लता एक ऐसा नाम जिनकी कृतियों के बारे में लिखना मेरे जैसों के वश की बात नही। स्वर कोकिला जैसे विभूषणों से अलंकृत इस महान गायिका जब अपने चरम पर थी तब ना जाने कितनी प्रतिभाएं काल के गाल में समाती चली गइ थी। लता ने किसी एक को अपने आगे ना पनपने का मौका दिया और ना ही आगे बढने का।लता ने अपने पूरे फिल्मी करियर में खासकर महिला गायिकाओं को अपना निशाना बनाया।तितली उडी ...फूल ने कहा तू आजा मेरे पास ..जैसे हसीन गाने को अपना सुर देने वाली गायिका शारदा.. लता की प्रताडना की सबसे अहम उदाहरण है।शंकर और जयकिशन की जोडी ने शारदा को ब्रेक क्या दिया ..लता ने शंकर जयकिशन के कंपोजीशन में गाना ना गाने का प्रण कर लिया । उन्हीं दिनों राजकपूर अपने सपनों की फिल्म मेरा नाम जोकर के निमाॻण में लगे थे । राजकपूर की बकायदा एक टीम थी जिसमें लता , मन्ना डे , मुकेश , शैलेन्द्र , हसरत जयपुरी और शंकर जयकिशन महत्वपूर्ण सदस्यों में से एक थे।मेरा नाम जोकर में शंकर जयकिशन बकायदा अपने कंपोजिशन तैयार कर चुके थे ।्अचानक लता ने राजकपूर से कहा कि शंकर को फिल्म से निकालो तभी मैं आपकी फिल्म में स्वर दे सकूंगी । राजकपूर के लिए ये कठिन मरहला था । राजकपूर ने शंकर जयकिशन को फिल्म से बाहर करने से इनकार कर दिया । मेरा नाम जोकर हिन्दी फिल्म इतिहास की बहुत बडी फिल्म होकर भी बाक्स आफिस पर पिट गयी । लोगों ने कहा लता ने नही गाया तो फिल्म को तो पिटना ही था। राजकपूर का एक बडा सपना खाक हो चुका था।खैर उसके बाद बाबी बनी , राजकपूर ने शंकर जयकिशन को चलता कर दिया , लता जी ने इस फिल्म में अपना बहुमूल्य सुर दिया । फिल्म ने टिकट खिडकी पर सफलता के झंडे गाड दिये। कुछ ही दिनों के बाद शंकर भी इस दुनिया से कूच कर गये।वाणी जयराम , हेमलता , चंद्राणी मुखर्जी , रुना लैला , सुधा मल्हो्त्रा ,प्रीती सागर ये कुछ ऐसे नाम है जो प्रतिभा संपन्न होने के बाबजूद लता की हेकडी के आगे नही टिक सकी और गुमनामियों के अंधेरे में खो गइ। लता के गाये कइ अमर गीतों के समानांतर क्या ये गाने आपके कानों में रस नही घोलते....बोले रे पपीहरा(वाणी जयराम) ....तुम मुझे भूल भी जाओं तो ये हक है तुमको (सुधा मल्होत्रा )..दो दिवाने शहर में (रुना लैला)..अंखियों के झरोखे से(हेम लता) ...तुम्हारे बिना जी ना लगे घर में (प्रीती सागर).....
Friday, May 2, 2008
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2 comments:
बहुत सही मुद्दा उठाया आपने.
पं. नेहरू की तरह हमारी लताजी भी महान हैं.
आलोक जी सुर कोकिला लता मंगेशकर के बारे में आपकी इस जानकारी का आधार क्या है मैं नहीं जानता । लेकिन इतना जरूर जानता हूं कि प्रतियोगिता के मैदान में अपनी सफलता सुनिश्चित करने के लिए कोई किसी का सगा नहीं होता। सुर के संसार में अपनी पहचान बनाने के लिए संघषॻ कर लता से आप क्या उम्मीद करते हैं कि वो अपने जमाने की प्रतिभागियों को संरॿण प्रदान करती। शायद नहीं । मैं आपकी इस बात से सहमत हूं कि उन तमाम गायिकाओं को पयाॻप्त संरॿण मिला होता तो वो भी सुर की दुनिया में एक मुकाम पाती । आलोक जी लता जी जिस विधा की दुनिया में हैं वहां संरॿण से अधिक प्रतिभा का होना भी आवश्यक होता है । किसी गायिका के एक दो अच्छे गायन से कोई मुकाम नहीं मिलता । उसके लिए आवश्यक है कि सतत प्रक्रिया। हो सकता है आप द्वारा वणिॻत गायिकाओं के जीवन की बाधाओं ने पीछे ठकेल दिया हो।आपने जिन कणॻप्रिय लाइनों का जिक्र किया क्या उन लाइनो पर ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी..... भारी नहीं बैठती। आज भी राष्ट्रीय त्यौहारों पर लता के ये सुर किसी भी देशभक्त के रोंगटे खड़ा कर देता है।फिर अंतिम बात आपने सुर सम्रागी लता मंगेशकर के बारे में जिस (हेकड़ी) शब्द का इस्तेमाल किया है वह बहुत ही अप्रिय है। सुर साधना से आता है। सुर में सौम्यता होती है । सुर में आत्मा बसती है। आत्मा में परमात्मा का निवास होता है।जिसके कंठ में इतनी खूबियां हो वह अहंकारी नहीं हो सकता। क्योकि कभी किसी को उंचाइयों पर नहीं पहुचने देता । दृश्टान्त अपवाद होते हैं और अपवादों से नियम नहीं बना करते। किसी विशाल व्यक्तित्व में कमियां निकालना सूरज पर थूकने के समान होता है।
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