Sunday, October 5, 2008
सेल के सौजन्य से
रामविलास पासवान जी भी डाइनमिक नेता है । बिहार की सत्ता की कुंजी भले ही उनके हाथ से छिटक गइ हो लेकिन केंद्र में जिस विभाग के भी मंत्री होते है ॥उस विभाग से जनहित का काम लेना उन्हें बखूबी आता है । हाल में मैं उनके संसदीय हल्के हाजीपुर में पहुंचा ..गंगा ब्रीज को पार करते ही हर चौक चौराहे पर स्टील आथँरिटी आफ इन्डिया के सौजन्य से के बैनर लहरा रहे थे । उत्तर बिहार में बाढ की विभिषीका के बाद राहत और इमदाद में उनकी पार्टी लोजपा के साथ साथ सेल भी पूरी मुस्तैदी से अपनी भूमिका का निर्वहन कर रहा है । वैसे तो पूरे बिहार में सेल और उसके अधिकारी या तो मुफ्त में स्वास्थ्य शिवीर लगाकर लोगों का हेल्थ चेकअप कर रहे है या मरीजों को मुफ्त में दवा वितरण कर रहे है और हाजीपुर के क्या कहने ..ये काम वहां व्यापक स्तर पर प्रत्येक स्थानों पर किये जा रहे है । घूमते हुए मैं एक गांव सुल्तान पुर पहुंचा ..वहां सेल ने दलित बाहुल्य आबादी में गरीबों के लिये शौचालयों का निर्माण कराया है । लगभग २० घरों में इन शौचालयों का निर्माण कराया गया है और प्रत्येक चार घरों में से एक पर चापाकल गाडे गये है । दो तीन घरों को छोड दें तो लगभग बाकि घरों में लोग अपने शौचालयों का इस्तेमाल शौचालय के लिये नही बल्कि इसका इस्तेमाल स्ट्रांगरुम के तौर पर कर रहे है । सभी के मकान कच्चे है इसलिये लोगों ने अपने घरों के गहने और किमती सामानों को शौचालयों में भरकर उनमें बजाप्ता ताला लगा रखा है ।शायद उनके लिये शौचालय से अधिक जरुरी एक अदद मकान की रही होगी ...लेकिन इंदिरा आवास योजना के तहत मिलने वाले सरकारी मकान इन गरीबों के बीच वितरीत नही किये गये है । प्रत्येक चार मकानों पर एक चापाकल होने से पानी भरने के लिये यहां रोज दंगा फसाद होते है । राजस्थान जैसे राज्य में सुना था कि कि वहां के गांवों में दवंग लोग दलितों को अपने कुंए से पानी नही लेने देते ॥लेकिन यहां तो दलित बस्ती में रहने वाले दलित भाइ ही एक दूसरे को पानी नही भरने देते । खैर टीएन शेषण के पहले आमलोग चुनाव आयोग का नाम नही जानते थे ॥ठिक उसी तरह से बिहार के लोग रामविलास जी के पहले सेल का नाम नही जानते थे ..लेकिन आज वहां बच्चें बच्चों की जुवान पर है ...सेल के सौजन्य से ........
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
9 comments:
सही कह रहे हो। ऐसा ही एक विशालकाय पोस्टर मैंने बेगूसराय में देखा था। स्वास्थ्य शिविर
अपने क्षेत्र में लगभग सभी नेता काम करतें है जो नही करते वे दुबारा नही जीत सकते और रामविलास पासवान जी तो हर सरकार में मंत्री होते है ,अपने क्षेत्र का विकास बहुत अच्छी बात है लेकिन बंग्लादेसियों को नागरिकता की मांग कर पासवान ने अपना कद छोटा कर लिया
मुझे पता नहीं, लेकिन यदि आपकी बात सही है तो यह एक सकारात्मक संकेत है। वैसे अब तक पासवान जातीय जोड़तोड़ में ज्यादा व्यस्त रहे हैं।
नवरात्रि की कोटि-कोटि शुभकामनाएं। मां दुर्गा आपकी तमाम मनोकामनाएं पूरी करें।... यूं ही लिखते रहें और दूसरों को भी अपनी प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित करते रहें, सदियों तक...
रामविलास पासवान जी भी मंत्री की मेज लेकर पैदा हुए है । मै बेचारे को नजदीकी से जानता हूं । हमारे जिला में उन्हे खेतो में काम करते भी देखा गया है ।आजकल सितारे बुलंद है जहां जाते है छा जाते है । लेकिन अभी दलगत भावना से उपर नही उठे ङै । जाति का भूत हर हमेशा सिर चढ़कर बोलता है । दलित राजनीति की बात करते है लेकिन दलित की बात ही कम सुनते है । मैने तो कई प्रोगाम में मंत्री जी को देखा है उनसे मिलने के लिए दलित बेचारे खड़े ही रह जाते है वे सवणो वाली दलित से मिलकर चले जाते है ।हाल ही में एक प्रोगाम में मै दावत में पहुंचा । मंत्री जी दावत में उन्ही मुसलमानो से मिले जो दलित मुसलमान नही थे ...। जहा तक विकास की बात हो तो कहने को कुछ और कहने को कुछ और होता है । लंबी-लंबी घोषणाए करने में माहिर है । विहार में ६ महीने के शासनकाल में रेल का जाल बिछा दिया था काम कितना हुआ लोगो को खूब पता है । साहब घोषनाओ के नेता है । जहां तक दलित राजनीति की बात है तो दलित के नही दौलत के नेता है।
Theek kaha mitra
satya kathan
ओडीसा में हिंसा जारी है । मामला ओडीसा के आदिवासी समुदाय का ईसाई धमॆ में परिवत्तॆन को लेकर है । जारी हिंसा इतना तेज हो चला है कि कई लोगो को वहां जान गंवानी पड़ी है ।३०० गांव को तहस-नहस कर दिया गया ,४३०० घर जला दिये गये । ५० हजार लोग बेघर हो गये । लगभग १८००० लोगो को चोट आई १४१ चचॆ तोड़ दिए गए । १३ स्कूल को बन्द कर दिया गया । ये आंकड़े है उड़ीसा में आदिवासी समुदाय पर हुए अत्याचार का ।यू कहे तो बजरंग दल १९९५ से इस प्रकार की हिंसा करते आ रहे है । आस्टेलिया के ईसाई मिशनरी ग्राहम स्टेट और उनके बच्चे की हत्या इसका प्रमाण है । राज्य के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक बजरंग दल को समॆथन दे रखे है । सीधे तौर पर कहा जाय तो कि भाजपा के साथ सरकार में शामिल पटनायक ने धमाॆतरण को रोकने के लिए अपने दल और अन्य साथी समूहो को छूट दे रखी है । लेकिन मसला यह है कि बजरंग दल बार-बार कहती आयी है कि ईसाई मिशनरी पैसे का लालच देकर धमॆ परिवत्तॆन करा रही है । लेकिन राज्य में कानून है और एक भी मामला अभी तक इस तरह के मामले का सामने नही आया है । फिर सरकार के पास कानून है तो उसने इसका ठेका बजरंग दल को क्यो दे रखा है । समझ से परे है । सवाल यह भी है कि धमॆ परिवत्तॆन की जरूरत क्यो पड़ी । और इस परिवत्तॆन के पीछे कौन जिम्मेवार है सरकार ने गरीव आदिवासी तबको के लिए ऐसे उपाय क्यो नही किये जिससे इसे रोका जा सकता था । और जहां तक मामला पैसे लेकर कराने का है तो अभी भी ईसाई की संख्या ओडीसा में केवल ९ लाख है जो राज्य की पूरी जनसंख्या का ढाई प्रतिशत है । अगर ऐसा होता तो आदिवासी के लिए सबसे अच्छा वक्त अंग्रेजो के समय का था जब वे आसानी से अपना धमॆ बदल सकते थे । लेकिन उस समय ऐसी कोई बात नही थी ।
भाजपा १९६० से ही ओडीसा पर शिकंजा कसने की फिराक में है । जो १९६४ में राउरकेला ,१९६८ में कटक और १९८६ में मदक और १९९१ में पूरे देश में हुए हिन्दु -मुस्लिंम दंगो से पटा है । इतना ही नही जिसका खामियाजा १९६६ के बाद के साल में भाजपा को लक्ष्मिनंद सरस्वती की मौत से मिला है । १९६६ में संध और भाजपा ने मिलकर सरस्वती को मुसलमानो औऱ ईसाईयो पर शासन करने और उसे शांत करने के लिए भेजा था । इस तरह भाजपा का इतिहास यहां क्या रहा है कहना ठीक नही है । लेकिन ताजा जो स्थिति है उसमें बजरंग दल के ऊपर लगाम लगाने का काम ओडीसा सरकार का है नही तो जिनके घर औऱ बच्चे जलेंगे उनके बारे में क्या कहा जाए । जो भी हो अच्छी फसल तैयार नही हो पायेगी । जिसका खामियाजा आज देश झेल रहा है । इसलिए ऐसा कोई कदंम न आगे बढे जो समाज को दिशा से भटकाये और फसलो को ही बबाॆद कर दे ।
जेट एयरवेज कमॆचारियो के निकाले जाने से बाजार के लोगो के ही प्राण पखेरू उड़ गए । शायद किसी ने सोचा नही होगा कि ऐसी स्थिति का सामना जेट एयरवेज के कमॆचारियो को करना पड़ेगा । बाजार के पैरोकार ही बाजार में भीख मांगते नजर आए । कल तक लोगो को पैसे की कीमत और अपने मांडलिंग के जरिए आम लोगो को लुभाने वाले ये कमॆचारी इस कदर अपनी दलील देते नजर आए । ऐसा पहले कभी सोचा नही गया था । एक क्षण में ही पता चल गया कि बाजार क्या होता है । खैर अब भारतीय भिखारियो को भीख मांगने में शमॆ महसूस नही होगी । दरअसल आथिॆक मंदी की मार से कोई अछूता नही है । समाजवाद का धुर-विरोधी अमेरिका समाजवाद की गोद में जाने को तैयार है । शायद यह समाजवाद की जीत भी है । कल तक निजीकरण का हवाला देने वाला अमेरिका बाजार के विफल होने के बाद सरकार की शरण में आ गिरा है । अब अमेरिका के अनेक वित्तीय संस्थानो में बाजार का पैसा नही बल्कि सरकार का पैसा लगा होगा । यानी अथॆव्यवस्था को नियंत्रित करने वाली उंचाईयों पर बाजार का नही सरकार का कब्जा होगा । औऱ यही तो समाजवादी व्यवस्था में होता है । आज स्थिति यह है कि जो अथॆव्यवस्ता पर ज्यादा आधारित है वह उतना ही ज्यादा संकट में है । जिसका असर न केवल अमेरिका बल्कि भारत में भी दिख रहा है । भारत का तकदीर इस मायने में अच्छा है कि यहां पूणॆ ऱूप से निजीकरण सफल नही हो पाया है बरना जेट एयरवेज जैसे कई कम्पनियो के कमॆचारी सड़क पर गुहार लगाते मिलते । औऱ अपनी चमक पर स्व्यं पदाॆ डालने की कोशिश करते । यही तो बाजारवाद है ।
Alok Sb
Thanks for being receptive and acknowledging my comments. Hindi blogosphere surprises me more because mostly bloggers don't even bother to reply to any comment, which I find strange.
Post a Comment