Tuesday, July 28, 2009

हमारे जनप्रतिनिधी




( ये दोनो प्रसंग सिनापा जी ने हमें भेजा है ॥आपके सामने रखने में मजा आयेगा । )



( एक)


बिहार में संविद की सरकार गिर गयी थी । शोषित दल की सरकार बनी थी । उस मंत्रीमंडल में एक मंत्री किसी मठ के महंत थे । महंथ जी के पास एक फाइल आयी । फाइल चूंकी महत्वपूर्ण थी इसलिये सचिव महोदय महंथ जी चैम्बर में स्वंय चले गये और महंथ जी से कहा कि महोदय एक बहुत ही महत्वपूर्ण फाइल हमने आपके यहां नोट देकर भेजा है । कृप्या इस फाइल पर पर कारवाइ करके वापस लौटाया जाय। सचिव के जाने के बाद मंत्री ने फाइल मंगवाया । उसको उलट पुलट कर देखा और रख दिया । थोडी देर के बाद एक सहायक आया और मंत्रीजी से बोला कि हुजूर फाइल सचिव महोदय साहब मंगवायें है । मंत्री जी ने फाइल को फिर उलट पुलट कर देखा और फिर वहीं रख दिया । फाइल चूंकि अर्जेन्ट थी इसलिये सचिव महोदय स्वंय महंथ जी के कमरे में आ गये और फाइल के लिये याचना की । महंथ जी विफरते हुये बोले ॥बार बार फाइल के लिये आदमी भेज रहे है ? फाइल उछालकर बोले ...कहां है नोट ? कांग्रेसियों को आप लोगों ने बहुत ठगा है ॥आप हमें ठगने चलें है । हम महंथ है ..ठगाने वाले नही है ...। कहां आपने फाइल में नोट दिया है और बार बार तगादा किये जा रहें है । पहले तो सचिव महोदय हक्का बक्का रह गये । तुरंत बात उनकी समझ में आ गयी । सचिव महोदय ने महंथ जी को समझाया कि फाइल पर लिखने को नोट देना कहा जा ता है । मंत्री जी सचिव महोदय का मुंह ताकते रह गये । उन्होने कहा महाराज ऐसा था तो पहले ही बता देते ना कि दस्तखत करना है । बार बार नोट नोट क्या चिल्ला रहे थे ।सचिव महोदय संचिका लेकर बाहर निकल गये और पहला काम किया कि जिस वाकये को प्रधान सचिव को सुनाया बाद में बात फैली तो अखबारों में भी छपी ।




(दो)


ललित नारायण मिश्रा समस्तीपुर बम - विस्फोट में घायल हो चुके थे । समस्तीपुर से दानापुर लाने के क्रम में उनकी मौत हो गयी । अब्दुल गफूर सरकार ने घोषणा की कि जो भी एल एन मिश्रा के मौत के रहस्य का अनावरम कर देगा उसे पच्चीस हजार रुपया नगद इनाम और पुलीस के आदमी को प्रमोशन दिया जाएगा । समस्तीपुर के तत्कालिन एसपी ने रहस्य का खुलासा कर दिया । घोषणा के अनुसार गफूर कैबिनेट ने उक्त एसपी को नगद इनाम सहित डीआजी बनाने की घोषणा कर दी । दूसरे ही दिन गफूर मियां को उनके पद से हटा दिया गया । जगन्नाथ मिश्रा मुख्यमंत्री बन गये । उन्होने पहला काम किया । गफूर मियां के मंत्रीमंडल के निर्णय को तत्काल निरस्त कर दिया और मामले को सीबीआइ को सौंप दिया । मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद अब्दुल गफूर मुख्यमंत्री आवास से दो अटैची हाथ में लेकर सडक पर आयें और रिक्शा पकडकर अपने निजी आवास में पहुंचे । उनका ड्राइवर अनुरोध करता रहा लेकिन गफूर साहब ने कहा कि कार मुख्यमंत्री का है और मैं अब मुख्यमंत्री नही रहा ।

2 comments:

परेश टोकेकर 'कबीरा' said...

आलोक भाई, मिसगाईडेड नहीं बिल्कुल गाईडेड मिसाइल दागी है।
बहुत बढिया...

anil yadav said...

महंत जैसे नेताओं की तो देश कोई कमी नहीं....
लेकिन गफूर चचा जैसे लोग जरूर लुप्त प्राय प्राणियों की श्रेणी में आ गए हैं....बाघों की तरह सरकार को गफूर चचा जैसे प्रजातियों के संरक्षण के लिए कोई योजना चलानी चाहिए....लेकिन सरकार में भी तो सब महंत ही बैठे हैं....