Wednesday, June 4, 2008

लालू जी की लीला


लालूजी के बारे में ज्यादा लिखने की आवश्कता नही ..क्यूंकि वे खुद में एक बडे आइकन है..९० में सत्तासीन हुए लालू के बारे में ६ ..सात साल तक कोइ सोच भी नही सकता था कि बिहार की गद्दी से कोइ इस आदमी को जुदा कर सकता है ....शुरुआती दौर में जहां राजनीतिक हलके में मसखरा कहा गया वहीं बौद्धिक लोगों ने ताश का तीरपनवा पत्ता करार दिया ..लेकिन लालू की लोकप्रियता बढती ही गयी। मैं सोचता हूं कभी कभी आखिर इस व्यक्ति में खास क्या है ...सबसे खास था कि लालू ने अपने वोट बैंक का नब्ज पकड लिया था ...एक वाक्या सुनाता हूं ...सन २०० के आसपास गरीब रैली हुइ थी ..लालू इसके प्रचार प्रसार के सिलसिले में बिहार में जगह जगह सभाओं के माध्यम से जनता से भारी संख्या में पटना आने का दावत दे रहे थे ...मेरे कस्बे में भी आये ..मैं भी गया सभास्थल पर ...शाम हो गइ थी अंधेरा पसर रहा था ..लालू ने ज्यादा भाषण नही दिया ..भाषण समाप्त किया ..और रथ पर सवार अपने सहयोगी से कहा कि अरे जरा उ बिदेश से जो कैमरा लाए है दो हमको ...वस्तुतः वो कैमरा नही बल्कि जापानी टौचॆ था जिसकी लाइट ब्लिंक करती थी और सायरन की सी आवाज निकलती थी ...लालू ने अपनी जनता से कहा ..देखो भाइ ये कैमरा हम विलायत से लाए है और ये तुम लोगों का फोटू खिंचेगा ..और जब कल रैली समाप्त होगी तो मैं इसकी रिकाॆडिंग देखूंगा ...तब हमको पता चल जाएगा कि तुम लोगों में से कौन कौन रैली में नही पहुंचा है ...लालू ने उस टाचॆ को घूमाना शुरु किया ...मेरे साथ जनता की भीड में एक दूध बेचने वाला इन्सान पटना से अपना दूध बेचकर वापस अपने गांव जा रहा था लालू जी चूंकि भाषण दे रहे थे तो बेचारा ठहरकर लालू जी का भाषण सुन रहा था। जैसे ही टाचॆ की रौशनी उसके मुख पर पडी उसने कहा अरे बाप रे बाप लालू जी फोटुकवा खिंच लिये कल बेटी के यहां जाना था ..अब तो हमें रैली में जाना ही होगा ...खैर पढे लिखे लोग तो लालूजी की इस नौटंकी को समझ रहे थे लेकिन भोली भाली जनता को झांसा देना कहां का न्याय है आप ही बताइये.......

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