकाल का डाटा कम्पलीट कर दिया था । इसी जल्दीबाजी और खबरों में आगे बढने की ललक वाले चैनलों ने ने एक बार पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन के मौत की खबर गलत चला दी थी । भगवान बाजपेयी जी और सुरजीत दोनों को लंबी उमर प्रदान करें। मैनें सुरजीत के जीवन काल की छोटी कहानी आपके सामने रखा ...वक्त पर काम आ जाये चैनल वालों को रिसर्च करने की आवश्यकता नही पडेगी ।

Wednesday, July 23, 2008

लोकतंत्र में नोटतंत्र

(इसे कविता नही बल्कि तुकबंदी का स्तरहीन प्रयास समझेंगे )

संसद में सूटकेस
बताओ किस पर करोगे केस
बहुमत की थी रेस
तो फिर भाड में जाये देश .....

Wednesday, July 2, 2008

१२३ एग्रीमेंट



आजकल १२३ करार सियासी गलियों में चर्चा का विषय बना है । मानलिजीये कांग्रेस , भाजपा , वामपंथी पार्टी और समाजवादी पार्टी के नुमांइदे साथ साथ खडे हो और पैरोडी में सवाल जबाब करने हों तो कैसे कहेंगे।


( काग्रेस सरकार की ओर से पहला बयान आता है )


करुंगा करार चाहे करले तकरार


गिर जाए सरकार इसकी नही परवाह ।।


(लेफ्ट गुस्से से लाल होकर कांग्रेस से कहता है )


करोगे करार तो होगा यूपीए दो फाड


मजा आएगा तुम्हें जब करेंगे दहाड।।


( भला बीजेपी वाम पार्टियों को कहां छोडने वाली थी )


भौंकोगे जरुर लेकिन काटोगे नही ।


सत्ता सुख का मोह कभी त्यागो गे नही ।।


(और अंत में अमर सिह जी को भी बोलना पडा २४ अकबर रोड के सामने जाकर)


बरबादियों की अलग दास्ता हूं ॥


माया के डर से तेरे दर पे खडा हूं।।



Monday, June 16, 2008

बुझौवल

यकरंग उदूॻ के अजीम शायर थे ...कुछ पहेलियां उन्होने लिखी ..दो पहेलियां आपके सामने रख रहा हूं..बुझौवल है आप बताइये...

यकरंग वह घर कौन है , जामें है दस द्वार।
ऐसे घर में जो बसे , वाको क्या इतबार।। (जीव और देह )

यकरंग वह फल कौन है , बिन बोये फरियायँ।
बढत बढत इतने बढे , आखिर को झुक जायँ ।। (स्तन)

Friday, June 13, 2008

शायरी और शराब



हालांकि इस्लाम में शराब पीना वजिॆत है ..लेकिन उदूॆ शायरों ने जमकर शराब तो नही पी लेकिन धामिॆक उपदेशकों यानि वाइज की खूब फजीहत की...आइये देखते है कुछ चुनिंदा शायरों के चुनिंदा शेर...

शाम को जाम पिया सुबह को तौबा कर ली।


रिन्द के रिन्द रहें हाथ से जन्नत न गइ।। (अनाम)

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रखते है कहीं पांव तो पडता है कहीं और ।


साकी तू जरा हाथ तो ले थाम हमारा।। (इँशा)

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कजॆ की पीते थे मय-औ यह समझते थे कि हां ।


रंग लाएगी हमारी फाका-मस्ती एक दिन ।। (गालिब)

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अंगूर में धरी थी पानी की चार बूंदे ।


जब से वो खिंच गइ है , तलवार हो गइ है।। (अनाम)

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साकी तू मेरी जाम पे कुछ पढ के फूंक दे ।


पीता भी जाउँ और भरी की भरी रहे।। (अनाम)

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साकिया अक्स पडा है जो तेरी आंखों का ।


और दो जाम नजर आते है पैमाने में ।। (अनाम)
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दिल छोड के यार क्यूंकि जावे ?


जख्मी हो शिकार क्यूंकि जावे ?


जबतक ना मिले शराबे दीदार ,


आंखो का खुमार क्युंकि जावे ? (वली)

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रंगे शराब से मेरी नियत बदल गइ ।


वाइज की बात रह गइ साकी की चल गइ।


तैयार थे नमाज पे हम सुन के जिक्रे-हूर ।


जलवा बुतों का देख के नियत बदल गइ ।।


चमका तेरा जमाल जो महफिल में वक्ते शाम ।


परवाना बेकरार हुआ शमां जल गइ।। (अकबर)

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मस्जिद में बुलाता है हमें जाहिदे-नाफहम ।


होता अगर कुछ होश तो मैखाने ना जाते।। (अमीर मीनाइ)
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चलिये आज के लिए इतना ही पैग काफी है।

Wednesday, June 11, 2008

नारी तू नारायणी

( एक मित्र ने मुझे एक लतीफा मेल किया था ..मैनें पहले इसे नही सुना था ..हो सकता है आप ने इस लतीफे को सुना हो..कुछ भी हो मुझे बडा अच्छा लगा. चलिये इसे मैं अपने ब्लाग पर डाल रहा हूँ).

ग्यारह लोग एक हेलीकॉप्टर से रस्सी से लटक रहे थे।दस आदमी और एक औरत।रस्सी कमजोर थी और एक साथ इतने लोगों को लटका करले जाने में टूटने का खतरा था।कम से कम किसी एक आदमी को रस्सी छोड़नी ही थीअन्यथा सारे लोगों की जान खतरे में आ सकती थी। पर बलिदान कौन करे?यह सोच विचार चल ही रहा था कि महिला ने भावुक होकर कहना शुरु किया।उसने कहा कि वह स्वेच्छा से रस्सी छोड़ रही है,क्योंकि त्याग करना स्त्री का स्वभाव है।वह रोज की अपने पति और बच्चों के लिये त्याग करती हैऔर व्यापक रूप से देखा जाये तो स्त्रियां पुरुषों के लिये नि:स्वार्थत्याग करती ही आई हैं।जैसे ही महिला ने अपना भाषण खत्म किया,सभी पुरुष एक साथ ताली बजाने लगे।

Saturday, June 7, 2008

हमारा बिहार

एक बार एक पूवॆ प्रधानमंत्री ने कहा था मैं अटल हूँ बिहारी नही ...लेकिन जो बिहारी नही वो शायद हिँदुस्तानी भी नही ...क्यूंकि ...B= Bharat..I= India...H= Hindustan ..A= Aryavart ..R= Ruhelkhand होता है ।...

Wednesday, June 4, 2008

लालू जी की लीला


लालूजी के बारे में ज्यादा लिखने की आवश्कता नही ..क्यूंकि वे खुद में एक बडे आइकन है..९० में सत्तासीन हुए लालू के बारे में ६ ..सात साल तक कोइ सोच भी नही सकता था कि बिहार की गद्दी से कोइ इस आदमी को जुदा कर सकता है ....शुरुआती दौर में जहां राजनीतिक हलके में मसखरा कहा गया वहीं बौद्धिक लोगों ने ताश का तीरपनवा पत्ता करार दिया ..लेकिन लालू की लोकप्रियता बढती ही गयी। मैं सोचता हूं कभी कभी आखिर इस व्यक्ति में खास क्या है ...सबसे खास था कि लालू ने अपने वोट बैंक का नब्ज पकड लिया था ...एक वाक्या सुनाता हूं ...सन २०० के आसपास गरीब रैली हुइ थी ..लालू इसके प्रचार प्रसार के सिलसिले में बिहार में जगह जगह सभाओं के माध्यम से जनता से भारी संख्या में पटना आने का दावत दे रहे थे ...मेरे कस्बे में भी आये ..मैं भी गया सभास्थल पर ...शाम हो गइ थी अंधेरा पसर रहा था ..लालू ने ज्यादा भाषण नही दिया ..भाषण समाप्त किया ..और रथ पर सवार अपने सहयोगी से कहा कि अरे जरा उ बिदेश से जो कैमरा लाए है दो हमको ...वस्तुतः वो कैमरा नही बल्कि जापानी टौचॆ था जिसकी लाइट ब्लिंक करती थी और सायरन की सी आवाज निकलती थी ...लालू ने अपनी जनता से कहा ..देखो भाइ ये कैमरा हम विलायत से लाए है और ये तुम लोगों का फोटू खिंचेगा ..और जब कल रैली समाप्त होगी तो मैं इसकी रिकाॆडिंग देखूंगा ...तब हमको पता चल जाएगा कि तुम लोगों में से कौन कौन रैली में नही पहुंचा है ...लालू ने उस टाचॆ को घूमाना शुरु किया ...मेरे साथ जनता की भीड में एक दूध बेचने वाला इन्सान पटना से अपना दूध बेचकर वापस अपने गांव जा रहा था लालू जी चूंकि भाषण दे रहे थे तो बेचारा ठहरकर लालू जी का भाषण सुन रहा था। जैसे ही टाचॆ की रौशनी उसके मुख पर पडी उसने कहा अरे बाप रे बाप लालू जी फोटुकवा खिंच लिये कल बेटी के यहां जाना था ..अब तो हमें रैली में जाना ही होगा ...खैर पढे लिखे लोग तो लालूजी की इस नौटंकी को समझ रहे थे लेकिन भोली भाली जनता को झांसा देना कहां का न्याय है आप ही बताइये.......

Monday, May 26, 2008

एक अनाम कविता

आपको सांस लेने की स्वतंत्रता है।

आप जो चाहे कर सकते है॥

हर तरह के बंधनों को तोडने के लिए आप आजाद है।

आप जहां जाना चाहे जा सकते है॥

हर दिन आपका है।

जो चाहे बोल सकते है॥

जहां चाहे वहां रात बिता सकते है।

अपनी प्रतिग्या को भंग करने के लिये आप स्वतंत्र है॥

खुद की मुस्कान पर आपका हक है।

किसी भी तरह की शर्त के लिये आप बाजी लगा सकते है॥

लेकिन यह सब करते हुये हमेशा ध्यान रखिए कि किसी ना किसी की नजर आप पर है।

Friday, May 23, 2008

दो कुत्ते


दो कुत्ते थे शेरु और मोती ..शेरु दिल्ली के पाश कालोनी जीके(ग्रेटर कैलाश) में रहता था और मोती कल्यानपुरी में. हालांकि दोनो दोस्त थे। चार पांच महिने के बाद दोनो इंडिया गेट के पास मिले।शेरु ने कहा यार मोती मैं तो सबेरे उठता हूँ तो समझो कि कूडेदान में लजीज व्यंजनों की भरमार होती है ..खाते नही बनता...मोती ने कहा शेरु मोतिया गैरत के साथ जीनेवाला इंसान है लजीज भले ही मुझे खाने को नही मिलता लेकिन कल्यानपुरी वाले मुझे बुलाते है मोती आ.आ आ ..तभी मैँ उठता हूँ खाना खाने के लिये ...

Tuesday, May 20, 2008

दिल्ली का रेड लाइट एरिया



दिल्ली में ही नही बल्कि बाहर भी जीबी रोड मशहूर है ॥कहा जाता है रेड लाइट एरिया है । एक बार गया था उस रोड से ॥रिक्शे पर सवार होकर जब मैँ रोड क्रास कर रहा था तो मैं नजर बचाकर उन कोठों की ओर तांकने का लालच ना छिपा पाया...विभिन्न भंगिमाओं से कोठे की लडकियाँ राह आने जाने वालों को मानो दावत दे रही थी। रोड क्रास कर चुका था और वो हसीन नजारा भी। ये तो रजिस्टर्ड जगह है जहा मजबूरी में औरतें देह व्यापार के धंधे में लिपत है। लेकिन ऐसे कै जगह है जहां ये धंधे पुलीस वालों के सह्योग से हुआ करते है। समय बीता लगभग दो सालों के बाद मेरा एक दोस्त स्टिँन्ग आपरेशन के सिलसिले में मेरे पास आया बोला आइ कार्ड रख ले ..स्टिँन्ग करना है ...मैँ बोला किसका ..बोला धंधे वाली लडकियों का और उसमें शामिल सफेदपोश लोगों का। बोला रिस्क है लेकिन तेरे उपर आंच नही आने दूँगा।पहला पडाव ः- भीखाजी कामा प्लेस के सामने का हयात होटल ...दोस्त की नजरों ने तलाश लिया ..एक महिला के पास जाकर कुछ बोला मैं दूर ही था थोडा हिचकते हुए पास गया ..2500 में मामला तय हो गया ..उसने पैसे दे दिये ...थोडी देर के बाद दोस्त से कहा सुनी हो गइ ..औरत ने कहा जाओं यहा से औरत पहुंच गइ 100 नंबर वाले पीसीआर वैन के पास ...दोस्त गया और बोला कि इसने मेरे 2500 रुपये लिए है ..पुलीस वाले ने हडकाया और कहा कि भाग जाओं यहां से वरना अभी गिरफ्तार कर लूंगा ..दोस्त गिडगिडाने का नाटक करने लगा सब कुछ कैमरे में कैद हो रहा था ..रात के ग्यारह बज रहे थे ..धीरे धीरे भीड होने लगी वहां पर ..पीसीआर वाले नशे में धुत्त..और वो धंधे वाली लडकी ऐसे खडी थी जैसे वो उन कांस्टेबलों की बास हो ..मामला बिगडता देख ..दोस्त ने अपना आइ कार्ड निकाला और दिखाया साथ तब जाकर पुलीस वाले शांत हुए और उसका पैसा भी लौटा गये ..दोस्त ने यह खुलासा नही किया ...कि उसने हिडन कैमरे पर सब कुछ शूट कर लिया है । ( अगली बार दूसरे स्पाट की कहानी)




Saturday, May 17, 2008

तेल बचाओं

गाडियों के काफिले से उतरकर मंत्री महोदय एक संगोष्ठी का उद्घाटन करने जा रहे थे.......जिसका विषय था ....तेल बचाओं अपने और राष्ट्र के लिए भी....

Friday, May 16, 2008

जातीयता का महाभारत




कहा जाता है कि अंग्रेजों ने बहुत सी अच्छी और बुरी चीजें हिन्दुस्तान को दी।राष्ट्रीयता दी , इतिहास लेखन दिया साथ में सांप्रदायिकता और जातीयता की भी नेमत बख्शी । वैसे भारत में जातीयता मनुस्मृति की देन है।इसी जातियता ने हिंदुस्तान की हर पराजय में प्रमुख भूमिका भी अदा की। हेमू , बैरम खां से युद्ध में नही हारा बल्कि जातिय गद्दारी ने उसे हराया , शिवाजी को बनारस के ब्राह्णों ने उसका राज्यरोहन नही कराया क्यूंकि वह क्षत्रिय नही था।भारत में आपसी फूट के बल पर ही इस्ट इंडिया के पांव जमें। इस्ट इंडिया कंपनी ने पहले देशी लोगों से निम्नतर सेवाए लेनी शुरु की। उसके बाद उन्होने किरानी का काम लेने के लिए देशी लोगों को पढाना शुरु किया। 1834 में कानून के तहत एडीएम के पद पर देशी लोगों की बहाली शुरु कर दी गइ । फारसी उस समय शासन व्यवस्था की भाषा थी। पढने लिखने का सिलसिला उस समय कायस्थ जाति के लोगों में काफी पहले से था।मुगलों के समय से ही उन्होने फारसी पढना शुरु कर दिया था। इस खास जाति का जमाने के साथ बदलने की अद्भुत क्षमता है।अंग्रेजों की पढाइ में भी वे औरों से काफी आगे निकल गये थे। जमींदार और राजाओं के बेटोँ में भी शासक बनने की होड सी मच गइ। अब सारे लोग अंग्रेजी पढने की ओर उन्मुख हो गये। सर सैयद को भी लगा कि मुसलमान अगर अंग्रेजी नही पढेंगे तो शासक दल की पंक्तियों में शामिल नही हो सकेंगे। उन्होने अलीगढ में अंग्रेजी वर्नाकुलर स्कूल की स्थापना की । फिर क्या था पूरे हिंदुस्तान के मौलवियों ने फतवा जारी किया कि सर सैयद मुसलमानों को क्रिस्तान बनाना चाहता है।उसके बाद 1877 या 1879 में लखनऊ में अखिल भारतीय कायस्थ सम्मेलन हुआ। सम्मेलन के निर्णयानुसार जाति के नाम पर देशव्यापी कायस्थ पाठशाला खोलने की बात कही गइ।जाति के नाम पर अखबार निकला । इसके ठिक दो वर्षों के बाद पटना में अखिल भारतीय भूमिहार ब्राह्णण सम्मेलन का आयोजन हुआ। सम्मेलन के निर्णय के अनुसार ग्रियर्सन भूमिहार ब्राह्णण कालेज और स्कूलों की स्थापना की गइ। बाद में कालेज का नाम बदलकर लंगट सिंह कालेज ( मुजफ्फरपुर , बिहार में स्थित ) कर दिया गया , लेकिन स्कूल का नाम अभी भी ग्रियरसन भूमिहार ब्राह्णण कालेजियट बरकरार है। इसके दो वर्षों के बाद मारवाडी सम्मेलन हुआ। फिर अखिल भारतीय सरयूपारीन ब्राह्णण सम्मेलन । ब्राह्णण स्कूल और ब्राह्ण्ण अखबार निकाले गये जिसके संपादक प्रताप नारायण मिश्रा और पंडित मदन मोहन मालवीय जैसे विद्वान लोग हुए । इन सबका क्रम दो दो वर्षों का था । उसके बाद क्षत्रिय सम्मेलन हुआ। बनारस में उदय प्रताप क्षत्रिय कालेज खुला जिसमें क्षत्रिय लोगों को घुडसवारी सिखाया जाता था और उसके बाद उन्हे पीने के लिए दूध भी दिये जाते थे।20 वीं सदी की शुरुआत में अखिल भारतीय गोप सम्मेलन और 1911 में दुसाध सम्मेलन हुआ था ।जातीय सम्मान बढेँ तो जातिय हमलें भी तेज हुए। उन हमलों का काट ढूंढा गया । कायस्थों ने अपने को ब्रह्मण का मानसपुत्र चित्रगुप्त का वंशज कहा और उनकी पूजा अर्चणा शुरु कर दी । विरोधियों ने इसे जायज नही माना। कायस्थों की एक उपजाती के संबंध में केशकारों ने घिनौना अर्थ दे डाला। ब्राह्णणों ने भूमिहार ब्राह्णोणों को ब्राह्णण मानने से इनकार कर दिया। स्वामी सहजानंद सरस्वती ने बजाप्ता ब्रह्मषि वंश विस्तार ही लिख डाला। 1920-21 आते आते जातिय कटुता आसमान छूने लगी । गवरनर के सलाहकारों की ऐसेम्बली में तीन मंत्री हुआ करते थे , मौलाना मजहरुल हक , सर गणेश दत्त , और सच्चिदानंद सिन्हा। मौलाना मजहरुल हक साहब संत माने जाते थे लेकिन सर गणेश दत्त और सच्चिदानंद सिन्हा में भयंकर होड मच गइ।बिहार में कायस्थ बनाम भूमिहारों के बीच गर्दनकाट प्रतिद्वंदता शुरु हो गइ।सर गणेश दत्त ने पटना विश्वविद्यालय में पुअर भूमिहार ब्राह्णण स्टूडेन्ट स्कालरशीप की शुरुआत की जो आज तक जारी है।कहनेवाले तो यहां तक कहते है कि स्वामी सहजानंद की ताकत को कम करने के लिए बाबू राजेन्द्र प्रसाद की सलाह पर खेतिहर मजदूर सभा की निंव रखी गयी ।चुनाव जीतने के लिए कांग्रेसियों ने इसे जमकर भंजाया। कहा जाता है कि समाज शिक्षीत होगा तो जातियता की बिमारी स्वतः दूर हो जाएगी लेकिन इस दर्शन का विरोध स्वंय बिहार के कालेज तथा विश्वविद्यालयों में मिल जाऐँगे।दूर छोडिये आज भी पटना मेडिकल कालेज हास्टल का प्रत्येक रुम जातियों में बंटा पडा है। आजादी के बाद पंडित चंद्रदेव शर्मा के द्वारा लिखित " बापू के सपूतों का राज" नाटक प्रकाशित हुइ थी जिसे विहार सरकार ने बैन कर दिया था।25 साल के बाद पटना हाइकोर्ट ने इस बैन को हटाया। इस नाटक में जातियता का भयंकर वर्णण है। आजादी के बाद राम मनोहर लोहिया का नारा सौ में साठ हमारा है का लगा । काका कालेकर की अध्यक्षता में कमीशन की स्थापना की गइ। तत्कालिन सरकारों ने उसे लागू नही किया।मंडल कमीशन बना ॥उसकी रिपोर्ट भी ठंडे बस्ते में पडी रही ।1967 और 1974 के आंदोलन में जातीयता जडता टूटी थी । संघर्ष के दौरान जाति की बात नही उठी थी । 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने मंडल कमीशन को लागू किया जिसकी भयंकर प्रतिक्रिया हुइ।उस समय एक प्रश्न उठा था । आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व कौन कर रहा था । कोइ व्यक्ति तथा राजनीतिक दल नही बल्कि एक सयाने ने कहा ..मीडिया...। मीडिया हेडलाइन देकर इस आंदोलन को चला रहा था । वीपी सिंह की सरकार गिरते ही उसका काम हो गया । राव साहब की सरकार ने आराक्षण को अमली जामा पहनाया। विश्वविद्यालयो में हंगामा फिर शुरु हुआ, मीडिया ने तवज्जों नही दिया। आंदोलन अपनी मौत मर गया क्युंकि मीडिया का काम हो चुका था। उसका मुख्य मकसद वीपी सिंह की सरकार को गिराना था क्यूंकि प्रबंधन में मजदूरों की सहभागिता और संविधान में काम के अधिकार कानून को पूंजीपती वर्ग पारित नही होने देना चाहते थे।आम आवाम के अन्दर इतना आक्रोश था कि बिना कोइ ठोस कार्य किए लालू अपनी अनपढ वीवी के साथ बिहार में 15 बरस तक गद्दी पर बैठे रहे।पंडित को गाली देने वाले कर्पूरी ठाकुर के शिष्य लालू प्रसाद अब बिना पूजा पाठ के कोइ काम नही करते। पिता की मृत्यु पर समाजवादी नीतिश कुमार ने सर नही मुंडवाया था , बडी चर्चा हुइ थी , लेकिन पत्नी के मरने के बाद उनके समाजवाद की हवा निकल गइ।मुट्ठी भर सवर्ण कहने वाले नीतिश जी आज उसी की गोद में सो रहे है। संसकृत का श्लोक है कि जिस रास्ते बडे लोग जाते है वहीं रास्ता हो जाता है। लालू जी भी उसी रास्ते गये जिसपर जमींदार और कांग्रेसी गये । उसी की नकल होने लगी। मायावती और मुलायम भी उसी रास्ते पर चल रहे है।1974 में भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लडने वाले लालू प्रसाद बाद में खुद ही भ्रष्टाचार के प्रतीक बन गये। उत्तर भारत में माडल क्या है ? राजा , जमींदार और कांग्रेसी । बिहार के टिकारी राज्य के अन्तर्गत रहने वाले हर भूमीहार के यहा महंगा व्यंजन विरंज बनता है । बिहार के किसी भी दूसरे भूमिहारों के यहां यह व्यंजन नही बनता । टेकारी महाराज के यहां विरंज बनता था । जमींदारी उन्मूलन के बाद अपने को टिकारी महाराज मानते हुए उस क्षेत्र के गरीब भूमीहार के यहां भी यह महंगा व्यंजन बनता है।लालूजी मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने गांव गोपालगंज के फुलवरिया गये । उनकी मां ने पूछा .. बबुआ तू का हो गइल बाडअ..। लालूजी ने कहा माइ हम बिहार के हथुआ महाराज हो गइल बानी।पटना जंक्शन पर एक बार बैठा था । एक बैँड बाजा बजाने वाला मजदूर भी मेरे पास बैठा था । मालूम हुआ कि वह रविदास है सट्टा पर बाजा बजाता है। एकाएक एक राजनीतिक पार्टी का जूलुस निकला । वह हंसा और बोला सब जात पर मरता है ..इ खातिर हमनी भी सब पार्टी छोडके अप्पन जात वाला पार्टी बसपा में चल गइली हे..स्पस्ट है संघर्ष से ही यह जातियता टूट सकती है ..दूसरा और कोइ रास्ता नही जिससे जातियता पर हमला हो सकें ।


( रविश कुमार की दवा की जाति के लेख ने मुझे प्रेरित किया कि जातियता के इस बहस को और आगे ले जाया जाय जिससे समाज में जडता खत्म हो। )


Saturday, May 10, 2008


मैथेमैटिक्स किंग वशिष्ठ नारायण

हाल ही में पटना के एक संस्थान ने वशिष्ठ नारायण जी के नाम पर अपनी संस्था का नामकरण किया। इस अवसर पर खुद वशिष्ठनारायण जी अपने परिवार के सदस्यों के साथ पहुंचे थे। गणित के इस जादूगर को जब मंच पर बुलाया गया तो वे कुछ गणीत के सूत्र ही बुदबुदा पाये।2005 में मैँ इनके गांव वसंतपुर पहुँचा था जो आरा शहर से 20 किलोमीटर की दूरी पर है । गांव के बीचोबीच एक पक्का मकान है। घर के बरामदे पर एक खाट पर सोये थे वशिष्ठ नारायण। मैने सिर्फ उनका नाम सुना था ।साक्षात देखने के बाद मेरे अंदर जो सुख की अनुभूती हुइ मैं उसका बयान नही कर सकता। उनके चेहरे पर मक्खियाँ भिनभिना रही थी । मैंने हांकने की कोशिश की तब वे जाग उठे। बहुत प्रार्थना करने के बाद परिवार के अन्य सहयोगियों की मिन्नत पर वे साक्षात्कार के लिए राजी हुए। जल्दी बोलिये क्या पूछना है....जरा अपना पेनवा दिजीयेगा बडा अच्छा है ,,पायलट का पेन मैनें पाकेट से निकाल कर दे दिया। अपने कुर्ते के पाकेट से उन्होने छोटे छोटे बंडल निकाले।जिसमें दो तीन चूडी ,कुछ धागे और बाल पेन का रिफील ...उन्होने मेरे पेन को उन्हीं सामानों के साथ रख लिया । मैने पूछा सर मैथ क्या है उन्होने मैथस के कुछ सूत्र बोलने शुरु किये। फिर वो ऐटम बम के बारे में बोलने लगे। उसके बाद उन्होने कहा चलिये अब भागिये यहां से ...मैने कुछ हठ किया तो उन्होने मुझे डांटते हुए मुझे वहां से भाग जाने के लिए कहा। खैर मुझे लगा कि इंटरव्यू के चक्कर में किसी की भावनाओं से खेलना ठिक नही है।घर के पूरे दिवार पर उन्होने मैथस के सूत्र और सीताराम से संबंधित भजन के सूक्त लिख रखे थे। बिहार के राजनीतिग्यो में लालूजी और रामविलास जी के बारे में उनके परिवारवालों ने खूब बडाइ की । केन्द्रिय मंत्री अर्जुण सिंह ने भी अपनी ओर से इस परिवार को मदद प्रदान की है। परिवार वालों ने एक वाक्या सुनाया ॥लालूजी वशिष्ठ बाबू का हालचाल जानने वसंतपुर पहुंचे। वशिष्ठ बाबू ने कहा कि ए लालूजी एगो रुपया देब...लालूजी के पास शायद पाकेट में एक सिक्का नही था..वशिष्ठ बाबू भडक गये कहा जो एक रुपया नही दे सकता वो हमारी मदद क्या करेगा। हालांकि उनकी मानसिक स्थिती ने ऐसा कहलवा दिया हो...पिछले कइ बर्षों से सिजोफ्रेनिया से ग्रसित वशिष्ठ बाबू के बारे में गांव वालों ने दिखाया मीडिल स्कूल जहां उन्होने अपनी प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की थी। पीपल का बडा सा पेड सूखा पडा था और स्कूल की जर्जर इमारतों को देखकर ऐसा लग रहा था कि मानों अब रो पडे॥पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपती एस एन पी सिन्हा ने वशिष्ठ बाबू पर एक वायोग्राफी लिखी है वि्श्व अप्रितम गनितग्य .इस किताब में उनके जीवन और उपलब्धियों पर लेखक ने बहुत ही सुंदर चित्रन किया है।पटना में आयोजीत समारोह में वशिष्ठ बाबू की मां ल्हासो देवी ने अपने संबोधन में सिर्फ़ यही कहा कि मेरे पुत्र को भला चंगा करने में लोग आगे आकर मेरी मदद करें।आइये हम सब मिलकर भारत के इस धरोहर के लिए आगे आकर मदद का हाथ बढायेँ।

Friday, May 2, 2008

लता की महानता का दूसरा पक्ष


लता एक ऐसा नाम जिनकी कृतियों के बारे में लिखना मेरे जैसों के वश की बात नही। स्वर कोकिला जैसे विभूषणों से अलंकृत इस महान गायिका जब अपने चरम पर थी तब ना जाने कितनी प्रतिभाएं काल के गाल में समाती चली गइ थी। लता ने किसी एक को अपने आगे ना पनपने का मौका दिया और ना ही आगे बढने का।लता ने अपने पूरे फिल्मी करियर में खासकर महिला गायिकाओं को अपना निशाना बनाया।तितली उडी ...फूल ने कहा तू आजा मेरे पास ..जैसे हसीन गाने को अपना सुर देने वाली गायिका शारदा.. लता की प्रताडना की सबसे अहम उदाहरण है।शंकर और जयकिशन की जोडी ने शारदा को ब्रेक क्या दिया ..लता ने शंकर जयकिशन के कंपोजीशन में गाना ना गाने का प्रण कर लिया । उन्हीं दिनों राजकपूर अपने सपनों की फिल्म मेरा नाम जोकर के निमाॻण में लगे थे । राजकपूर की बकायदा एक टीम थी जिसमें लता , मन्ना डे , मुकेश , शैलेन्द्र , हसरत जयपुरी और शंकर जयकिशन महत्वपूर्ण सदस्यों में से एक थे।मेरा नाम जोकर में शंकर जयकिशन बकायदा अपने कंपोजिशन तैयार कर चुके थे ।्अचानक लता ने राजकपूर से कहा कि शंकर को फिल्म से निकालो तभी मैं आपकी फिल्म में स्वर दे सकूंगी । राजकपूर के लिए ये कठिन मरहला था । राजकपूर ने शंकर जयकिशन को फिल्म से बाहर करने से इनकार कर दिया । मेरा नाम जोकर हिन्दी फिल्म इतिहास की बहुत बडी फिल्म होकर भी बाक्स आफिस पर पिट गयी । लोगों ने कहा लता ने नही गाया तो फिल्म को तो पिटना ही था। राजकपूर का एक बडा सपना खाक हो चुका था।खैर उसके बाद बाबी बनी , राजकपूर ने शंकर जयकिशन को चलता कर दिया , लता जी ने इस फिल्म में अपना बहुमूल्य सुर दिया । फिल्म ने टिकट खिडकी पर सफलता के झंडे गाड दिये। कुछ ही दिनों के बाद शंकर भी इस दुनिया से कूच कर गये।वाणी जयराम , हेमलता , चंद्राणी मुखर्जी , रुना लैला , सुधा मल्हो्त्रा ,प्रीती सागर ये कुछ ऐसे नाम है जो प्रतिभा संपन्न होने के बाबजूद लता की हेकडी के आगे नही टिक सकी और गुमनामियों के अंधेरे में खो गइ। लता के गाये कइ अमर गीतों के समानांतर क्या ये गाने आपके कानों में रस नही घोलते....बोले रे पपीहरा(वाणी जयराम) ....तुम मुझे भूल भी जाओं तो ये हक है तुमको (सुधा मल्होत्रा )..दो दिवाने शहर में (रुना लैला)..अंखियों के झरोखे से(हेम लता) ...तुम्हारे बिना जी ना लगे घर में (प्रीती सागर).....

Saturday, April 12, 2008

कलम आज उनकी जय बोल


देश में लोग महंगाइ और मुद्रास्फ़ीती के मकड्जाल में उलझे हुए है। मध्यप्रदेश की सरकार ने कितना बडा क्रांतीकारी फ़ैसला लिया उसे मीडीया ने तवज़्ज़ो ही नही दी। मीडीया को तो चाहिए राखी , राजु और शिल्पा । तथाकथित धर्मनिरपेक्श लोगों को भी नरेंद्र मोदी को गाली देने के अलावा कुछ नही सुझता।
देश कभी का हिंदू राष्ट्र बन गया होता ...हम लोग भी गर्व से कहते जय श्रीराम.... मध्यप्रदेश की सरकार ने २००८-०९ के राज्य बजट में आम लोगों के लिये क्या क्या नही किया । १६ वस्तुओं को बिल्कुल टैक्स फ़्री कर दिया । जिन वस्तुओं को टैक्स- फ़्री किया गया उनमें क्रपान , हाथ का कडा, प्रसाद , भोग या महाभोग , धार्मिक चित्र, कपूर , गौमूत्र और उससे बने सभी उत्पाद , सत्तु -पंजीरी, मुरमुरा, बताशा, एवं मिश्री इत्यादी शामील है। एक धर्मनिरपेक्श देश में एक समुदाय विशेष के प्रति आग्रह दिखाने का साहस हिंदू सम्राट मोदीजी भी नही दिखा सके। राज्य सरकार की उदारता को देखकर दानवीर कर्ण भी शर्मा जाये। यही नही राज्य सरकार ने अपने पूर्व के बज़ट में भी जनेउ - , पूजा की धूपबत्ती पूजा में काम आनेवाली रस्सी और कलावे के धागे को पहली ही टैक्स फ़्री कर दिया था। राज्य के दयालु मुख्यमंत्री ने अपनी दूरदर्शिता का परिचय देते हुए राज्य सरकार के सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस की शाखाओं मे जाने की विधीवत छूट दे रखी है। इससे दो फ़ायदे होंगे एक तो कर्मचारियों में अनुशासन का समावेश होगा दूसरी तरफ़ आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में लोककल्यान कारी महाराज शिवराज सरकार की वापसी कैसे होगी इसकी भी ट्रैनिंग हो जायेगी। दुख होता है कि ऐसे लोककल्यान्कारी फ़ैसले ना तो राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खी बनते है ना ही पढे लिखे लोगों के बीच बहस का मुद्दा।

Thursday, February 7, 2008

खबरिया चैनल और हमारा समाज

समाचारों के लिये हमेशा से आम लोगों के बीच एक भूख रही है। आज से कुछ साल पहले तक किसि एक दूकान में लाला के यहां एक अखबार पहुंचता था. गांवों में लोग बडी ही बेसब्री से अखबार के आने का इन्तेज़ार करते थे। हालांकि लाला का समाचारों से कोइ सरोकार नही होता था , एक अदद अखबार
उसके लिये पी आर के समान था लोगों या युं कहे अपने ज्यादा से ज्यादा ग्राहाकों तक पहुंचने के लिये।
बुजुर्ग लोग पहले ही अखबार को तिलन्गी सरीखा बना लेते थे । एक तितली जिस तरिके से फूलों का रस निचोड निचोड कर पी जाती है ठिक उसी तरह गांव के वो पठनशील लोग अखबार की एक लाइन को चट कर जाते थे ।
जारी है । फिर चर्चा होती थी अरे इस बार तो पांडेजी की हवा निकल जायेगी , दिल्ली की खूब हवा खा ली । उतने में शर्मा जी बोलने लगते थे अरे कल ही दिल्ली से लौटा हूं , एम पी साहब के यहां ही ठहरा था , फ़्रिज़ का पानी वहां पी लिया था साला गला भारी हो गया है। लोगों के लिये फ़्रिज़ बहुत दूर की बात थी उन दिनों । कभी कभी राजनितिक चर्चा घमासान हो जाती थी , बडी मुश्किल से लाला उन्हें शान्त करता था । धीरे धीरे मिडिया ने पैर पसारे और दैनीक अखबारों ने अपनी जगह प्रत्येक घर में बनानी शुरू की। ९० के दशक के बाद न्युज चैनलों का दौर आया। शुरुआत में तो ये खबरों की बदौलत जनता में पहुंचने की कोशिसे करते रहे ॥ लेकिन टीआरपी के चक्कर में ऐसा लगता है कि न्युज़ कही गुम हो गया है और उसकी जगह ले ली है सांप बंदर और मदारी के खेल ने । राखी का चुम्मा मिक्का ने क्या ले लिया ऐसा लगा कि देश में आपतकाल की स्थिती पैदा हो गयी , चैनल वाले सुबह से शाम तक परेशान रहे कि भाइ देश पर आये इस संकट का निवारन नही हुआ तो देश की जनता का क्या होगा। मेरे कहने का मतलब ये नही है कि मैं कोइ नयी बातें आपके सामने रख रहा हूं ।, मेरी मां पढी लिखी नही है । रामायन और महाभारत देखा करती थी टीवी पर । मैं जब पिछली बार घर गया था तो मेरी मां कहने लगी कि बेटा तुम यही काम दिल्ली में करते हो , बडी शरम आती है , उ राखी हमको मिल जाये तो ससुरी का नाक तोड दे हम। कहने का अर्थ ये है कि हम बाज़ार वाद के गिरफ़्त में है तो क्या जो समाचार पत्र या समाचारों की एक बेसीक परिधी है उसे लांघ जाये , तो फिर जनतंत्र के चौथे खंबे कहे जाने का हक हमें नही मिलना चाहिये.
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