Thursday, December 10, 2009

एक नक्सली की कहानी- पार्ट-२


अब बिलाइ मियां अपने बौद्धिक अंदाज में अपना दर्शन मेरे सामने बयां कर रहे थे । मैने कहा बिलाइ मियां जब तक वैचारिक क्रांति आप लोगों के अंदर समावेश नही करेगी तब तक आप अपने मकसद में कैसे सफल होंगे । बिलाइ ने माओ-त्से-तुंग का डायलाग बोला क्रांति बंदूक के नली से होकर गुजरती है । खैर दस्ता प्रमुख ने बोला आलोक जी अब हमारा पडाव यहां से चल रहा है ..हमने पूछा कि कहां ..बोले मुझे भी नही मालूम । अब बिलाइ मियां बहुत मशहूर हो चुके थे । उनके नाम से ही बडे बडे अपराधी थर्राने लगे थे । खैर बिलाइ इमानदार थे और शोषितों के लिये उन्होने हमेशा संघर्ष किया । एक दिन अपने बाल बच्चों से मिलने अपने पैतृक घर पहुंचे पुलीस के भदिये ने इसकी खबर प्रशासन को दे दी । बिलाइ मियां अरेस्ट हो गये इनके साथ एक और नामी नक्सली पकडा गया । पुलीस की नजर में ये नक्सली कुख्यात होते है क्यूंकि बारुदी सुरंग बिछाकर नक्सली संगठन कितने ही पुलीसकर्मिंयों को मौत की निंद सुला चुके है । इन दोनो नक्सली नेताओं के साथ पुलीस ने बेइंतहा जुल्म किये । बिलाइ के साथी को पुलीस ने इतना प्रताडित किया कि उसकी मौत पुलीस हिरासत में हो गइ । मीडिया ने बहुत हो हल्ला किया ..मानवाधिकार संगठन भी काफी चिल्लाये लेकिन जहां तक मुझे जानकारी है न्याय अभी भी कोसों दूर है । बिलाइ की भी बहुत पिटाइ हुइ । कइ मुकदमों मे संलग्न है इस बीच उनका पूरा परिवार दाने दाने को मुहताज हो गया ..और उस भू माफिया ने ... कहा जाता है कि नक्सली संगठन को मोटी रकम देकर मामले को रफा दफा करा लिया । जिस जमीन के हक को लेकर बिलाइ ने बंदूक उठायी थी ..उसके जमीन पर उसी भू माफिया का आज एक सुंदर सा मार्केटिंग काम्पलेक्स बिलाइ मियां की जमीन पर चमचमा रहा है ।
( समाप्त)

Tuesday, December 1, 2009

एक नक्सली की कहानी

शरीर से वलिष्ठ उपर से रौबदार मूंछे । ऐसा लगता था कि शोले का गब्बर है बिलाइ मियां । बचपन में घरवालों ने उनका यहीं नाम दे दिया था । आंखे भूरी होने की बजह से शायद। वैसे बिहार में आपको अमरिका सिंह भी मिल जायेंगे और खदेरन सिंह भी । किसी गांव का नाम वहां इंगलिश पर भी मिल जायेगा । खैर बात हो रही थी बिलाइ मियां की । बिलाइ मियां बचपन से ही खुराफाती थे । बम बगैरह बना देना उनके बांये हाथ का खेल था । वो इसलिये कि हिंदु मुस्लिम फसादात को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय की ओर से ऐहतियात के तौर पर अपने कौम के लिये ऐसा भला काम कर देने की जिम्मेदारी उन पर आन पड जाती थी । खैर लेकिन है वे बडे शरीफ इंसान । तारेगना के फुटपाथ पर उनकी एक दूकान हुआ करती थी । ताले ,चाबी , लालटेन और टार्च के मरम्मत की । बहुत मशहूर टेक्नोक्रेट थे । हर ताले की चाबी और टार्च की गयी रौशनी को वापस बुलाना उनके बायें हाथ का खेल था । बहुत मशहूर थे अपनी कारकर्दगी के लिये । जाति से वो रंगरेज थे । यानि कपडे को रंगीन बनाना उनके परिवार का पुश्तैनी पेशा था । मुझे याद नही कि कितने वर्षों से उनका परिवार तारेगना में रह रहा था । बात सन १९९५ की है । एक स्थानिय भू माफिया ने बिलाइ मियां की जमीन के साथ पूरे १२ कठ्ठे जमीन को अपने नाम करा लिया । बिलाइ मियां के घर के आगे बंगलियां ( जी हां यही नाम था ) उसका होटल था । उसका मालिक भी वही भू माफिया हो चुका था । जो भी लोग उस जमीन से वास्ता रखते थे भू माफिया के डर से भाग चले लेकिन बिलाइ मियां सीना तानकर इका विरोध करते रहे । एक रात को वहां एक आदमी की हत्या हो गइ । वो आदमी बंगलिया होटल मालिक का बेटा था । हत्यारे ने गफलत में बंगलिया के बेटे की हत्या कर दी रात के अंधेरे में उसे लगा कि बिलाइ मियां साइकिल से अपने घर जा रहा है । उस दिन का सबेरा बिलाइ मियां के लिये खौफ का मंजर लेकर आया उसने अपनी दूकानदारी बंद की .. भू माफिया से लडने की ताकत नही थी उसमें । बदले की आग दिमाग में लिये हुये वो पहुंच गया नक्सल संगठन की शरण में । चार जवान बेटियां और अपनी पत्नी को छोडकर बिलाइ मियां कुछ ही दिनों में नक्सल संगठन के दस्ता प्रमुख बन गये । दस्ता यानि नक्सलियों का वो विंग जिसकी कमाइ पर नक्सल संगठन जिंदा है । बिलाइ मियां अब माओ और क्रांति की बात करने लगे थे । २० -२५ मुकदमों के मुदालय भी बन चुके थे । एक बार मैं अपने दोस्त की बहन की शादी के सिलसिले में तारेगना के एक सूदूर गांव में पहुंचा । दोस्त मुसलमान था । बडका मांस ( गाय का ) वहां बन रहा था मैने नही खाया । इसी बीच एक आदमी मेरे पास आया और बोला फलां नक्सली संगठन के दस्ता प्रमुख आपको बुला रहे है । मेरी तो हवा निकल गइ । सोचा नही जाउंगा तो यहीं मारा जाउंगा दिमाग पेशोपेश में क्यूं बुलाया क्या मैने कुछ नक्सल मूवमेंट के बारे में तो कुछ नही बोल दिया था । परेशान और हैरान जब उस व्यक्ति के साथ उस स्पाट पर पहुंचा तो वहां दस्ता प्रमुख और कोइ नही बल्कि बिलाइ मियां अपने दस्ते के साथ खाना खाकर ताडी ( इसे आप स्काइ जूस समझे ) पी रहे थे । आइये आलोक बाबू स्वागत है । मैनें कहा अरे मिस्टर बिलाइ जी ...ये सब क्या है चालीस के करीब हथियार बंद लोग जिसमें ३५ के करीब सो रहे थे और पांच लोग अप डाउन अप डाउन कर रहे थे । बिल्कुल मिलिट्री की तरह । लेकिन किसी के पास भी तन पर ढंकने के लिये पयार्प्त कपडे नही थे । मैने पूछा कि बिलाइ यह जो १४ साल का लडका है नक्सली क्यूं बन गया ...दबंगों ने इसके पूरे परिवार को मार डाला जमीन हडपने के खातिर इसके पास उन लोगों से लडने की औकात नही थी इसलिये ये नक्सली हो गया ...मैनें फिर कहा कि ये बालक जिसके दूध के दांत भी ठिक से नही उगे है ...इसकी बहन के साथ दबंगों ने बलात्कार किया और बहन ने खुदकुशी कर ली । इसी तरह की कहानी सभी लोगों की थी । खुद में इतना ताकत नही था कि वो उन दबंगो से लड सकें इसलिये थाम लिया हाथ नक्सलपंथ का ।
( शेष जारी है । )

Tuesday, August 25, 2009

आनंद जैसी फिल्में बार बार नही बनती । पार्ट-१


गीतकार गुलजार की ७३ वीं वर्षगा‌ठ पर विभिन्न चैनल अलग स्टोरी चला रहे थे । एक चैनल में आनंद का वो गीत जिंदगी कैसी है पहेली ...चल रहा था ..पैकेज में बताया जा रहा था गुलजार का ये अमर गीत आज भी दिल की गहराइयों को छू जाता है । हकीकत है कि इस गाने के गीतकार योगेश है ..इसी फिल्म का एक और गीत कहीं दूर जब दिन ढल जाये..के लेखक भी योगेश ही है । मैने तेरे लिये ...ना जिया जाय ना ..और मौत ती एक पहेली है के गीतकार गुलजार है । हालांकि इन सभी गीतों का संगीत अमर संगीतकार सलील चौधरी ने दिया है । १९७२ में बनी इस फिल्म के सारे किरदारो को देखकर ऐसा लगता है कि वे सब हमारे और आपके बीच के हों । पहले इस फिल्म के लीड रोल के लिये महमूद और किशोर कुमार को ह्रषिकेश मुखर्जी ने चुना था । इस सिलसिले में जब ह्रषि दा किशोर कुमार के आवास पर पहुंचे तो दरवाजे पर खडे चौकीदार ने उन्हे वहां से भगा दिया । दरअसल किशोर कुमार का एक स्टेज कार्यक्रम किसी बंगाली सेठ ने करवाया था । जब पैसे की भुगतान की बात आयी तो बंगाली सेठ ने तयशुदा पैसे नही दिये । किशोर कुमार के बारे में ये सबको पता है कि वो अपने मेहनताने में से एक रुपया भी कम नही लेते थे ..यहां तक कि कटे फटे नोट भी वो स्वीकार नही करते थे । उस बंगाली सेठ से किशोर दा की मारपीट भी हो गयी थी थी । तब किशोर दा ने अपने दरबान को ये स्पस्ट आदेश दे रखा था कि किसी भी बंगाली को घर के अंदर नही घुसने देना । जैसे ही ह्रषि दा ने अपना नाम मुखर्जी बताया दरबान ने उन्हें खदेड दिया । ह्रषि दा इस घटना से इतना आहत हुये कि उन्होने निश्चय किया कि इस फिल्म में किशोर कुमार को तो कभी नही लेंगे। बाद में महमूद से भी बात नही बनीं और इस फिल्म में दो नये अदाकार अमिताभ और राजेश खन्ना को ह्रषि दा ने लिया ।बाबू मोशाय राजकपूर ऋषि दा को कहा करते थे उसी से प्रभावित होकर निर्देशक महोदय ने बाबू मोशाय का करैक्टर आनंद में रखा । बाबू मोशाय उस दौर में एक प्रतीक बन गया था राजेश खन्ना और अमिताभ के संदर्भ में ।
अगली बार आनंद से जुडी कुछ और बातें )

Tuesday, July 28, 2009

हमारे जनप्रतिनिधी




( ये दोनो प्रसंग सिनापा जी ने हमें भेजा है ॥आपके सामने रखने में मजा आयेगा । )



( एक)


बिहार में संविद की सरकार गिर गयी थी । शोषित दल की सरकार बनी थी । उस मंत्रीमंडल में एक मंत्री किसी मठ के महंत थे । महंथ जी के पास एक फाइल आयी । फाइल चूंकी महत्वपूर्ण थी इसलिये सचिव महोदय महंथ जी चैम्बर में स्वंय चले गये और महंथ जी से कहा कि महोदय एक बहुत ही महत्वपूर्ण फाइल हमने आपके यहां नोट देकर भेजा है । कृप्या इस फाइल पर पर कारवाइ करके वापस लौटाया जाय। सचिव के जाने के बाद मंत्री ने फाइल मंगवाया । उसको उलट पुलट कर देखा और रख दिया । थोडी देर के बाद एक सहायक आया और मंत्रीजी से बोला कि हुजूर फाइल सचिव महोदय साहब मंगवायें है । मंत्री जी ने फाइल को फिर उलट पुलट कर देखा और फिर वहीं रख दिया । फाइल चूंकि अर्जेन्ट थी इसलिये सचिव महोदय स्वंय महंथ जी के कमरे में आ गये और फाइल के लिये याचना की । महंथ जी विफरते हुये बोले ॥बार बार फाइल के लिये आदमी भेज रहे है ? फाइल उछालकर बोले ...कहां है नोट ? कांग्रेसियों को आप लोगों ने बहुत ठगा है ॥आप हमें ठगने चलें है । हम महंथ है ..ठगाने वाले नही है ...। कहां आपने फाइल में नोट दिया है और बार बार तगादा किये जा रहें है । पहले तो सचिव महोदय हक्का बक्का रह गये । तुरंत बात उनकी समझ में आ गयी । सचिव महोदय ने महंथ जी को समझाया कि फाइल पर लिखने को नोट देना कहा जा ता है । मंत्री जी सचिव महोदय का मुंह ताकते रह गये । उन्होने कहा महाराज ऐसा था तो पहले ही बता देते ना कि दस्तखत करना है । बार बार नोट नोट क्या चिल्ला रहे थे ।सचिव महोदय संचिका लेकर बाहर निकल गये और पहला काम किया कि जिस वाकये को प्रधान सचिव को सुनाया बाद में बात फैली तो अखबारों में भी छपी ।




(दो)


ललित नारायण मिश्रा समस्तीपुर बम - विस्फोट में घायल हो चुके थे । समस्तीपुर से दानापुर लाने के क्रम में उनकी मौत हो गयी । अब्दुल गफूर सरकार ने घोषणा की कि जो भी एल एन मिश्रा के मौत के रहस्य का अनावरम कर देगा उसे पच्चीस हजार रुपया नगद इनाम और पुलीस के आदमी को प्रमोशन दिया जाएगा । समस्तीपुर के तत्कालिन एसपी ने रहस्य का खुलासा कर दिया । घोषणा के अनुसार गफूर कैबिनेट ने उक्त एसपी को नगद इनाम सहित डीआजी बनाने की घोषणा कर दी । दूसरे ही दिन गफूर मियां को उनके पद से हटा दिया गया । जगन्नाथ मिश्रा मुख्यमंत्री बन गये । उन्होने पहला काम किया । गफूर मियां के मंत्रीमंडल के निर्णय को तत्काल निरस्त कर दिया और मामले को सीबीआइ को सौंप दिया । मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद अब्दुल गफूर मुख्यमंत्री आवास से दो अटैची हाथ में लेकर सडक पर आयें और रिक्शा पकडकर अपने निजी आवास में पहुंचे । उनका ड्राइवर अनुरोध करता रहा लेकिन गफूर साहब ने कहा कि कार मुख्यमंत्री का है और मैं अब मुख्यमंत्री नही रहा ।

Thursday, July 23, 2009

सूर्यग्रह्ण के तीन मिनट


(अभी मैं तारेगना में ही हूं। सूर्यग्रहण के बाद तारेगना को सब लोग जान गये है । आर्यभट्ट् के बारे में इसी शहर के रिसर्चकर्ता सिद्शेश्वर नाथ पांडेय हों या यूपी के प्रताप गढ में जन्में और तारेगना को अपनी कर्म स्थली बनाने वाले नारायण जी हों । नारायण जी एक बहुत अच्छे कवि भी है ..२२ जुलाइ को तारेगना के पूर्ण सूर्यग्रहण को देखा और एक छोटी कविता को हमारे पास भेजा है । हम उसे प्रकाशित कर रहें है । )


कौतुक विस्मय ललक पल पल छलक छलक ।

अद्भुत स्पन्दन ...अभिनंदन अभिनंदन शुभ शुभ पूर्ण सूर्यग्रहण ... अभिनंदन
अपलक नयन गगन गगन

छितीज चरण चरण

पल पल परिवर्तन

मन्द मन्द सिहरन सिहरन ,

सुन मौन गगन का उद्भोदन

कर वंदन ..... अभिनंदन अभिनंदन

भय-मान भयानक कृष्णावरण

पूर्ण प्रकाश वृत-चन्द्रशयन

वृन्द विहग सब विस्मित- शंकित सुन पद्चाप

काल - व्याल सन्निकट मरण

पर पायें तीव्र त्वरण अभिनंदन अभिनंदन ।

गर्भ ब्रहांड व्यवस्थित कालक्रम गति नियम ।

अनवरत स्वंय अनुपालन व्यतिक्रम

प्रमाण प्रत्यछ पवन ॥

विभु को कर हर प्राण नमन

अभिनंदन अभिनंदन ॥ ॥

शुभ शुभ पूर्ण सूर्यग्रहण

२२-७ के बाद का तारेगना

सारे विश्व की नजर तारेगना पर गडी थी । प्रकृति को ये रास ना आया ..२१ की शाम को वहां खूब बारिश हुइ..रात १२ बजे तक पूरा आकाश बादलों से ढका था ..सुबह के तीन बजे आसमान बिल्कुल साफ ..स्पेस के पंडितों के लिये ये लम्हा आनंददायी था । लोग खुश थे कि आज सदी की ये विशेष खौगोलिय घटना का आनंद वे मजे से ले सकते है । सुबह के साढे चार बजनेवाले थे कि अचानक बादलों का घेरा एक बार फिर आकाश में छाने के लिये व्याकुल हो उठा और देखते ही देखते बादलों के पूरे साम्राज्य ने आकाश को फिर से ढक लिया । उसके बाद उस मनहूस बादल ने तो पूरा खेल ही बिगाड दिया ...६ बजकर २४ मिनट का वो भी दृश्य सामने आया जब सुबह की लालिमा धीरे धीरे गोधूली वेला की ओर जाती देखी गयी..और अचानक एक बार फिर पृथ्वी रात के अंधेरें में लुप्त हो गइ ..बडा ही विहंगम दृश्य था ..तापमान अचानक ४ से ५ डीग्री निचे चला गया ..वहां उपस्थित ढाइ लाख लोगों ने इस घटना का भरपूर मजा लिया ।विग्यान जगत के लोग निराश जरुर हुये लेकिन भारत से बाहर के लोगों से हमने पूछा कि आज का ये शो आपको कैसा लगा ..उनका जबाब था अद्भभुत । उन्हें ये मलाल नही थी कि हमलोगों ने पूर्ण सूर्यग्रहण को नही देखा बल्कि ३ मिनट ३८ सेकेंड का वो लम्हा अद्भुत था जब लोगों ने दिन मे ही तारों का दीदार किया । खैर तारेगना जो एक छोटा सा गांव था आज खबरों में नही है लेकिन इस विशेष खौगोलिय घटना का केंद्र बनने के बाद आर्यभट्ट की इस नगरी को विश्व मे एक अलग पहचान जरुर बन गइ है । लगभग तीन लाख लोग इस छोटे से शहर में अपनी उत्सुकता के पंख को लगाये शाम से ही एक स्थान पर जमा होकर सूर्यग्रहन का इंतजार करते देखना अपने आप में एक विहंगम दृश्य को निहारने के जैसा था । स्टेशन का नाम तारेगना है क्यूंकि तारेगना गांव के जमींदारों ने अंग्रेजों को स्टेशन के निर्माण के लिये जमीन इसी शर्त पर दिया था कि इसका नामकरण मेरे गांव पर होना चाहिये ..शहर का नाम मसौढी है ..जब तारेगना का नाम विश्व फलक पर अपनी चमक बिखेर रहा है तो अब मसौढी के लोग भी पूरे शहर का नाम तारेगना मे तब्दिल करने पर राजी हो गये है । मसौढी का नाम आते ही इसमें नक्सलवाद की बू आती है क्यूंकि बिहार में नक्सलवाद की जन्मस्थली मसौढी ही रही है ऐसे में मसौढीवासियों के लिये तारेगना का खगोलविग्यान का केंद्र में होना खूब भा रहा है ।

Tuesday, July 7, 2009

कुत्ता साधु को देखकर क्यूं भौंकता है ?


बिहार के छपरा , सिवान और पूर्वांचल के इलाके में शादियों में होने वाले नाच का कोइ तोड नही था । गाने बजाने के साथ लौंडा का नाच बहुत प्रसिद्ध था । उसमें कलाकारों के द्वारा नाटक का मंचन किया जाता था जो सामाजिक सरोकारों से ओत-प्रोत होते थे । यूं कहे तो भिखारी ठाकुर के द्वारा जो नींव डाली गयी थी उन्हीं परंपराओं का निर्वहन उस स्थान के कलाकार करते रहे । हालांकि आज उस नाटक शैली की जगह फूहड औरकेष्ट्रा ने ले ली है । बचपन में उसी नाच का एक छोटा सा नाटक हमने देखा था जो आज तक याद है । नाटक था तीन सवाल ? पहला ..कुत्ता साधु को देखकर क्यूं भौंकता है ? कुत्ता सडक के बीचो-बीच क्यूं बैठता है ? कुत्ता उंची जगह को देखकर ही लघुशंका क्यूं करता है । कुत्ता साधु को देखते ही भौंकने लगता है कि महाराज आपकी जगह यहां नही है आप का तो काम तपस्या करना है ..इश्वर की सेवा करना है ..आप को तो जंगल में होना चाहिये फिर आप दुनियादारी की भीड में क्या कर रहे है।कुत्ता धरती को अपनी माता मानता है फिर भला उसी माता के शरीर पर पेशाब कैसे करें ।कुत्ता सडक के बीचों बीच इसिलिये बैठता है कि इसी मार्ग से संत , साधु , महात्मा के चरण धूल पडे है उन्ही को पूजता है ..कुत्ता चाहता है कि इस जन्म से मुक्ति पाकर इश्वर कहीं उन्हीं महात्माओं के चरणों की धूल में सेवा करने का अवसर दे दें।

Tuesday, May 26, 2009

रात को मैनें मुजरा देखा


बनारस की सुबह ..अवध की शाम के बारे में सुना था । हमारे एक दोस्त ने मुझे बताया कि भाइ उसके साथ अगर आपने सीताराम पुर का मुजरा नही देखा .तो शुरु के दोनों जुमले अधूरें है । हमारे वो अजीज मित्र एक बार मुझे ले गये सीतारामपुर । फिल्मों में मुजरें का सीन देखा करता था । नर्तकी का नाचना ..मसनद लगाकर जमींदार टाइप रइसों का महफील में बैठना ..जाम और पान के साथ वाह वाह कहना आदि दृश्य मेरे दिमाग में नाच रहे थे । जैसे ही शहर में हमने प्रवेश किया ..तबले की थाप और हारमोनियम की आवाज यह इशारा कर रहे थे कि आप निश्चिचित जगह पर पहुंच गये है । हमलोगों ने अंदर प्रवेश किया ...वो उस इलाके की प्रसीद्ध नृत्यांगना या आप जो कह लें ..समाज उसे यह शब्द नही देगा । मोहतरमा ने आदाब कहकर हमलोगों का स्वागत उसी अंदाज में किया जिस तरह की अदा ऐतेहासिक सिरियलों में बादशाहों के लिये कनीज किया करती है । तुरंत बंगाल पुलीस की गाडी वहां आ गइ । मोहतरमा ने १०० रु का कर अदा किया पुलीसवालें वहां से चले गये । बहुत छोटा कमरा था ...मेरे दिमाग में तो पाकिजा वाली हीरोइन मीना कुमारी वाला लंबा सा बरामदा ..पर्दा ..बगैरह बगैरह घूम रहा था । खैर ..तबला वाला बजैया आ गया जो उम्रदराज हो चुका था ..साथ में हारमोनियम मास्टर और बैंजो वाला । मोहतरमा ने डांस शुरु किया । डांस इसलिये कह रहा हूं क्यूंकि अब मुजरे में छाडे रहियें ..और इन्हीं लोगों ने की जगह ...जस्ट चियां चियां ..और ना ना ना नो इंट्री जैसे गानों ने ले रखी थी । डिस्कों और पता नही नये नये जमानें वाले फिल्मी गीतों पर डांस करते हुये प्रत्येक गानों पर २०० रु की छूट भी देनी पड रही थी ...मैने कहा कोइ पुराना फिल्मी गीत गाते तो बेहतर होता ...तबला मास्टर ने कहा कि हूजूर अब पुराने कद्रदान कहा रह गये ..महफिल तो बेनूर सी हो गइ है ..और ये ( यानि नर्तकी ) भी तो नये जमाने वाली है । १० गानें हुये थे और मेरे जेब से २००० रुपये जाया हो चुके थे । हने सोचा इसी महफिल और मुजरे में तो कइ राजवाडे और घराने लूटकर खाक हो गये चलो भागों यहां से और यह मुजरा मेरे जिंदगी का पहला और अंतीम हो गया ।

Sunday, April 26, 2009

केरल जहां चुनावी मुद्दे राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय है ।


२० लोकसभा सीटों वाले केरल में लोकसभा चुनाव एक चरण में ही खत्म हो गये है । मीडिया में राजनीतिक रसूख रखने वाले राज्यों की तो खूब चर्चा होती है लेकिन साउथ इंडिया के इस राज्य पर राष्ट्रीय मीडिया ने ज्यादा तवज्जों नही दी । भला हो शशी थुरुर की तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस की उम्मीदवारी का जिसकी बजह से यह राज्य राष्ट्रीय मीडिया में थोडा स्पेस पा सका। यहां कहा जाता है कि एक बार तू तो दूसरी बार मैं। पिछली बार सीपीएम की अगुवाइ वाली लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट ने लगभग क्लीन स्वीप किया था ..२० में से १९ । एक सीट पर कांग्रेस की अगुवाइ वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के इंडियन मुस्लिम लीग के उम्मीदवार और वर्तमान में विदेश राज्य मेंत्री ई. अहमद मंजेरी सीट से जीत पाये थे । लगभग बीसों लोकसभा सीटों में कंपेनिंग एक तरह की । मुद्दों के क्या कहने ...अगर उत्तर भारत की बात करें तो राम और रोटी के साथ साथ नाली और गली भी लोकसभा चुनावों के मुद्दे होते है । यहां मुद्दे अलग किस्म के थे ..मसलन इजरायल सरकार के द्वारा गाजा पर हमले कर निर्दोष मुसलमानों का खून बहाया जा रहा है ..केंद्र सरकार का इस पर क्या स्टैंड है ....भरत अमरीकी परमाणु करार से भारत को क्या फायदे होने वाले है ....कांग्रेस को प्रो इजरायल बताने वाला लेफ्ट यह बताये कि बंगाल के भूतपूर्व मुख्यमंत्री २० लोगों के बिजनेस डेलीगेशन को लेकर इजरायल में क्या करने गये थे । चुनाव की तिथी घोषित होने के महज २ दिन पहले भारत सरकार ने इजरायल के साथ बडा मिसाइल डील क्यूं किया ? हालांकि स्थानिय मुद्दों की बात करें तो उनमें दो बडे ही महत्वपूर्ण थे । पहला ऐसएनसी लेवनीन डील जिसमें कहा जाता है कि कनाडा की कंपनी से हुए इस डील में तत्कालिन उर्जा मंत्री और वर्तमान में स्टेट सीपीएम सेकेरेट्री पिन्नारी बिजयन की कथित भूमिका पर राज्य सरकार के द्वारा लीपापोती की कोशिश की गयी है । दूसरा सबसे अहम मुद्दा यूडीएफ का एलडीएफ पर था कि लेफ्ट ने चुनावी लाभ के लिये अपने सिद्दांतो की बली देकर पीडीपी यानि पिपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के विवादस्पद नेता अब्दुल नसीर मदनी के साथ चुनावी तालमेल किया । ये वही मदनी है जिनपर १९९६ में हुए कोयंबतूर बम व्लास्ट का दोषी माना गया था और बाद में आठ साल की सजा भी हुइ थी । हालांकि बाद में कोर्ट इन्हें बेकसूर मानते हुए बरी कर दिया था । अगर पिछले विधानसभा चुनावों की बात करें तो कांग्रेस नीत यूडीएफ सरकार के मुख्यमंत्री ओमन चांडी के साथ मदनी के बडे बडे पोस्टर थे और जनता से यह कहा गया कि मदनी को झूठे आरोपों के तहत फंसाया गया है । हालांकि इस चुनाव में चांडी मतदाताओं से अपनी भूल के लिये माफी मांगते नजर आये । मदनी से जब हमारी बात हुइ तो मदनी ने कहा कि मुझे यूडीएफ के द्वारा फंसाया गया । मैं अगर अलगाववादी हूं तो यूडीएफ के परम सहयोगी इंडीयन मुस्लिम लीग क्या है ? कायदे आजम के द्वारा स्थापित इस पार्टी का झंडा आज भी पाकिस्तानी है । खैर पिनारी ने इस चुनाव में एक बहुत बडा जुआ खेला है ...लेफ्ट ने अपनी कूटनीति के तहत मुस्लिम लीग को घेरने के लिये पीडीपी को आगे किया है ..हालांकि इसका परिणाम यह हुआ है कि मल्लपुरम से मुस्लिम लीग के टिकट पर चुनाव लड रहे ई अहमद और पुनानी से किस्मत आजमा रहे इटी बशीर को पीडीपी की बजह से काफी पसीना बहाना पड रहा है । कहा जाता था कि बनातवाला हो या सुलेमान सेठ एक बार नामांकन करने आते थे और दूसरी बार जीत का प्रमाणपत्र लेने । आपको याद होगा कि पुनानी सीट को लेकर सीपीआइ ने पूरे राज्य में अकेले चुनाव लडने की घोषणा कर दी थी ..हालांकि बाद में समझौते के तहत सीपीएम ने सीपीआइ को वायनाड जैसी जोखिम भरी सीट दे दी वही पुनानी सीट पीडीपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार रंडथानी के लिये छोड दी । मल्लपुरम में हमने ई अहमद के बडे बडे कट-आउट देखें जिसमें अहमद यासर अराफत के साथ गले में गले डालकर शायद मतदाताओं को ये जता रहे थे कि फिलीस्तीन के सच्चे हितैषी वही है । उधर कांग्रेस के तिरुवनंतपुरम से उम्मीदवार शशी थुरुर को विरोधियों ने घेर रखा था उनपर आरोप लगाया जा रहा था कि उन्होने अपने एक लेख में इजरायल सरकार की वंदना की थी । थुरुर का कहना था कि मैनें हजारों लेख लिखें अगर उसमें से पांच लाइन इजरायल सरकार की किसी खूबी के बारे में रेखांकित किया तो विरोधी लोग उसी को लेकर मेरे पिछे पड गये है । वहां के लोगों की मानें तो उनका कहना था कि यहां के मतदाता विधानसभा चुनावों में सीपीएम के साथ तो हो जाते थे लेकिन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को सपोर्ट करते थे...बजह थी कि केंद्र की राजनीति में सीपीएम की किसी भूमिका का ना होना । हालांकि सन १९९६ के लोकसभा चुनावों के बाद जिस तरह से तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने में लेफ्ट ने हरकिशन सिंह सुरजीत की अगुवाइ में किंग मेकर की भूमिका निभाइ तब से केरल के मतदाताओं को लगा कि लेफ्ट भी केंद्र की राजनीति में भूमिका निभा सकती है । उसके बाद से लोकसभा के चुनावों में लेफ्ट का प्रदर्शन निरंतर बेहतर होता गया । शायद यही कारण है कि वर्तमान तीसरे मोर्चे के घटक दल भले ही केंद्र में अपनी भूमिका को लेकर ओपेन है लेकिन लेफ्ट नन कांग्रेस और नन बीजेपी की सरकार बनाने के लिये ज्यादा मुखर है ।

Monday, April 13, 2009

वशिष्ठ बाबू दिल्ली के एक अस्पताल में एडमीट

वशिष्ठ बाबू को इंस्टीच्यूट आफ ह्यूमन विहैवियर एंड एलायड साइंसेज दिलशाद गार्डेन में चेकअप के लिये लाया गया है । यहां वो पहले भी दिखा चुके है । जिन सज्जन को गणीत के इस महानायक से भेंट करनी हो ..मदद करनी हो वो यहां पहुंचकर उनकी स्थितियों से खुद रुबरु हो सकते है । उनके जीवन के असाधरण पहलूओं को लोगों तक पहुंचाने के लिये अभी मैं प्रयासरत हूं।

Monday, February 16, 2009

पिंजडे का पंछी


वर्तमान राजनैतिक माहौल चाहे जो कुछ भी हो ..नेताओं के भाषण या उनके कार्यक्रम से पहले लाउडस्पीकर पर आप हमेशा फिल्मी राष्ट्रीय गीत ही सुनेंगे । ऐं मेरे वतन के लोगों ..या दे दी हमें आजादी ..या आओ बच्चे तुम्हें दिखायें ..। ऐसा लगता है कि कवि प्रदीप के बाद फिल्मी गीतों में देशभक्ति से ओतप्रोत गीतों का टोटा पड गया । देश आगे बढा लोग विकास के पथ पर हम आगे बढते गये हिन्दी फिल्मों ने तकनीक और आधुनिकता की सारी हदें पार कर दी । लेकिन राष्ट्र प्रेम से भरे गीत शायद कवि प्रदीप के अवसान के साथ ही खत्म हो गये । हो सकता है कि वक्त का तकाजा हो जब राष्ट्र प्रेम से संबंधित गीत उस समय बहुत ज्यादा प्रासांगिक हो जब देश अग्रेजों के खिलाफ स्वाधिनता की लडाइ लड रहा था । हालांकि १५ अगस्त को स्वाधिनता दिवस और २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस आज भी मनाये जाते है ..वक्त बदला और समय की मांग भी तो क्या हम सिर्फ इतना कह कर संतोष जता सकते है कि वह समय मांग कर रहा था ऐसी गीतों के जनमने का । चलिये इसी बहाने कवि प्रदीप जी को याद कर लिया जाय । ६ फरवरी १९१५ को मध्यप्रदेश में जन्में पंडित रामचंद्र दिव्वेदी से प्रदीप बनने की कहानी कम दिलचस्प नही है । कवि सम्मेलनों और मुशायरों में शिरकत करने वाले पंडित जी को किसी ने मिलवाया उस समय के महान फिल्मकार हिमांशु राय से ..हिमांशु राय उस वक्त काफी परेशान थे क्यूंकि उनकी लगातार छः फिल्में बुरी तरह पिट गयी थी । पहले पंडित जी का इंट्रव्यू हुआ ..उनसे कहा गया कि आशा है आप सेलेक्ट कर लिये जायें। पंडित जी को लगा कि देखने में भला हूं शायद यहां हीरो के लिये मेरा चयन किया जाएगा । बाद में बताया गया कि उनका चयन गीतकार के रुप में २०० रुपये मासिक पर हो गया है । १९३९ में अशोक कुमार और देविका रानी अभिनीत फिल्म कंगन बेहद सफल हुइ । इस सफलता के पिछे कवि प्रदीप के लिखे हुए चार गानों ने तो मानो पूरे देश में ही धूम मचा दी । फिर तो प्रदीप बढते रहे और बढते ही गये । १९४० में बंधन फिल्म का हिट गीत ..चल चल रे नौजवान ..और १९४३ में किस्मत फिल्म का गीत ..दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है ..इस गीत ने तो आजादी के आंदोलन में संजीवनी का काम किया ..थियेटरों जब ये फिल्म चल रही होती थी तो इस गाने को दर्शकों की विशेष फरमाइश पर दुबारा रिबांइड करके बजाना पडता था । बंबइ के एक थियेटर में तो यह फिल्म लगातार साढे तीन सालों तक हाउस फुल चलती रही। इस गीत की मकबुलियत की कीमत कवि प्रदीप को चुकानी पडी और अंग्रेजों ने उन्हें सलाखों के पिछे कर दिया । पुनर्मिलन , झूला , नया संसार , अंजान, किस्मत आदि के गीतों ने उनके कद को काफी उपर बढाया । मन्ना डे की आवाज में प्रदीप का लिखा गीत ...उपर गगन विशाल .....नेचर जो हमें गाड गिफ्ट के रुप में मिला है उसकी महत्ता को कितने सुंदर शब्दों में बताती है । विभाजन पर लिखा गया ..देख तेरे संसार की हालत ...उसी तरह बापू के सम्मान में ..दे दी हमें आजादी हो या आओ बच्चें तुम्हें दिखायें...कोइ लाख करें चतुराइ (चंडी राजा) या इंसान का इंसान से हो भाइचारा ..या पिंजडे के पंछी रे ..राष्ट्र-भक्ति और मानवीय मूल्यों और सामाजिक सरोकारों को एक सूत्र में पिरोने वाले इस अमर गीतकार का कोइ सानी नही । बात प्रदीप की हों और ऐ मेरे वतन के लोगों की बात ना हों तो कवि प्रदीप के बारे में कुछ कहना अधूरा रहेगा । माहिम के एक फुटपाथ पर सिगरेट के डिब्बे पर उन्होने इस ऐतेहासिक गानें को लिखा । पहले आशा भोंसले इस गाने को गानेवालीं थी लेकिन सी रामचंद्र और प्रदीप ने फैसला किया लता से इस गाने को गवांने के लिये । हिंदुस्तान और चीन के युद्ध में शहीदों को समर्पित लता जी के द्वारा गाये गये इस गीत ने २६ जनवरी १९६३ को दिल्ली के रामलीला मैदान में तत्कालिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु को रुला दिया । इस गीत को कवि प्रदीप ..लता जी ..और सी रामचंद्र ने ..वार वीडो फंड बनाकर शहीदों को समर्पित कर दिया । इस गाने की रायल्टी सदा सदा के लिये शहीदों की विधवाओं को मिलती रहेगी । २५ अगस्त २००५ को मुंबइ हाइ कोर्ट ने एचएमवी कंपनी को १० लाख रुपये शहीदों के परिवारों को इस गाने की रायल्टी के रुप में अदा करने के निर्देश दिये । लगभग १७०० गाने को कलमबद्ध करने वाले इस महान गीतकार को १९९७ में दादा साहेब फाल्के अवार्ड से नवाजा गया । राष्ट्र प्रेम से लोगों के अंदर जोश का संचार करने वाले इस गीतकार का अंतीम समय काफी मुश्किलात और गुरबतों से जूझता हुआ बीता ....इस पिंजडे के पंछी का दर्द दुनिया नही समझ पायी ..और कवि प्रदीप यह गाते हुए इस दुनिया से विदा हो गये ...चल अकेला चल अकेला चल अकेला तेरा मेला पिछे छूटा राही चल अकेला।

Friday, February 6, 2009

ओझा जी बोझा नही है


छो‍टे शहरों से झोला उठाकर चलने वालों ने भारतीय क्रिकेट जगत को हाल के वर्षों में एक से बढकर एक सितारों को जगमगाने का अवसर दिया । भारतीय क्रिकेट का नया नगीना है फिरकी गेंदबाज प्रग्यान ओझा । अगर देखा जाय तो बिशन सिंह बेदी के रिटायरमेंट के बाद लेफ्ट आर्म स्पिनर के रुप में दिलीप दोषी , मनिंदर सिंह , वेंकटपती राजू , रवि शास्त्री , सुनील जोशी आदि ने भारतीय क्रिकेट को अपनी सेवाएं दी । हालांकि दिलीप दोषी पूर्ण रुप से गेंदबाज थे वहीं शास्त्री और सुनील जोशी आलराउंडर के रुप में भी याद किये जाते है । ओझा ने लंका के खिलाफ पिछले दो मैचों में जिस तरह का प्रर्दशन किया है वो भारतीय क्रिकेट के लिये शुभ संकेत है । लंका के खिलाफ तीसरे एक दिवसीय मैच में ओझा की गेंदों पर लंकाइ बल्लेबाज डांस करते नजर आये । इनकी गेंदो को जो टर्न मिल रहा था उसी पिच पर महान गेंदबाज मुरलीधरन और लंकाइ सनसनीखेज अजंता मेंडीस टर्न के लिये तरसते रहें। अगर गुरुवार को खेले गये वन डे पर निगाह डालें तो पांच ओवरों के बाद कप्तान धोनी ने ओझा के ओवरों को बचा के रखा और सहवाग के साथ दूसरे छोर पर युसूफ पठान को आजमाया । यह साबित करता है कि जब मैच में आगे हिंदुस्तान को मुश्किलात का सामना करना पडता तो तुरुप के इक्के के रुप में ओझा का इस्तेमाल किया जाता । ओझा फ्लाइट पर नियंत्रण रखने के साथ आर्मर का प्रयोग जब बीच बीच में बखूबी करते है । अपने ओवर की छः गेंदो को अलग वेरियेशन से गेंद डालना एक परिपक्व गेंदबाज की खूबी को ओझा साबित करते नजर आये । ५ सितंबर १९८६ को भुवनेश्वर में जन्में ओझा हैदराबाद की ओर से रणजी में खेलते है । सबसे पहले वो चयनकर्ताओं की नजर में तब आये जब उन्होने भारत की अन्डर-१९ टीम की ओर से खेलते हुए दो मैचों में २३ विकेट झटक डालें । एशिया कप २००८ में वो मेन्स इन व्लू के सदस्य बनें । आइपीएल में ओझा डेक्कन चार्जस की ओर से खेलते है हालांकि लीग में ये टीम बुरी तरह फ्लाप रही थी लेकिन ओझा ने अपनी टीम के लिये ११ विकेट झटककर अपनी विश्वसनियता को साबित किया । २२ वर्षिय ओझा प्रथम श्रेणी के ३२ मैचों में १२६ विकेट हासिल कर चुकें है । सचमुच ओझा भारतीय स्पीन गेंदबाजी के लिये भविष्य के उदयीमान सितारें है ।

Monday, January 5, 2009

टी.टी.एम यानि ताबडतोड तेल मालिश


खबर है पटना से । मशहूर चिकित्सक और राजनेता सीपी ठाकुर ने नीतिश कुमार को नोबेल पुरस्कार से नवाजने की मांग की है । मिलना भी चाहिये । रेलमंत्री और अब बिहार के मुख्यमंत्री । बिहार अब कुशासन से मुक्त होकर सुशासन की राह चल पडा है । अपराधी बिहार से भाग गये है । चैन और अमन की नयी धारा बह रही है , बिहार बाढ की विभिषीका से मुक्त होकर कृषि के मामले में आत्मनिर्भर होने को है । पटना की सडके हेमा मालिनी की गाल की चिकनाहट से भी चिकनी हो गइ है । मुख्यमंत्री के जनता दरबार की मिसाल तो दानी राजा भोज की दानवीरता और न्याप्रियता को भी तुच्छ बना रही है । और पुलीस प्रशासन के क्या कहने आजादी के दशकों बाद वह जनता के सच्ची सेवक की भूमिका में नजर आ रही है । रामराज्य देने का दिवास्वपन भाजपा ने भले ही देखा हो लेकिन हकीकत की कसौटी पर बीजेपी के छोटे भाई जद यू के करिश्माइ नेता नीतिश कुमार ने यह साबित कर दिया है कि मुश्किल कुछ भी नही सिर्फ वादों और आश्वासनों के पत्थर तो दिल से उछालों यारों। सबकुछ मान लिया जाये तो क्या सचमुच ये सारे तथ्य नीतिश जी को नोबेल पुरस्कार का हकदार बनाते है । वैसे सचमुच अगर इस प्रस्ताव के मसौदे को भारत सरकार स्वीडन भेज दें तो इसका सबसे कडा प्रतिरोध अमरिका के नवनियुक्त सदर बराक ओबामा करेंगे । आप पूछेंगे ऐसा क्यूं। जी हां भले मानस नीतिश जी ने अमरीकी चुनाव के दौरान ये घोषणा कर दी थी कि अगर उन्हें मौका मिला तो वे अमरीका जाकर हिलेरी क्लिंटन के लिये एनआरआइ बिहारियों से समर्थन मांगेगे। खैर हिलेरी तो चुनाव मैदान से हट गइ। लेकिन विश्वस्त सूत्रों से ये पता चला है कि नीतिशजी के उस बयान से बराक ओबामा अभी भी नाखुश चल रहे है । जब विश्व का परम शक्तिशाली राष्ट्र का मुखिया ही इस रास्ते में अडचन लगा देगा तो भाइ नोबेल पुरस्कार तो भारत कुमार यानि सुशासन बाबू के हाथ में आने से रहा । अब जरा सीपी ठाकुर जी के आग्रह पर गौर फरमाया जाये . तो .लालू जी का मानना है कि लोकसभा चुनावों को देखते हुए पटना की सीट को नीतिश बाबू की तरफ से हरी झंडी मिल जाये तो ठाकुर जी का दावा बीजेपी पर आसानी से दबाब बनाने में काम आएगा । लालू जी ने ठाकुर जी के इस बयान को टी.टी.एम यानि ताबडतोड तेल मालिश कहा है ...आप क्या कहेंगे।