
Tuesday, March 23, 2010
भूत पड गया लालाजी के चक्कर में - एक लोककथा

Friday, March 19, 2010
नजर सुरक्षा चक्र -- इलाज से बढिया ऐहतियात बरतें

नाम- मिसेज देसाइ ...राजस्थान की रहने वाली ..इनके पति बहुत बडे व्यवसायी है । दस साल पहले इनकी बर्तन की एक छोटी सी दूकान थी । अपनी मेहनत और कर्म के बलबूते आज इनकी बर्तन की तीन तीन बडी फैक्टरियाँ है । सब कुछ ठिक ठाक चल रहा था । एक दिन इनकी चाची सास इनके घर आ गयी ..बस बोलना शुर किया ..बाप रे बाप कितनी तरक्की तूने कर ली है ..ऐसा व्यापार ..इतने पैसे ..तेरी पत्नी के इतने गहने ..और एक मेरे पति जो सिर्फ गवांना जानते है बनाना नही । तभी चाची की दोनो आंखों से चिंगारी निकली ( ठिक वैसा ही जिस तरह रामायण सीरियल में राम के वाण चलने के बाद रावण तक पहुंचते पहुंचते ( रे यानि किरण का रुप लेकर पहुंचती थी ) और उसके बाद मिस्टर देसाइ की आँखो मे जाकर चुभ गयी । एक स्पेशल इफैक्ट होता है और मिस्टर देसाइ के शरीर का अग्र भाग बिल्कुल लाल हो जाता है । बस क्या था ..उसी दिन से मिस्टर देसाइ उखडे उखडे रहने लगे । धीरे धीरे उनका व्यापार भी उजडने लगा । पूरा परिवार परेशान हो उठा । भला हो मिसेज देसाइ का जिन्होने बिना अपनी पति के अनुमती के बगैर इस नंबर पर संपर्क किया ( ९३१२९२२६२२६) फिर एसएमेस किया ( एनएसके ५६७६७) और उसके बाद उन्हें मात्र २३७५ रुपये में मिला नजर सुरक्षा चक्र । दिव्य ऋषी संस्थान के वैग्यानिकों के द्वारा बनाया गयी एक ऐसी माला जिसके पहनने के बाद आपके इर्द गिर्द वह माला पोजीटिव एनर्जी क्रियेट करता है और आप पर डाले गये निगेटीव एनर्जी की काट करता है । माला के पहनते ही मिस्टर देसाइ का जीवन ही बदल गया और उनका व्यापार भी अपने पुराने ढर्रे पर आ गया । चाची सास आज भी उनके पास आती है और निगेटीव एनर्जी क्रियेट करती है लेकिन वाह रे नजर सुरक्षा चक्र का कमाल ..समझिये नजर लगानेवाली की ऐसी तैसी । पुणे की रहनेवाली पेशे से शिक्षिका बरखा गुप्ता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ उनकी भाभी ने बरखा की शादी काट दी । नजर सुरक्षा का लाकेट पहनते ही उनकी भी दुनिया बदल गयी । महामंत्रों के जाप इस लाकेट में इनबिल्ट है । नजर सुरक्षा ही है आपके भाग्य की चाबी ..और हां ३० दिनों के अंदर इस लाकेट ने अपना काम नही किया तो कंपनी आपसे ली हुइ सहयोग राशी भी वापस कर देगी । जल्दी किजीये क्या पता कोइ बुरी नजर आपका पिछा कर रही है । बचपन में हमारी मां नवरात्री के दिनों में हमारी नाभी पर काजल का टीका लगाती थी ...बुरी नजरों से बचाने के लिये ..गाय भैंस से दूध का व्यापार करने वाले अपने गौशाले में बंदर रखा करते है बुरी नजर से बचाने के लिये । २० साल पहले बिहार में एक अफवाह उडी कि भइया अपने घर पर पंजा छाप के लेबल की छपाइ करों नहीं तो घर की ऐसी तैसी हो जायेगी । सारे घरों पर पंजे का लेबल छप गया बुरी नजरों से बचने के लिये । कुछ वर्षों पहले अचानक गणेश जी दूध पीने लगे । हालांकि उन्हीं दिनों एक डेमों में एक प्रसीद्ध वकील ने गणेश जी को शराब भी पिला डाली । दूकानदार जब शाम को अपनी दूकान बंद करते है तो बंद शब्द का प्रयोग नही करके बढाना शब्द का उपयोग करते है । रवि शास्त्री ने अपना एकमात्र दोहरा शतक आष्ट्रेलिया के खिलाफ सिडनी में लगाया । उस मैच में जो जुराब उन्होने पहनी थी उसे लगाचार फटे चिथडे हालात में भी दस साल टोटके के तौर पर पहनते रहे ।तेंदुलकर अच्छी पारी खेलने के बाद और कपिलदेव क्रिज पर पहुंचने के पहले सूर्य भगवान को अभिनंदन करना नही भूलते । ऐसे में मेरी सलाह है आप सब टोटके को छोडकर नजर सुरक्षा चक्र को अपनाये कोइ विघ्न आपके पास नही फटकेगा ।
Thursday, December 10, 2009
एक नक्सली की कहानी- पार्ट-२

अब बिलाइ मियां अपने बौद्धिक अंदाज में अपना दर्शन मेरे सामने बयां कर रहे थे । मैने कहा बिलाइ मियां जब तक वैचारिक क्रांति आप लोगों के अंदर समावेश नही करेगी तब तक आप अपने मकसद में कैसे सफल होंगे । बिलाइ ने माओ-त्से-तुंग का डायलाग बोला क्रांति बंदूक के नली से होकर गुजरती है । खैर दस्ता प्रमुख ने बोला आलोक जी अब हमारा पडाव यहां से चल रहा है ..हमने पूछा कि कहां ..बोले मुझे भी नही मालूम । अब बिलाइ मियां बहुत मशहूर हो चुके थे । उनके नाम से ही बडे बडे अपराधी थर्राने लगे थे । खैर बिलाइ इमानदार थे और शोषितों के लिये उन्होने हमेशा संघर्ष किया । एक दिन अपने बाल बच्चों से मिलने अपने पैतृक घर पहुंचे पुलीस के भदिये ने इसकी खबर प्रशासन को दे दी । बिलाइ मियां अरेस्ट हो गये इनके साथ एक और नामी नक्सली पकडा गया । पुलीस की नजर में ये नक्सली कुख्यात होते है क्यूंकि बारुदी सुरंग बिछाकर नक्सली संगठन कितने ही पुलीसकर्मिंयों को मौत की निंद सुला चुके है । इन दोनो नक्सली नेताओं के साथ पुलीस ने बेइंतहा जुल्म किये । बिलाइ के साथी को पुलीस ने इतना प्रताडित किया कि उसकी मौत पुलीस हिरासत में हो गइ । मीडिया ने बहुत हो हल्ला किया ..मानवाधिकार संगठन भी काफी चिल्लाये लेकिन जहां तक मुझे जानकारी है न्याय अभी भी कोसों दूर है । बिलाइ की भी बहुत पिटाइ हुइ । कइ मुकदमों मे संलग्न है इस बीच उनका पूरा परिवार दाने दाने को मुहताज हो गया ..और उस भू माफिया ने ... कहा जाता है कि नक्सली संगठन को मोटी रकम देकर मामले को रफा दफा करा लिया । जिस जमीन के हक को लेकर बिलाइ ने बंदूक उठायी थी ..उसके जमीन पर उसी भू माफिया का आज एक सुंदर सा मार्केटिंग काम्पलेक्स बिलाइ मियां की जमीन पर चमचमा रहा है ।
( समाप्त)
Tuesday, December 1, 2009
एक नक्सली की कहानी
( शेष जारी है । )
Tuesday, August 25, 2009
आनंद जैसी फिल्में बार बार नही बनती । पार्ट-१

गीतकार गुलजार की ७३ वीं वर्षगाठ पर विभिन्न चैनल अलग स्टोरी चला रहे थे । एक चैनल में आनंद का वो गीत जिंदगी कैसी है पहेली ...चल रहा था ..पैकेज में बताया जा रहा था गुलजार का ये अमर गीत आज भी दिल की गहराइयों को छू जाता है । हकीकत है कि इस गाने के गीतकार योगेश है ..इसी फिल्म का एक और गीत कहीं दूर जब दिन ढल जाये..के लेखक भी योगेश ही है । मैने तेरे लिये ...ना जिया जाय ना ..और मौत ती एक पहेली है के गीतकार गुलजार है । हालांकि इन सभी गीतों का संगीत अमर संगीतकार सलील चौधरी ने दिया है । १९७२ में बनी इस फिल्म के सारे किरदारो को देखकर ऐसा लगता है कि वे सब हमारे और आपके बीच के हों । पहले इस फिल्म के लीड रोल के लिये महमूद और किशोर कुमार को ह्रषिकेश मुखर्जी ने चुना था । इस सिलसिले में जब ह्रषि दा किशोर कुमार के आवास पर पहुंचे तो दरवाजे पर खडे चौकीदार ने उन्हे वहां से भगा दिया । दरअसल किशोर कुमार का एक स्टेज कार्यक्रम किसी बंगाली सेठ ने करवाया था । जब पैसे की भुगतान की बात आयी तो बंगाली सेठ ने तयशुदा पैसे नही दिये । किशोर कुमार के बारे में ये सबको पता है कि वो अपने मेहनताने में से एक रुपया भी कम नही लेते थे ..यहां तक कि कटे फटे नोट भी वो स्वीकार नही करते थे । उस बंगाली सेठ से किशोर दा की मारपीट भी हो गयी थी थी । तब किशोर दा ने अपने दरबान को ये स्पस्ट आदेश दे रखा था कि किसी भी बंगाली को घर के अंदर नही घुसने देना । जैसे ही ह्रषि दा ने अपना नाम मुखर्जी बताया दरबान ने उन्हें खदेड दिया । ह्रषि दा इस घटना से इतना आहत हुये कि उन्होने निश्चय किया कि इस फिल्म में किशोर कुमार को तो कभी नही लेंगे। बाद में महमूद से भी बात नही बनीं और इस फिल्म में दो नये अदाकार अमिताभ और राजेश खन्ना को ह्रषि दा ने लिया ।बाबू मोशाय राजकपूर ऋषि दा को कहा करते थे उसी से प्रभावित होकर निर्देशक महोदय ने बाबू मोशाय का करैक्टर आनंद में रखा । बाबू मोशाय उस दौर में एक प्रतीक बन गया था राजेश खन्ना और अमिताभ के संदर्भ में ।
अगली बार आनंद से जुडी कुछ और बातें )
Tuesday, July 28, 2009
हमारे जनप्रतिनिधी

( ये दोनो प्रसंग सिनापा जी ने हमें भेजा है ॥आपके सामने रखने में मजा आयेगा । )
( एक)
बिहार में संविद की सरकार गिर गयी थी । शोषित दल की सरकार बनी थी । उस मंत्रीमंडल में एक मंत्री किसी मठ के महंत थे । महंथ जी के पास एक फाइल आयी । फाइल चूंकी महत्वपूर्ण थी इसलिये सचिव महोदय महंथ जी चैम्बर में स्वंय चले गये और महंथ जी से कहा कि महोदय एक बहुत ही महत्वपूर्ण फाइल हमने आपके यहां नोट देकर भेजा है । कृप्या इस फाइल पर पर कारवाइ करके वापस लौटाया जाय। सचिव के जाने के बाद मंत्री ने फाइल मंगवाया । उसको उलट पुलट कर देखा और रख दिया । थोडी देर के बाद एक सहायक आया और मंत्रीजी से बोला कि हुजूर फाइल सचिव महोदय साहब मंगवायें है । मंत्री जी ने फाइल को फिर उलट पुलट कर देखा और फिर वहीं रख दिया । फाइल चूंकि अर्जेन्ट थी इसलिये सचिव महोदय स्वंय महंथ जी के कमरे में आ गये और फाइल के लिये याचना की । महंथ जी विफरते हुये बोले ॥बार बार फाइल के लिये आदमी भेज रहे है ? फाइल उछालकर बोले ...कहां है नोट ? कांग्रेसियों को आप लोगों ने बहुत ठगा है ॥आप हमें ठगने चलें है । हम महंथ है ..ठगाने वाले नही है ...। कहां आपने फाइल में नोट दिया है और बार बार तगादा किये जा रहें है । पहले तो सचिव महोदय हक्का बक्का रह गये । तुरंत बात उनकी समझ में आ गयी । सचिव महोदय ने महंथ जी को समझाया कि फाइल पर लिखने को नोट देना कहा जा ता है । मंत्री जी सचिव महोदय का मुंह ताकते रह गये । उन्होने कहा महाराज ऐसा था तो पहले ही बता देते ना कि दस्तखत करना है । बार बार नोट नोट क्या चिल्ला रहे थे ।सचिव महोदय संचिका लेकर बाहर निकल गये और पहला काम किया कि जिस वाकये को प्रधान सचिव को सुनाया बाद में बात फैली तो अखबारों में भी छपी ।
(दो)
ललित नारायण मिश्रा समस्तीपुर बम - विस्फोट में घायल हो चुके थे । समस्तीपुर से दानापुर लाने के क्रम में उनकी मौत हो गयी । अब्दुल गफूर सरकार ने घोषणा की कि जो भी एल एन मिश्रा के मौत के रहस्य का अनावरम कर देगा उसे पच्चीस हजार रुपया नगद इनाम और पुलीस के आदमी को प्रमोशन दिया जाएगा । समस्तीपुर के तत्कालिन एसपी ने रहस्य का खुलासा कर दिया । घोषणा के अनुसार गफूर कैबिनेट ने उक्त एसपी को नगद इनाम सहित डीआजी बनाने की घोषणा कर दी । दूसरे ही दिन गफूर मियां को उनके पद से हटा दिया गया । जगन्नाथ मिश्रा मुख्यमंत्री बन गये । उन्होने पहला काम किया । गफूर मियां के मंत्रीमंडल के निर्णय को तत्काल निरस्त कर दिया और मामले को सीबीआइ को सौंप दिया । मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद अब्दुल गफूर मुख्यमंत्री आवास से दो अटैची हाथ में लेकर सडक पर आयें और रिक्शा पकडकर अपने निजी आवास में पहुंचे । उनका ड्राइवर अनुरोध करता रहा लेकिन गफूर साहब ने कहा कि कार मुख्यमंत्री का है और मैं अब मुख्यमंत्री नही रहा ।
Thursday, July 23, 2009
सूर्यग्रह्ण के तीन मिनट

अपलक नयन गगन गगन