Friday, February 6, 2009

ओझा जी बोझा नही है


छो‍टे शहरों से झोला उठाकर चलने वालों ने भारतीय क्रिकेट जगत को हाल के वर्षों में एक से बढकर एक सितारों को जगमगाने का अवसर दिया । भारतीय क्रिकेट का नया नगीना है फिरकी गेंदबाज प्रग्यान ओझा । अगर देखा जाय तो बिशन सिंह बेदी के रिटायरमेंट के बाद लेफ्ट आर्म स्पिनर के रुप में दिलीप दोषी , मनिंदर सिंह , वेंकटपती राजू , रवि शास्त्री , सुनील जोशी आदि ने भारतीय क्रिकेट को अपनी सेवाएं दी । हालांकि दिलीप दोषी पूर्ण रुप से गेंदबाज थे वहीं शास्त्री और सुनील जोशी आलराउंडर के रुप में भी याद किये जाते है । ओझा ने लंका के खिलाफ पिछले दो मैचों में जिस तरह का प्रर्दशन किया है वो भारतीय क्रिकेट के लिये शुभ संकेत है । लंका के खिलाफ तीसरे एक दिवसीय मैच में ओझा की गेंदों पर लंकाइ बल्लेबाज डांस करते नजर आये । इनकी गेंदो को जो टर्न मिल रहा था उसी पिच पर महान गेंदबाज मुरलीधरन और लंकाइ सनसनीखेज अजंता मेंडीस टर्न के लिये तरसते रहें। अगर गुरुवार को खेले गये वन डे पर निगाह डालें तो पांच ओवरों के बाद कप्तान धोनी ने ओझा के ओवरों को बचा के रखा और सहवाग के साथ दूसरे छोर पर युसूफ पठान को आजमाया । यह साबित करता है कि जब मैच में आगे हिंदुस्तान को मुश्किलात का सामना करना पडता तो तुरुप के इक्के के रुप में ओझा का इस्तेमाल किया जाता । ओझा फ्लाइट पर नियंत्रण रखने के साथ आर्मर का प्रयोग जब बीच बीच में बखूबी करते है । अपने ओवर की छः गेंदो को अलग वेरियेशन से गेंद डालना एक परिपक्व गेंदबाज की खूबी को ओझा साबित करते नजर आये । ५ सितंबर १९८६ को भुवनेश्वर में जन्में ओझा हैदराबाद की ओर से रणजी में खेलते है । सबसे पहले वो चयनकर्ताओं की नजर में तब आये जब उन्होने भारत की अन्डर-१९ टीम की ओर से खेलते हुए दो मैचों में २३ विकेट झटक डालें । एशिया कप २००८ में वो मेन्स इन व्लू के सदस्य बनें । आइपीएल में ओझा डेक्कन चार्जस की ओर से खेलते है हालांकि लीग में ये टीम बुरी तरह फ्लाप रही थी लेकिन ओझा ने अपनी टीम के लिये ११ विकेट झटककर अपनी विश्वसनियता को साबित किया । २२ वर्षिय ओझा प्रथम श्रेणी के ३२ मैचों में १२६ विकेट हासिल कर चुकें है । सचमुच ओझा भारतीय स्पीन गेंदबाजी के लिये भविष्य के उदयीमान सितारें है ।

Monday, January 5, 2009

टी.टी.एम यानि ताबडतोड तेल मालिश


खबर है पटना से । मशहूर चिकित्सक और राजनेता सीपी ठाकुर ने नीतिश कुमार को नोबेल पुरस्कार से नवाजने की मांग की है । मिलना भी चाहिये । रेलमंत्री और अब बिहार के मुख्यमंत्री । बिहार अब कुशासन से मुक्त होकर सुशासन की राह चल पडा है । अपराधी बिहार से भाग गये है । चैन और अमन की नयी धारा बह रही है , बिहार बाढ की विभिषीका से मुक्त होकर कृषि के मामले में आत्मनिर्भर होने को है । पटना की सडके हेमा मालिनी की गाल की चिकनाहट से भी चिकनी हो गइ है । मुख्यमंत्री के जनता दरबार की मिसाल तो दानी राजा भोज की दानवीरता और न्याप्रियता को भी तुच्छ बना रही है । और पुलीस प्रशासन के क्या कहने आजादी के दशकों बाद वह जनता के सच्ची सेवक की भूमिका में नजर आ रही है । रामराज्य देने का दिवास्वपन भाजपा ने भले ही देखा हो लेकिन हकीकत की कसौटी पर बीजेपी के छोटे भाई जद यू के करिश्माइ नेता नीतिश कुमार ने यह साबित कर दिया है कि मुश्किल कुछ भी नही सिर्फ वादों और आश्वासनों के पत्थर तो दिल से उछालों यारों। सबकुछ मान लिया जाये तो क्या सचमुच ये सारे तथ्य नीतिश जी को नोबेल पुरस्कार का हकदार बनाते है । वैसे सचमुच अगर इस प्रस्ताव के मसौदे को भारत सरकार स्वीडन भेज दें तो इसका सबसे कडा प्रतिरोध अमरिका के नवनियुक्त सदर बराक ओबामा करेंगे । आप पूछेंगे ऐसा क्यूं। जी हां भले मानस नीतिश जी ने अमरीकी चुनाव के दौरान ये घोषणा कर दी थी कि अगर उन्हें मौका मिला तो वे अमरीका जाकर हिलेरी क्लिंटन के लिये एनआरआइ बिहारियों से समर्थन मांगेगे। खैर हिलेरी तो चुनाव मैदान से हट गइ। लेकिन विश्वस्त सूत्रों से ये पता चला है कि नीतिशजी के उस बयान से बराक ओबामा अभी भी नाखुश चल रहे है । जब विश्व का परम शक्तिशाली राष्ट्र का मुखिया ही इस रास्ते में अडचन लगा देगा तो भाइ नोबेल पुरस्कार तो भारत कुमार यानि सुशासन बाबू के हाथ में आने से रहा । अब जरा सीपी ठाकुर जी के आग्रह पर गौर फरमाया जाये . तो .लालू जी का मानना है कि लोकसभा चुनावों को देखते हुए पटना की सीट को नीतिश बाबू की तरफ से हरी झंडी मिल जाये तो ठाकुर जी का दावा बीजेपी पर आसानी से दबाब बनाने में काम आएगा । लालू जी ने ठाकुर जी के इस बयान को टी.टी.एम यानि ताबडतोड तेल मालिश कहा है ...आप क्या कहेंगे।

Friday, December 26, 2008

शोले के महाराज


हमारे एक मित्र बनारस गये थे । उन्होने एक वाक्या सुनाया ..अच्छा लगा इसलिये आपलोगों के साथ भी शेयर कर रहा हूँ। सन १९७५ में शोले फिल्म की तैयारी चल रही थी ..जिपी सिप्पी इसे एक अनोखी फिल्म बनाना चाहते थे । खैर फिल्म अनोखी बनी भी । फिल्म के सीन में उन्हें घोडों के टाप की जीवंत आवाज चाहिये थी । लोगों ने सलाह दिया कि ऐसी आवाज तो बनारस के गोदइ महाराज के ही वश में है । सिप्पी ने उस महाशय से पूछा कितना पैसा लगेगा। खैर तीन चार लाख से अधिक भी सिप्पी देने को तैयार थे । गोदइ महाराज को इत्तला दी गयी कि बंबइ के बहुत बडे फिल्म मेकर अपनी फिल्म में आपके पास तबला बजवाने के लिये आ रहे है । स्वभाव से बेहद कंजूस गोदइ महाराज तैयार बैठे थे सिप्पी के लिये । सिप्पी बनारस पहुंचकर चल दिये गोदइ महाराज के यहां । महाराज ने सिप्पी साहब को अपने ड्रांइग रुम में बिठाया । ज्यादा बिजली के बील की खपत ना हो इसलिये वहां शून्य वाट का ही बल्ब हमेशा जलता था । सिप्पी साहब ने कहा महाराज फिल्म में आपसे तबले की थाप बजवानी है । महाराज बोले कि भाइ तबला बजवाना हो तो ठिक है और अगर खंजरी बजवाना हो तो सामने किशनवा ( किशन महाराज ) रहता है चले जाओं उसके पास । सिप्पी साहब ने कहा नही महाराज हम तो आप के पास आये है जितना आपको पैसा चाहिये ले लें। महाराज ने सोचा बढिया मुल्ला फँसा है ..बोले भाइ ४० हजार लूंगा । सिप्पी साहब ने हां कर दी । महाराज को लगा कि कितना बडा मूर्ख है । तुरंत मान गया ...ठिक है भाइ मैं ट्रेन से नही प्लेन से बंबइ जायेंगे । सिप्पी साहब ने कहा कोइ बात नही । फिर अचरज में पड गये महाराज ...बोले भाइ सिप्पी ऐसा करों कि ८ आदमी के प्लेन का भाडा मुझे नकदी दे दों । नकद पैसे भी मिल गये उन्हें। महाराज ने फिर कहा कि भाइ वहां फाइव स्टार होटल में हम लोग पांच दिन रुकेंगे । सिप्पी साहब ने कहा ठिक है । महाराज ने कहा कि उसका भी भाडा नकदी दे दो। वो पैसे भी मिल गये । सिप्पी साहब चले गये बंबइ। महाराज ने कहा कि कितना बडा मूर्ख है आसानी से ठगा गया । चय समय पर उन दिनों महाराज ने अपनी टीम के साथ ट्रेन में थर्ड क्लास का टिकट कटा कर पहुंच गये मुंबइ ..वहां उनका भतीजा रहता था उसी के यहां महाराज टिक गये । अमुक दिन पर महाराज को स्टूडियों ले जाया गया । सिप्पी साहब को बताया गया कि जब महाराज ट्रायल ले आप रिकार्डिंग आन कर दिजीयेगा। महाराज अपने तबले की थाप से सुनाने लगे ...देखो एक घोडा दौडेगा तो कैसे बजेगा ..और कइ घोडे दौडेंगे तो थाप क्या होगा । खैर रियाज खत्म हुआ ..तबतक रिकार्डिंग पूरी हो चुकी थी ।महाराज बोले चलो भाइ अब रिकार्ड करों मेरा रियाज खत्म हो गया । सिप्पी साहब ने कहा कि महाराज मेरा काम हो चुका अब आप चाहें तो जा सकते है । खैर सिप्पी साहब को फिल्म में एक ही घोडे को दौडाना था तबले की थाप पर ..लेकिन महाराज के अनोखे तबले की थाप ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होने फिल्म में सामूहिक घोडे के दौडने की भी आवाज को परदे पर दिखाया ।

Monday, December 8, 2008

दलों के लिये आंखे खोलने वाला है यह परिणाम







( कुमार आलोक said... ) मुंबइ में आतंकी हमले के बाद मेरे एक पत्रकार मित्र ने दिल्ली से फोन किया मैं उस समय पटना में था । कांग्रेस निपट गइ भइया ..चारो स्टेट में बीजीपी को क्लीयर मैंडेट मिल गया । मेरा दोस्त बडे चैनल में है । हमें लगा कि सचमुच कांग्रेस के लिये यह कांड वाटरलू साबित हो गया । कुछ देर बाद मैं एक दोस्त के दूकान पर गया ..हमसे सीनियर है पेंट और लोहा लक्कट की छोटी दूकान चलाते है । मैने कहा भइया कांग्रेस निपट गइ दिल्ली से फोन आया है । उन्होने कहा कैसे । मैने बोला आतंक की जो घटना हुइ है मुंबइ में पव्लिक उसी के चलते काग्रेस के खिलाफ वोट देगा ।ज्यादा पढे लिखे नही है भइया बोले बाबू चुनाव में यह मुद्दा ही नही रहेगा ..लोगों के अपने स्थानिय मुद्दे होते है । यहां तो कांग्रेस के राज में होटल में आतंकी घटना हुइ ..उनके राज में तो संसद में ही आतंकी घुस गये थे । खैर ८ तारिख को पता चलेगा कि मेरे भाइ साहब सही थे चा फिर मेरा पत्रकार दोस्त ।
December 6, 2008 7:36 PM)
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मैनें यह कमेंट रविश कुमार जी के व्लाग पर ६ दिसंबर को लिखा था । अब जबकि चुनाव परिणाम सामने है ..तो यह कहा जा सकता है कि देश का आम आदमी हम तथाकथित बुद्धीजीवियों से बेहतर पालिटिकल नालेज रखता है । पांचों राज्यों के चुनाव परिणाम ने यह साबित किया कि अगर कहीं गुड गर्वँनेंस है तो मतदाता उसको दुबारा सत्ता की सीढी पर आसानी से चढा देगा । बीजीपी ने आतंकवाद को मुद्दा बनाया , इंटरनल सिक्यूरीटी ...और पोटा जैसे मुद्दे शायद जनता के गले नही उतरे । दिल्ली में इस भरोसे पर रहे कि बीएसपी कांग्रेस का बैंड बजा देगी जिसका सीधा लाभ बीजेपी को मिलेगा यह भी आकलन गलत साबित हुआ ...और इसका उल्टा असर यह हुआ कि अल्पसंख्यक समुदाय पूरी गोलबंदी के साथ बीजेपी के खिलाफ हो गया । दिल्ली चुनाव के रोज जिस तरह के विग्यापन अखबारों में छपे कि आतंक की सरकार को वोट मत दें शायद वोटरों का टर्नआउट शीला जी के लिये सहानुभूती का सबब बन गया । खैर ये तो दिल्ली की बात हुइ । अगर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ की बात करें तो यह जीत बीजेपी के लिये ऐतेहासिक ही नही बल्कि यादगार है । अजीत जोगी जो स्वंयभू मुख्यमंत्री बनकर रमन सिंह को लबरा राजा का खिताब दे रहे थे ..जनता ने बता दिया कि लबरा यानि झूठा कौन है ? अजीत जोगी , श्यामाचरण शुक्ल और महेंद्र करमा एक दूसरे खो फूटी आंख नही देखना चाहते । रमन सिंह ने बडे पैमाने पर निवर्तमान विधायकों के टिकट काटकर युवाओं को मौका दिया ..लेकिन कांग्रेस यह हिम्मत नही दिखा पाइ । चुनाव परिणामों ने रमन सिं को बडा नेता बना दिया है । रही बात मध्यप्रदेश की रही वहां भी कांग्रेस खेमों में बंटी रही और शिवराज सिंह के कद में कोइ भी कांग्रेसी टिक नही पाया । शिवराज ने अपने कार्यकाल में बोला कम और किया ज्यादा .. मध्यप्रदेश के एक बडे कांग्रेसी नेता ने हमें बताया कि शिवराज सिंह व्यक्तिगत रुप से इमानदार है भले ही उनके मंत्रीमंडलीय सहयोगी भ्रष्ट ।लेकिन जनता ने इमानदार कप्तान पर पूर्ण भरोसा किया । रहीं बात राजस्थान की अगर वहां भी कांग्रेसी गुटों में नही बंटे रहते तो परिणाम कुछ और होता । एक बात इस चुनाव परिणाम से और उभकर सामने आइ कि मोदी अगर कद्दावर हाल में कद्दावर नेता बनकर उभरे है सिर्फ इस बिना पर कि गुजरात में लगातार तीसरी बार अपने दम पर भाजपा को उन्होने सत्ता में वापस लाया है तो कल के लिये शिवराज सिंह और रमन सिंह भी पार्टी के स्टार कंपेनर हो सकते है । और बात करें मिजोरम की तो वहां एंटी इंकंबेन्सी के फैक्टर ने कांग्रेस को शानदार जीत दिलवाइ । अंत में यह कहा जा सकता है कि कि बढिया काम करोगे जनता के नजदीक रहोगे तो इनाम अवश्य मिलेगा ..हाल के वर्षों में जो ट्रेन्ड रहा है चुनाव परिणामों का हालिया चुनावों में बदला है । तवक्कों की जानी चाहिये की राजनीति में अच्छे और पढे लोग जो सेवा की भावना को लेकर राजनीति की चौखट पर आये है उन्हें जनता सर आंखो पर बिठाएगी ।

Monday, November 17, 2008

छत्तीसगढिया सबले बढिया


एक बार आया था छत्तीसगढ ..थोडा दिन रायपुर में रुका और चला गया था । इस बार लगभग आधा छत्तीसगढ घूम गया । चुनाव कवर करने आया हूं। कांग्रेस और भाजपा यहां के प्रमुख राजनैतिक दल है ..लेकिन अगर नेताओं की बात करें तो बडे नेता या कहे कि उंची रसूख रखने वाले नेता यहां के बाहर के है । यहां की मूल जाति हाशिये पर है । बस्तर के पूरे इलाके में आदिवासियों का हथियार उठाना ये साबित करता है कि उन्हें राजनैतिक दलों से कोइ आशा नही रह गयी है । नया राज्य बनने के बाद यहां की अर्थव्यवस्था पर विल्डरों और प्रापर्टी डिलरों का लगभग कब्जा हो गया है । बिलासपुर के आसपास बडे कारखाने पर्यावरण कानूनों की धज्जीया उडा रहे है और सरकारी टैक्स की भी जमकर चोरी कर रहे है । अग्रवाल , खंडेलवाल , पाणडेय , चौबे आदि का राजनैतिक और सामाजिक रसूख है । विधानसभा के सदर प्रेम प्रकाश पांडे भिलाइ से जीतते है और रहने वाले गोरखपुर के है ..हालांकि अब वे यहां के निवासी हो चुके है । वैशालीनगर विधानसभा हल्के में गया ..वहां भाजपा की तेजतर्रार नेत्री सरोज पांडे का मुकाबला कांग्रेस के ब्रजमोहन सिंह से है ..सरोज वाराणसी की और ब्रजमोहन उन्नाव के ..वहां लड रहे चौदह प्रत्याशियों में १२ बनारस से है । मुख्यमंत्री रमन सिंह का मुकाबला वहां दो बार विधायक रह चुके उदय मुदलियार से है ..जानकर बडा आश्चर्य हुआ कि मुदलियार का पैत्रिक निवास तमिलनाडू में है । आदिवासियों के एक गांव में गया ..बडी दीन हिन स्थिती में गुजर बसर करने पर मजबूर है ...ऐसा लगभग प्रत्येक आदिवासी गांवों में आपको देखने को मिलेगा । परसापानी गांव का नाम है ..विलासपुर जिले में है । जब वहां के गिने चुने हैंडपंपों से पानी निकलना बंद हो जाता है तो ग्रामवासी एक गंदे पानी के नाले को रेत का मोटा बांध बांधकर बांध के दूसरी तरफ से बालू को खोदकर पानी पीते है ...वो पानी फिल्टर हो जाता है ...विल्कुल शुद्ध पानी की तरह हमने भी पीया ..मीठा लगा । सरकारों ने खूब योजनाए बनायी आदिवासियों के कल्यान के लिये ..लेकिन ऐसा लगता है कि उन योजनाओं के पैसे सेठ ., दलाल , साहूकारो और पालिटिसीयन की तिजोरियों में पहुंच गयी । ऐसे लोगों के घरों को हमने देखा ..आवाक रह गये ।

Tuesday, October 28, 2008

फिल्म इंडस्ट्री को कमजोर किजीये ..एमएनएस को जबाब मिल जाएगा ।

एम एन एस का नामलेवा कोइ नही था ..बिहार के कतिपय नेताओं ने राज को अमर कर दिया , कांग्रेस को लगता है कि राज को प्रोत्साहित करने से शिवसेना का वोट बंटेगा और आनेवाले चुनावों में कांग्रेस इसका फायदा उढा लेगी । बिहार के विद्यार्थियों के साथ जो कुछ भी मुंबइ में हुआ वह भारत की अखंडता और एकता पर हमला है । यह देश किसी के वाप की जागिर नही है और कोइ भी व्यक्ति या पार्टी संविधान से उपर नही है । सोमवार का इनकांउटर भी महाराष्ट्र पुलिस की विभत्स तस्वीर को बयां करता है । बिहार के छात्रों ने जिस प्रकार से बिहार में तांडव मचाया उसकी भी जितनी निंदा की जाए कम है । उनके उग्र होने से खासकर वैसे लोगों को खासी परेशानियों का सामना करना पडा जो बडी मशक्कत से दो महिने पहले से अपनी टिकट रिर्जव करा अपने घरों को लौट रहे थे । राज का सामना या शिवसेना का जबाब यही हो सकता है ..जितना भी औकात बिहार और यूपी के लोगों में है उसका इस्तेमाल करों और सिनेमाघरों में हिन्दी फिल्मों के प्रदर्शन पर रोक लगाओं । तालाबंदी करो सिनेमा हाल और पीवीआर में । कम से कम बिहार और यूपी में तो लोग ऐसा कर ही सकते है । फिल्म इंडस्ट्री जैसे ही रसातल की ओर जाते दिखेगी ..राज तो क्या ..रिजनल राजनीति करने वालों की महाराष्ट्र में दुकानदारी बंद हो जाएगी । वहां की स्थानिय जनता ही राज और शिवसेना को उसकी औकात बता देगी ।

Monday, October 27, 2008

रविश कुमार मीडिल क्लास के नही लगते ?


रवीश कुमार को जानता था ..एनडीटीवी के बाद उनकी खबरों और रपटों को भी देखने लगा । इलैक्ट्रानिक मीडिया में वैसे भी खबरें कहां होती है ...रावण ने यहीं अपने पांव रखे थे ..सरक गयी चुनरी रैंप पर ..खैर इसमें तह तक जाने की आवश्यकता नही । एक दिन हाफ एन आवर रवीश कुमार का आ रहा था ..मेरे कुछ पत्रकार दोस्त जो मेरे साथ काम करते है ..बोले आलोक देखो यार बहुत अच्छी डाक्यूमेंट्री है ..मैं टीवी से चिपका ...कुछ लोग रविश कुमार के नाम से चिढते थे ..पहले तो उन्होने कहा बंद करो टीवी ..चैनल चेंज करों ..जाहिर था वो सब मेरे मित्र अंग्रेजी जर्नलिस्ट थे ..हमारे यहां आधे आधे घंटे पर हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में बुलेटिन प्रसारित होता है । खैर शुरु में तो उन अंग्रेजीदा पत्रकारों ने विरोध किया ..लेकिन जैसे जैसै कहानी आगे बढी ..सब के सब टीवी से चिपक गये । बात मीडिल क्लास के महानगर के समंदर में खो जाने की थी । एंकर कहता है कि मेरे चाचा ने अपनी बेटी की शादी के लिये गांव में कर्ज लिया था ...बडी जगहंसाइ हुइ थी ..कारें गिने चुने लोगों के पास होती थी ..लेकिन अब आम है । आज मेट्रों में सब कुछ उपलब्ध है ..लोन का पहाड जो आम आदमी के हाथ लग गया है ..हर चीज उपलब्ध है लोन पर ....प्रोग्राम खत्म हुआ ..सब को बडा अच्छा लगा ...उसी रात को सब एक महफिल में जुटे ...दो तीन भारी भरकम पत्रकार भी मौजूद थे ..अब हम सब यही चर्चा करने लगें ..वाह वाह ..क्या हाफ एन आवर था रविश कुमार का ..कोइ लोन वाले प्रसंग का जिक्र करता ...कोइ बजाज स्कूटर पर बैठकर रविश कुमार के जर्नलिस्टिक ऐप्रोच का बखान करता तो कोइ कुछ और भी...महफिल का एक बडा वक्त रविशकुमार के नाम खर्च हो गया ..भारी भरकम में से एक ने कहा ...शायद वो दूसरे की प्रशंशा सुनकर लगभग आपे से बाहर हो चुके थे ... बोले ..शर्म आनी चाहिये ..आप लोगों को .. कुछ करना नही चाहते ..अगर करतें तो रविश कुमार भला किस खेत की मूली है ..हिंदी जर्नलिस्म में आखिर रखा ही क्या है ...हम बोल नही सकते थे ..क्यूंकि कुछ भी बोलना आफत को न्यौता देना था । खैर बाद में हमलोगों ने रविश कुमार दूसरे भी हाफएन आवर प्रोग्राम को देखा करते रहें । कस्बा में भी रविश साहब ऐसा लगता है कि मीडिल क्लास के सच्चे प्रणेता है ....बस एक दिन टीवी पर देखा रविश कुमार ..साला मैं तो साहब वन गया ..ये बात दीगर थी कि साहब बनकर तनें नही थी । कोर्ट ..और टू पीस एंड थ्री-पीस ..विल्कुल इलिट लग रहे थे ..आम नही ..एंकरिंग कर रहे है हो सकता है कि मजबूरी हो लेकिन इस भेष में रविश कुमार मीडिल क्लास के नही अभिजात्य वर्ग के प्रणेता लगते है ।