बहुत दिनों के बाद ब्लाग पर हूं। वैसे तो उत्तर पूर्व के तीन राज्यों में
चुनावी फिजा जोरों पर हैलेकिन त्रिपुरा का चुनाव कासा अहम हो चला है । देश
में पहली बार लेफ्ट और राइट आमने सामने है। जहां वाम मोर्चा लगातार २४
सालों से सत्ता पर काबिज है वहीं पहली बार भाजपा वाम मोर्चे को टक्कर देती
दिख रही है । २०१३ में जब वहां गया था चुनाव कवर करने तो माहौल कुछ ज्यादा
ही गर्म था लेफ्ट फ्रंट के खिलाफ । सन २०११ में बंगाल में परिवर्न की हवा
ने ३७ वर्षों के वाम शासन को ममता दीदी की पार्टी ने ध्वस्त कर दिया था ।
चूंकि बंगाल और ट्रिपुरा की राजनीति में बहुत सारी समानताओं हैं तो मुझे भी
लगा कि अब यहां यानि त्रिपुरा में भी वाम शासन का अंत हो जाएगा । स्थानिय
मीडिया से लेकर राजनीतिक विश्लेषक की भविष्वानियां अखबारों की सुर्खियों पे
छाइ थी कि अब परिवर्न में ४ दिन शेष ३ दिन शेष २ दिन शेष । लेकिन जब
परिणाम आया तो ६० सीटों में से वाम फ्रंट ने ५० सीटें जीतकर नया इतिहास रच
दिया । यानि २००८ के मुकाबले ४ सीट ज्यादा । अंग्रेजी अखबार त्रिपुरा
टाइम्स जो लगातार एंटी लेफ्ट खबरें लिख रहा था परिणाम के बाद उसका हेडलाइन
था रेड रेड रेड । बंगाल और त्रिपुरा में फर्क ये था कि त्रिपुरा में
स्टूडेंट विंग ..डीवाइएफआइ . वाम मोर्चे का सांस्कृतिक संगठन बहुत मजबूत
है जबकि बंगाल में वाम मोर्चे का पराभव का कारण इन संगठनों का कमजोर होना
था । खैर ये तो बीती बात हो गइ । वर्तमान चुनाव की पृष्ठभूमि को थोडा
खंगालना होगा । २०१३ के बाद तृममूल के तत्कालिन त्रिपुरा प्रभारी मुकुल
राय के सौजन्य से कांग्रेस के १० विधायक तृणमूल में शामिल हो गये और टीएमसी
त्रिपुरा में मुख्य विपक्षी दल हो गया । कुछ दिनों के बाद जब मुकुल राय ने
बीजेपी का दामन थामा तो वही विधायक पैसे के बल पे भाजपा में शामिल हो गये ।
अब बीजेपी बिना मैंडेट के त्रिपुरा में मुख्य विपक्षी दल हो गया । इस
चुनाव में कांगेरेस का वोट वीजेपी में लगभग ट्रांसफर हो गया है । मुस्लिम
भी हो सकता है कि १० प्रतिशत बीजेपी को वोट करेगा । अब सवाल ये है कि क्या
बीजेपी लेफ्ट के वोट प्रतिशत में सेंध लगा पाएगी जिसकि प्रत्याशा नग्न्य है
। प्रधानमंत्री से लेकर भाजपा का पूरा अमला लगा रहा चुनावी प्रचार से लेकर
धन बल के हथकंडों के साथ । पीएम ने जो आरोप लगाये मािक सरकार पर मािक
सरकार ने पलट कर जबाब भी नही दिया । बीजेपी ना आरोप था कि त्रिपुरा में
कर्मचारियों के लिये चौथा वेतन आयोग है और पूरे देश में सांतवां वेतन आयोग
है । न्यूनतम मजदूरी का दर भी त्रिपुरा में कम है । लेफ्ट ने पलटवार करते
हुये कहा कि बीजेपी शासित महाराष्ट्र , गुजरात और राजस्थान के मुकाबले
त्रिपुरा के सरकारी कर्मचारियों को ज्यादा सहूलियतें हैं । अब मीडिया और
सोशल मीडिया में वाम मोर्चे सरकार की पलटी की बात चल रही है । चलो पलटाई
बीजेपी का नारा है तो लेफ्ट समर्थक कह रहे है कि चलो उल्टाइ यानि यथा
स्थिती बरकरार रहेगा । इस चुनाव ने मुझे यह भी अहसास कराया कि कांग्रेस और भाजपा की कम से कम आर्थिक नीतियों में कोइ अंतर नही है । अगर कोइ आडियोलोजी कांग्रेस की होती तो वो रातोरात भाजपाइ नही हो जाते ।
Monday, February 19, 2018
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment