Saturday, June 2, 2012

ब्रह्श्वेर मुखिया की मौत के बाद



मैं उस समय जहानाबाद में बेहद सक्रिय था । खेल संघो का अद्यक्ष और महासचिव होने के अलावा सांस्कृतिक क्रिया कलापों से भी जुडा था । बात १९९५ की होगी सवेरे मुझे पता चला कि बाथे में  रणवीर सेना के द्वारा ५० से उपर लोगों का नरसंहार कर दिया गया है । इसके बाद शुरु हुा नरसंहारों का अनंत सिलसिला ..शंकर बिगहा ..नारायणपुर ...रामपुर चौरम ..कहीं छिटपुट तो कहीं दिल दहला देने वाला । रातों रात रणवीर सेना उच्च वर्ग के किसानों के लिये राबिनहुड बनकर उभरा । प्रतिशोध में पिपुल्स वार ग्रुप और एमसीसी जो आपस में लडते लडते थक चुके थे ..रमवीर सेना से मुकाबला करने के लिये दोनों एक मंच पर ए गये । जहाना बाद के तत्कालिन डीएम प्रत्य अमृत बडी शिद्दत से इन घटनाओं का मुकाबला हर एक फ्रंट से करने की कोशिश कर रहे थे । हालांकि वो क्रिकेट के शौकिन थे ..नारायणपुर नरसंहार के समय सवेरे वो क्रिकेट प्रैक्टिस कर रहे थे ..इधर पत्रकारों ने खबर निकाल दी ..कि रोम जल रहा है और नीरो वंशी बजा रहा है । उनका तबादला कर दिया गया । उनके जगह पर डीएम अरुणीश चावला आये ( वर्तमान में मोंटेक सिंह अहलूवालिया के पीएस ) । जहाना बाद और अरवल के गांवों में जातिय वैमनष्य की धधकती चिंगारी के बीच इस शक्श ने शानदार मिसाल कायम की । रात रात भर ये उग्रवाद प्रभावित गांवों में लोगों के साथ सोते थे और उन्हें समझाते थे कि हिंसा का रास्ता छोडकर आप लोग मुख्यधारा में लौटो । वैसे युवा जो राह भटक कर हिंसा के आगोश में जाकर बंदूक थाम लिये थे उन्हें सरकारी ऋण की व्यवस्था करायी और उद्योग धंधा लगाने के लिये प्रेरित किया । पूरे ग्रामीण समूह को हिंसा और अराजकता के खिलाफ चावला लोगों को सडकों पर उतारने में सफल हुये । १९९९ मार्च में रमवीर सेना के द्वारा ३४ उची जाति के भूमिहारों को बडी ही बेरहमी से मार डाला गया । कहा जाता है कि एक टीचर जो उस गांव में २ साल पहले आये था और बच्चों को फ्री में शिक्षा देने के नाम पर उसने नक्सलियों के ऐजेंट के रुप में गांव में काम किया । एक एक घर का हिसाब किताब उसने दो सालों में ले लिया । कहा जाता है कि नरसंहार के घटित होने के बाद फिर दुबारा उसे गांव में नही देखा गया । प्रतिशोध में रणवीर सेना ने जहाना बाद औरंगाबाद सीमा से सटे गांव मियांचक में नरसंहार को अंजाम दिया जिसमें दुधमुंहे बच्चे और गर्भवती महिलाओं तक को नही बक्शा गया ।अगर रणवीर सेना के नेताओं का भाजपा और जदयू से संबंध था तो उस समय राजद के साथ एमसीसी खडी थी । ११९९ के लोकसभा चुनाव में राजद के अपराधिक छविवाले उम्मीदवार और लालू प्रसाद के करीबी सुरेंद्र यादव की हार जद यू के अरुण कुमार के हाथों हो गइ। अरुनीश चावला का सिर्फ इतना दोष था कि उन्होने सुरेंद्र यादव की गुंडा गर्दी नही चलने दी । हार से खिझकर लालू ने अरुनीश चावला का जहानाबाद से तुरंत तबादला करा दिया । जहानाबाद और अरवल के आसपास जितने नरसंहार हुये दोनो पक्ष रमवीर सेना या नक्सलियों ने उन्हीं गांवों को टारगेट किया जो शांतिप्रिय और भोले भाले थे । अगर रणवीर सेना कोि घटना को अंजाम देती थी तो पुलीस को वैसे नाम एफआइआर में दर्ज कराये जाते थे जो भूमिहार तो थे लेकिन पढते थे इंजीनियरिग और मेडिकल कालेजों में ..या वैसे युवा जिन्हें इस नरसंहार की राजनीति डसे कोइ लेना देना नही था । दोनों तरफ से बरबादियों की अंतहीन कहानी है ।आज इन क्षेत्रों में शांति और अमन बहाल होने की तरफ बढ रही थी तो ब्रह्श्वेर मुखिया की हत्या मे नये सिरे से
पुराने घावों को हरा करने की कोशिशें जो की जा रही है वो रास्ता बरबादियों का होगा ना कि आबाद होने का ।

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