Saturday, August 14, 2010

पिपली लाइव का असली हीरो नत्था नही राकेश है ?


फिल्म रिलीज होने के पहले बहुत कुछ कयास लगाये जा रहे थे ..किसान कर्ज माफी.... ग्रामीण भारत की समस्या आदि आदि इस फिल्म का थीम है । सही मायनों में यह फिल्म मीडिया और खासकर खबरिया चैनलों को खबर लेती दिखती है । भाजपा नेता प्रमोद महाजन को गोली लगने के बाद चार दिन तक जिंदगी और मौत से वो जूझते रहे ..आखिरकार उनका दुखद अंत हुआ। लेकिन उन चार दिनों तक खबरिया चैनलों के रिपोर्टर ..खबरनवीस कम डाक्टर ज्यादा हो गये थे। स्टिक लेकर लीवर का नक्शा बनाकर वो बताते थे कि गोली गोल व्लाडर को छूती हुइ निकली है ..इसलिये संभावना है कि प्रमोद महाजन की जान आसानी से बच जाएगी ...कोइ कहता था कि नही मेडिकल साइंस के मुताबिक गोली लगने के बाद टेटनस का खतरा हो गया है ..इसलिये उनकी जिंदगी खतरे में है । कुछ ऐसा ही उदाहरण नत्था के साथ इस फिल्म में है । आत्म हत्या के डर से उसे एक दिन में २० २० बार शौचालय के लिये जाना पडता है । एक बार शौचालय करने के बाद अहले सुबह नत्था गायब हो जाता है । उसकी ट्टी पर कुमार दिपक नाम के रिपोर्टर का विश्लेषण शुर होता है ...नत्था गायब है ..लेकिन वहीं ये जगह है जहां नत्था ने अंतिम बार अपना मल त्याग किया है ...इसका पाखाना सफेद है ..इसलिये जाहिर है कि नत्था जिस मनोस्थिती से गुजर रहा है उस हालत में ऐसा ट्टी होना लाजिमी है ..यह मनोचिकित्सकों का भी मानना है । चैनलों में एक जीव है जिसका नाम ..स्ट्रिंगर होता है । कस्बे का संवाददाता होता है । राष्ट्रीय चैनलों में कस्बों की खबर गाहे बगाहे ही फलक पर आती हों लेकिन जब कोइ बडी घटना कस्बे के आस पास हो जायें तो वही स्ट्रिंगर चैनलों के लिये अति महत्वपूर्ण हो जाता है। जहानाबाद जेल ब्रेक के दौरान एक स्थानिय स्ट्रिंगर ने ही उस खबर को ब्रेक किया था ..चैनल की टीआरपी भी बढी ..हालांकि चैनल ने उस स्ट्रिंगर को प्रश्स्ती पत्र के साथ साथ सुपर स्ट्रिंगर बनाया और नकद भी दिया । खैर ऐसा सबके साथ नही होता है । कुछ ऐसा ही पिपली लाइव में राकेश नाम का किरदार है जो स्थानिय अखबार का संवाददाता है। नत्था की खबर उसी के अखबार में सबसे पहले छपी । बाद में यह बडी खबर बन गयी ..राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक हिल गयी । सारे चैनलों के बडे सूरमा पिपली पहुंच गये । एक बडे चैनल की बडी अंग्रेजीदा रिपोर्टर भी पहुंची ...राकेश उन्हें ऐसीस्ट कर रहा था । उन्हीं के साथ साथ घूमता था और उनके चैनल की टीआरपी बढाने में मदद कर रहा था । कुछ दिन साथ रहने के बाद राकेश ने मोहतरमा को अपना सीवी बढाया ...मोहतरमा ने उसे अपने पास रखने को कहा क्यूंकि उसकी नौकरी से कहीं ज्यादा नत्था की स्टोरी थी । उस गांव में एक और किसान कर्ज और भूख से मर जाता है लेकिन वो चैनलों के लिये खबर का हिस्सा नही बन पाता है ...राकेश और मोहतरमा में वैचारिक तकरार भी इसको लेकर होता है ,,लेकिन मोहतरमा भारी पडती है क्यूंकि वो बडे चैनल की बडी रिपोर्टर है । पीटूसी करने के पहले पिपली के धूल धूसरीत स्थान में फिल्ड रिपोर्टिंग करते वक्त वह अपना मेकअप करना नही भूलती । नत्था कहां है ..राकेश की खोजी पत्रकारिता रंग लायी और नत्था का उसने पता लगा लिया । मोहतरमा दौडती है साथ में और चैनलों के रिपोर्टर अपनी ओवी के साथ उधर लपकते है । इसी बीच एक विस्फोट मे राकेश की मौत हो जाती है ...नत्था गुडगांव निकल पडता है दाढी मुंडवाकर मजदूरी करने ...लेकिन खबर यही बनती है कि विस्फोट में नत्था ही मर गया । सारा मसाला खत्म चैनल वाले के लिये ...ओवी और चैनलों के काफिले दिल्ली कूच कर जाते है ..मोहतरमा सबसे अंत में निकलती है और अपने सहयोगियों से पूछती है ...राकेश कहां है ...वो फोन भी रिसीव नही कर रहा है। गाडी में बैठती है और वो भी वापस दिल्ली स्टूडियो कूच कर जाती है । दिल्ली के पत्रकारों को स्ट्रिंगर कहे जाने वाले ये जीव उनकी ओर आशा और विश्वास भरी नजरों से देखते है ..सोचते है हरि मिल गया ..अब भवसागर पार कर जायेंगे ......लेकिन काम निकलने के बाद यही दिल्ली वाले पत्रकार उस जीव का फोन भी नही रिसीव करते....हां उसके विजुवल्स पर नक्सल बगैरह की स्टोरी बना डालते है ....और दिल्ली की झाडियों के बीच भाव भंगिमाएं बनाकर एक पीटूसी पेल डालते है । ...चैनल पर चलता है ..गुमला के जंगलों से कुमार दीपक की ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट ..........