शरीर से वलिष्ठ उपर से रौबदार मूंछे । ऐसा लगता था कि शोले का गब्बर है बिलाइ मियां । बचपन में घरवालों ने उनका यहीं नाम दे दिया था । आंखे भूरी होने की बजह से शायद। वैसे बिहार में आपको अमरिका सिंह भी मिल जायेंगे और खदेरन सिंह भी । किसी गांव का नाम वहां इंगलिश पर भी मिल जायेगा । खैर बात हो रही थी बिलाइ मियां की । बिलाइ मियां बचपन से ही खुराफाती थे । बम बगैरह बना देना उनके बांये हाथ का खेल था । वो इसलिये कि हिंदु मुस्लिम फसादात को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय की ओर से ऐहतियात के तौर पर अपने कौम के लिये ऐसा भला काम कर देने की जिम्मेदारी उन पर आन पड जाती थी । खैर लेकिन है वे बडे शरीफ इंसान । तारेगना के फुटपाथ पर उनकी एक दूकान हुआ करती थी । ताले ,चाबी , लालटेन और टार्च के मरम्मत की । बहुत मशहूर टेक्नोक्रेट थे । हर ताले की चाबी और टार्च की गयी रौशनी को वापस बुलाना उनके बायें हाथ का खेल था । बहुत मशहूर थे अपनी कारकर्दगी के लिये । जाति से वो रंगरेज थे । यानि कपडे को रंगीन बनाना उनके परिवार का पुश्तैनी पेशा था । मुझे याद नही कि कितने वर्षों से उनका परिवार तारेगना में रह रहा था । बात सन १९९५ की है । एक स्थानिय भू माफिया ने बिलाइ मियां की जमीन के साथ पूरे १२ कठ्ठे जमीन को अपने नाम करा लिया । बिलाइ मियां के घर के आगे बंगलियां ( जी हां यही नाम था ) उसका होटल था । उसका मालिक भी वही भू माफिया हो चुका था । जो भी लोग उस जमीन से वास्ता रखते थे भू माफिया के डर से भाग चले लेकिन बिलाइ मियां सीना तानकर इका विरोध करते रहे । एक रात को वहां एक आदमी की हत्या हो गइ । वो आदमी बंगलिया होटल मालिक का बेटा था । हत्यारे ने गफलत में बंगलिया के बेटे की हत्या कर दी रात के अंधेरे में उसे लगा कि बिलाइ मियां साइकिल से अपने घर जा रहा है । उस दिन का सबेरा बिलाइ मियां के लिये खौफ का मंजर लेकर आया उसने अपनी दूकानदारी बंद की .. भू माफिया से लडने की ताकत नही थी उसमें । बदले की आग दिमाग में लिये हुये वो पहुंच गया नक्सल संगठन की शरण में । चार जवान बेटियां और अपनी पत्नी को छोडकर बिलाइ मियां कुछ ही दिनों में नक्सल संगठन के दस्ता प्रमुख बन गये । दस्ता यानि नक्सलियों का वो विंग जिसकी कमाइ पर नक्सल संगठन जिंदा है । बिलाइ मियां अब माओ और क्रांति की बात करने लगे थे । २० -२५ मुकदमों के मुदालय भी बन चुके थे । एक बार मैं अपने दोस्त की बहन की शादी के सिलसिले में तारेगना के एक सूदूर गांव में पहुंचा । दोस्त मुसलमान था । बडका मांस ( गाय का ) वहां बन रहा था मैने नही खाया । इसी बीच एक आदमी मेरे पास आया और बोला फलां नक्सली संगठन के दस्ता प्रमुख आपको बुला रहे है । मेरी तो हवा निकल गइ । सोचा नही जाउंगा तो यहीं मारा जाउंगा दिमाग पेशोपेश में क्यूं बुलाया क्या मैने कुछ नक्सल मूवमेंट के बारे में तो कुछ नही बोल दिया था । परेशान और हैरान जब उस व्यक्ति के साथ उस स्पाट पर पहुंचा तो वहां दस्ता प्रमुख और कोइ नही बल्कि बिलाइ मियां अपने दस्ते के साथ खाना खाकर ताडी ( इसे आप स्काइ जूस समझे ) पी रहे थे । आइये आलोक बाबू स्वागत है । मैनें कहा अरे मिस्टर बिलाइ जी ...ये सब क्या है चालीस के करीब हथियार बंद लोग जिसमें ३५ के करीब सो रहे थे और पांच लोग अप डाउन अप डाउन कर रहे थे । बिल्कुल मिलिट्री की तरह । लेकिन किसी के पास भी तन पर ढंकने के लिये पयार्प्त कपडे नही थे । मैने पूछा कि बिलाइ यह जो १४ साल का लडका है नक्सली क्यूं बन गया ...दबंगों ने इसके पूरे परिवार को मार डाला जमीन हडपने के खातिर इसके पास उन लोगों से लडने की औकात नही थी इसलिये ये नक्सली हो गया ...मैनें फिर कहा कि ये बालक जिसके दूध के दांत भी ठिक से नही उगे है ...इसकी बहन के साथ दबंगों ने बलात्कार किया और बहन ने खुदकुशी कर ली । इसी तरह की कहानी सभी लोगों की थी । खुद में इतना ताकत नही था कि वो उन दबंगो से लड सकें इसलिये थाम लिया हाथ नक्सलपंथ का ।
( शेष जारी है । )
Tuesday, December 1, 2009
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3 comments:
क्या इस देश में हर किसी को बन्दूक उठा लेना चाहिए
इस रहस्योदघाटन के लिए आभार।
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अदभुत है हमारा शरीर।
क्या अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद सफल होगा?
nice
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