Thursday, July 23, 2009

सूर्यग्रह्ण के तीन मिनट


(अभी मैं तारेगना में ही हूं। सूर्यग्रहण के बाद तारेगना को सब लोग जान गये है । आर्यभट्ट् के बारे में इसी शहर के रिसर्चकर्ता सिद्शेश्वर नाथ पांडेय हों या यूपी के प्रताप गढ में जन्में और तारेगना को अपनी कर्म स्थली बनाने वाले नारायण जी हों । नारायण जी एक बहुत अच्छे कवि भी है ..२२ जुलाइ को तारेगना के पूर्ण सूर्यग्रहण को देखा और एक छोटी कविता को हमारे पास भेजा है । हम उसे प्रकाशित कर रहें है । )


कौतुक विस्मय ललक पल पल छलक छलक ।

अद्भुत स्पन्दन ...अभिनंदन अभिनंदन शुभ शुभ पूर्ण सूर्यग्रहण ... अभिनंदन
अपलक नयन गगन गगन

छितीज चरण चरण

पल पल परिवर्तन

मन्द मन्द सिहरन सिहरन ,

सुन मौन गगन का उद्भोदन

कर वंदन ..... अभिनंदन अभिनंदन

भय-मान भयानक कृष्णावरण

पूर्ण प्रकाश वृत-चन्द्रशयन

वृन्द विहग सब विस्मित- शंकित सुन पद्चाप

काल - व्याल सन्निकट मरण

पर पायें तीव्र त्वरण अभिनंदन अभिनंदन ।

गर्भ ब्रहांड व्यवस्थित कालक्रम गति नियम ।

अनवरत स्वंय अनुपालन व्यतिक्रम

प्रमाण प्रत्यछ पवन ॥

विभु को कर हर प्राण नमन

अभिनंदन अभिनंदन ॥ ॥

शुभ शुभ पूर्ण सूर्यग्रहण

२२-७ के बाद का तारेगना

सारे विश्व की नजर तारेगना पर गडी थी । प्रकृति को ये रास ना आया ..२१ की शाम को वहां खूब बारिश हुइ..रात १२ बजे तक पूरा आकाश बादलों से ढका था ..सुबह के तीन बजे आसमान बिल्कुल साफ ..स्पेस के पंडितों के लिये ये लम्हा आनंददायी था । लोग खुश थे कि आज सदी की ये विशेष खौगोलिय घटना का आनंद वे मजे से ले सकते है । सुबह के साढे चार बजनेवाले थे कि अचानक बादलों का घेरा एक बार फिर आकाश में छाने के लिये व्याकुल हो उठा और देखते ही देखते बादलों के पूरे साम्राज्य ने आकाश को फिर से ढक लिया । उसके बाद उस मनहूस बादल ने तो पूरा खेल ही बिगाड दिया ...६ बजकर २४ मिनट का वो भी दृश्य सामने आया जब सुबह की लालिमा धीरे धीरे गोधूली वेला की ओर जाती देखी गयी..और अचानक एक बार फिर पृथ्वी रात के अंधेरें में लुप्त हो गइ ..बडा ही विहंगम दृश्य था ..तापमान अचानक ४ से ५ डीग्री निचे चला गया ..वहां उपस्थित ढाइ लाख लोगों ने इस घटना का भरपूर मजा लिया ।विग्यान जगत के लोग निराश जरुर हुये लेकिन भारत से बाहर के लोगों से हमने पूछा कि आज का ये शो आपको कैसा लगा ..उनका जबाब था अद्भभुत । उन्हें ये मलाल नही थी कि हमलोगों ने पूर्ण सूर्यग्रहण को नही देखा बल्कि ३ मिनट ३८ सेकेंड का वो लम्हा अद्भुत था जब लोगों ने दिन मे ही तारों का दीदार किया । खैर तारेगना जो एक छोटा सा गांव था आज खबरों में नही है लेकिन इस विशेष खौगोलिय घटना का केंद्र बनने के बाद आर्यभट्ट की इस नगरी को विश्व मे एक अलग पहचान जरुर बन गइ है । लगभग तीन लाख लोग इस छोटे से शहर में अपनी उत्सुकता के पंख को लगाये शाम से ही एक स्थान पर जमा होकर सूर्यग्रहन का इंतजार करते देखना अपने आप में एक विहंगम दृश्य को निहारने के जैसा था । स्टेशन का नाम तारेगना है क्यूंकि तारेगना गांव के जमींदारों ने अंग्रेजों को स्टेशन के निर्माण के लिये जमीन इसी शर्त पर दिया था कि इसका नामकरण मेरे गांव पर होना चाहिये ..शहर का नाम मसौढी है ..जब तारेगना का नाम विश्व फलक पर अपनी चमक बिखेर रहा है तो अब मसौढी के लोग भी पूरे शहर का नाम तारेगना मे तब्दिल करने पर राजी हो गये है । मसौढी का नाम आते ही इसमें नक्सलवाद की बू आती है क्यूंकि बिहार में नक्सलवाद की जन्मस्थली मसौढी ही रही है ऐसे में मसौढीवासियों के लिये तारेगना का खगोलविग्यान का केंद्र में होना खूब भा रहा है ।