Monday, June 16, 2008

बुझौवल

यकरंग उदूॻ के अजीम शायर थे ...कुछ पहेलियां उन्होने लिखी ..दो पहेलियां आपके सामने रख रहा हूं..बुझौवल है आप बताइये...

यकरंग वह घर कौन है , जामें है दस द्वार।
ऐसे घर में जो बसे , वाको क्या इतबार।। (जीव और देह )

यकरंग वह फल कौन है , बिन बोये फरियायँ।
बढत बढत इतने बढे , आखिर को झुक जायँ ।। (स्तन)

Friday, June 13, 2008

शायरी और शराब



हालांकि इस्लाम में शराब पीना वजिॆत है ..लेकिन उदूॆ शायरों ने जमकर शराब तो नही पी लेकिन धामिॆक उपदेशकों यानि वाइज की खूब फजीहत की...आइये देखते है कुछ चुनिंदा शायरों के चुनिंदा शेर...

शाम को जाम पिया सुबह को तौबा कर ली।


रिन्द के रिन्द रहें हाथ से जन्नत न गइ।। (अनाम)

................................................................................

रखते है कहीं पांव तो पडता है कहीं और ।


साकी तू जरा हाथ तो ले थाम हमारा।। (इँशा)

...................................................................................

कजॆ की पीते थे मय-औ यह समझते थे कि हां ।


रंग लाएगी हमारी फाका-मस्ती एक दिन ।। (गालिब)

.......................................................................................

अंगूर में धरी थी पानी की चार बूंदे ।


जब से वो खिंच गइ है , तलवार हो गइ है।। (अनाम)

......................................................................................

साकी तू मेरी जाम पे कुछ पढ के फूंक दे ।


पीता भी जाउँ और भरी की भरी रहे।। (अनाम)

....................................................................................

साकिया अक्स पडा है जो तेरी आंखों का ।


और दो जाम नजर आते है पैमाने में ।। (अनाम)
......................................................................................

दिल छोड के यार क्यूंकि जावे ?


जख्मी हो शिकार क्यूंकि जावे ?


जबतक ना मिले शराबे दीदार ,


आंखो का खुमार क्युंकि जावे ? (वली)

..........................................................................

रंगे शराब से मेरी नियत बदल गइ ।


वाइज की बात रह गइ साकी की चल गइ।


तैयार थे नमाज पे हम सुन के जिक्रे-हूर ।


जलवा बुतों का देख के नियत बदल गइ ।।


चमका तेरा जमाल जो महफिल में वक्ते शाम ।


परवाना बेकरार हुआ शमां जल गइ।। (अकबर)

.......................................................................................

मस्जिद में बुलाता है हमें जाहिदे-नाफहम ।


होता अगर कुछ होश तो मैखाने ना जाते।। (अमीर मीनाइ)
......................................................................................................

चलिये आज के लिए इतना ही पैग काफी है।

Wednesday, June 11, 2008

नारी तू नारायणी

( एक मित्र ने मुझे एक लतीफा मेल किया था ..मैनें पहले इसे नही सुना था ..हो सकता है आप ने इस लतीफे को सुना हो..कुछ भी हो मुझे बडा अच्छा लगा. चलिये इसे मैं अपने ब्लाग पर डाल रहा हूँ).

ग्यारह लोग एक हेलीकॉप्टर से रस्सी से लटक रहे थे।दस आदमी और एक औरत।रस्सी कमजोर थी और एक साथ इतने लोगों को लटका करले जाने में टूटने का खतरा था।कम से कम किसी एक आदमी को रस्सी छोड़नी ही थीअन्यथा सारे लोगों की जान खतरे में आ सकती थी। पर बलिदान कौन करे?यह सोच विचार चल ही रहा था कि महिला ने भावुक होकर कहना शुरु किया।उसने कहा कि वह स्वेच्छा से रस्सी छोड़ रही है,क्योंकि त्याग करना स्त्री का स्वभाव है।वह रोज की अपने पति और बच्चों के लिये त्याग करती हैऔर व्यापक रूप से देखा जाये तो स्त्रियां पुरुषों के लिये नि:स्वार्थत्याग करती ही आई हैं।जैसे ही महिला ने अपना भाषण खत्म किया,सभी पुरुष एक साथ ताली बजाने लगे।

Saturday, June 7, 2008

हमारा बिहार

एक बार एक पूवॆ प्रधानमंत्री ने कहा था मैं अटल हूँ बिहारी नही ...लेकिन जो बिहारी नही वो शायद हिँदुस्तानी भी नही ...क्यूंकि ...B= Bharat..I= India...H= Hindustan ..A= Aryavart ..R= Ruhelkhand होता है ।...

Wednesday, June 4, 2008

लालू जी की लीला


लालूजी के बारे में ज्यादा लिखने की आवश्कता नही ..क्यूंकि वे खुद में एक बडे आइकन है..९० में सत्तासीन हुए लालू के बारे में ६ ..सात साल तक कोइ सोच भी नही सकता था कि बिहार की गद्दी से कोइ इस आदमी को जुदा कर सकता है ....शुरुआती दौर में जहां राजनीतिक हलके में मसखरा कहा गया वहीं बौद्धिक लोगों ने ताश का तीरपनवा पत्ता करार दिया ..लेकिन लालू की लोकप्रियता बढती ही गयी। मैं सोचता हूं कभी कभी आखिर इस व्यक्ति में खास क्या है ...सबसे खास था कि लालू ने अपने वोट बैंक का नब्ज पकड लिया था ...एक वाक्या सुनाता हूं ...सन २०० के आसपास गरीब रैली हुइ थी ..लालू इसके प्रचार प्रसार के सिलसिले में बिहार में जगह जगह सभाओं के माध्यम से जनता से भारी संख्या में पटना आने का दावत दे रहे थे ...मेरे कस्बे में भी आये ..मैं भी गया सभास्थल पर ...शाम हो गइ थी अंधेरा पसर रहा था ..लालू ने ज्यादा भाषण नही दिया ..भाषण समाप्त किया ..और रथ पर सवार अपने सहयोगी से कहा कि अरे जरा उ बिदेश से जो कैमरा लाए है दो हमको ...वस्तुतः वो कैमरा नही बल्कि जापानी टौचॆ था जिसकी लाइट ब्लिंक करती थी और सायरन की सी आवाज निकलती थी ...लालू ने अपनी जनता से कहा ..देखो भाइ ये कैमरा हम विलायत से लाए है और ये तुम लोगों का फोटू खिंचेगा ..और जब कल रैली समाप्त होगी तो मैं इसकी रिकाॆडिंग देखूंगा ...तब हमको पता चल जाएगा कि तुम लोगों में से कौन कौन रैली में नही पहुंचा है ...लालू ने उस टाचॆ को घूमाना शुरु किया ...मेरे साथ जनता की भीड में एक दूध बेचने वाला इन्सान पटना से अपना दूध बेचकर वापस अपने गांव जा रहा था लालू जी चूंकि भाषण दे रहे थे तो बेचारा ठहरकर लालू जी का भाषण सुन रहा था। जैसे ही टाचॆ की रौशनी उसके मुख पर पडी उसने कहा अरे बाप रे बाप लालू जी फोटुकवा खिंच लिये कल बेटी के यहां जाना था ..अब तो हमें रैली में जाना ही होगा ...खैर पढे लिखे लोग तो लालूजी की इस नौटंकी को समझ रहे थे लेकिन भोली भाली जनता को झांसा देना कहां का न्याय है आप ही बताइये.......