दो कुत्ते थे शेरु और मोती ..शेरु दिल्ली के पाश कालोनी जीके(ग्रेटर कैलाश) में रहता था और मोती कल्यानपुरी में. हालांकि दोनो दोस्त थे। चार पांच महिने के बाद दोनो इंडिया गेट के पास मिले।शेरु ने कहा यार मोती मैं तो सबेरे उठता हूँ तो समझो कि कूडेदान में लजीज व्यंजनों की भरमार होती है ..खाते नही बनता...मोती ने कहा शेरु मोतिया गैरत के साथ जीनेवाला इंसान है लजीज भले ही मुझे खाने को नही मिलता लेकिन कल्यानपुरी वाले मुझे बुलाते है मोती आ.आ आ ..तभी मैँ उठता हूँ खाना खाने के लिये ...
Friday, May 23, 2008
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8 comments:
बहुत बढ़िया वाह वाह क्या बात है जोड़ी अच्छी लगी
शेरू और मोती की कहानी सुनकर और दूसरे शेरू और मोती की याद आ गई. कुछ लिखना चाहता था पर सोचा छोड़ो, कहीं कुत्ते बुरा न मान जायें.
अच्छी लगी ये बात ।
शेरु की पॉश कालोनी से बेहतर मोती की दुनिया! बहुत बढ़िया प्रतीकात्मक संदेश.
bahut khub kaha
दूर का निशाना है. समीर जी सही कह रहे हैं
टिप्पनीयाँ हमारे जैसे टुच्चे लेखकों के लिये सचमुच टानिक का काम करती है।..आपको पसंद कोइ चीज आती है तभी आप कमेंट देते है...महेंद्र जी , शायदा जी उडनतस्तरी भइया (आप तो बहुत ही वरिष्ठ हैँ हम सबों में ) महक जी ., और राजेश रौशन भइया उत्साह वधॆन करने लिये बहुत बहुत धन्यवाद...और हाँ सुरेश भाइ लिख डालिये ना किस के बारे में आप को क्या कहना है मुझे अब बैचैनी होने लगी है..लिख डालिये कोइ कुछ नही बिगाडेगा हम आपके साथ है....
आपके ब्लॉग पर आपका ई मेल पता नहीं है । इसलिए ये संदेश यहां दिया जा रहा है ।
अच्छा लगा जानकर कि आप सहगल की आवाज़ में गाते हैं । शुभकामनाएं ।
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