Monday, February 16, 2009

पिंजडे का पंछी


वर्तमान राजनैतिक माहौल चाहे जो कुछ भी हो ..नेताओं के भाषण या उनके कार्यक्रम से पहले लाउडस्पीकर पर आप हमेशा फिल्मी राष्ट्रीय गीत ही सुनेंगे । ऐं मेरे वतन के लोगों ..या दे दी हमें आजादी ..या आओ बच्चे तुम्हें दिखायें ..। ऐसा लगता है कि कवि प्रदीप के बाद फिल्मी गीतों में देशभक्ति से ओतप्रोत गीतों का टोटा पड गया । देश आगे बढा लोग विकास के पथ पर हम आगे बढते गये हिन्दी फिल्मों ने तकनीक और आधुनिकता की सारी हदें पार कर दी । लेकिन राष्ट्र प्रेम से भरे गीत शायद कवि प्रदीप के अवसान के साथ ही खत्म हो गये । हो सकता है कि वक्त का तकाजा हो जब राष्ट्र प्रेम से संबंधित गीत उस समय बहुत ज्यादा प्रासांगिक हो जब देश अग्रेजों के खिलाफ स्वाधिनता की लडाइ लड रहा था । हालांकि १५ अगस्त को स्वाधिनता दिवस और २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस आज भी मनाये जाते है ..वक्त बदला और समय की मांग भी तो क्या हम सिर्फ इतना कह कर संतोष जता सकते है कि वह समय मांग कर रहा था ऐसी गीतों के जनमने का । चलिये इसी बहाने कवि प्रदीप जी को याद कर लिया जाय । ६ फरवरी १९१५ को मध्यप्रदेश में जन्में पंडित रामचंद्र दिव्वेदी से प्रदीप बनने की कहानी कम दिलचस्प नही है । कवि सम्मेलनों और मुशायरों में शिरकत करने वाले पंडित जी को किसी ने मिलवाया उस समय के महान फिल्मकार हिमांशु राय से ..हिमांशु राय उस वक्त काफी परेशान थे क्यूंकि उनकी लगातार छः फिल्में बुरी तरह पिट गयी थी । पहले पंडित जी का इंट्रव्यू हुआ ..उनसे कहा गया कि आशा है आप सेलेक्ट कर लिये जायें। पंडित जी को लगा कि देखने में भला हूं शायद यहां हीरो के लिये मेरा चयन किया जाएगा । बाद में बताया गया कि उनका चयन गीतकार के रुप में २०० रुपये मासिक पर हो गया है । १९३९ में अशोक कुमार और देविका रानी अभिनीत फिल्म कंगन बेहद सफल हुइ । इस सफलता के पिछे कवि प्रदीप के लिखे हुए चार गानों ने तो मानो पूरे देश में ही धूम मचा दी । फिर तो प्रदीप बढते रहे और बढते ही गये । १९४० में बंधन फिल्म का हिट गीत ..चल चल रे नौजवान ..और १९४३ में किस्मत फिल्म का गीत ..दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है ..इस गीत ने तो आजादी के आंदोलन में संजीवनी का काम किया ..थियेटरों जब ये फिल्म चल रही होती थी तो इस गाने को दर्शकों की विशेष फरमाइश पर दुबारा रिबांइड करके बजाना पडता था । बंबइ के एक थियेटर में तो यह फिल्म लगातार साढे तीन सालों तक हाउस फुल चलती रही। इस गीत की मकबुलियत की कीमत कवि प्रदीप को चुकानी पडी और अंग्रेजों ने उन्हें सलाखों के पिछे कर दिया । पुनर्मिलन , झूला , नया संसार , अंजान, किस्मत आदि के गीतों ने उनके कद को काफी उपर बढाया । मन्ना डे की आवाज में प्रदीप का लिखा गीत ...उपर गगन विशाल .....नेचर जो हमें गाड गिफ्ट के रुप में मिला है उसकी महत्ता को कितने सुंदर शब्दों में बताती है । विभाजन पर लिखा गया ..देख तेरे संसार की हालत ...उसी तरह बापू के सम्मान में ..दे दी हमें आजादी हो या आओ बच्चें तुम्हें दिखायें...कोइ लाख करें चतुराइ (चंडी राजा) या इंसान का इंसान से हो भाइचारा ..या पिंजडे के पंछी रे ..राष्ट्र-भक्ति और मानवीय मूल्यों और सामाजिक सरोकारों को एक सूत्र में पिरोने वाले इस अमर गीतकार का कोइ सानी नही । बात प्रदीप की हों और ऐ मेरे वतन के लोगों की बात ना हों तो कवि प्रदीप के बारे में कुछ कहना अधूरा रहेगा । माहिम के एक फुटपाथ पर सिगरेट के डिब्बे पर उन्होने इस ऐतेहासिक गानें को लिखा । पहले आशा भोंसले इस गाने को गानेवालीं थी लेकिन सी रामचंद्र और प्रदीप ने फैसला किया लता से इस गाने को गवांने के लिये । हिंदुस्तान और चीन के युद्ध में शहीदों को समर्पित लता जी के द्वारा गाये गये इस गीत ने २६ जनवरी १९६३ को दिल्ली के रामलीला मैदान में तत्कालिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु को रुला दिया । इस गीत को कवि प्रदीप ..लता जी ..और सी रामचंद्र ने ..वार वीडो फंड बनाकर शहीदों को समर्पित कर दिया । इस गाने की रायल्टी सदा सदा के लिये शहीदों की विधवाओं को मिलती रहेगी । २५ अगस्त २००५ को मुंबइ हाइ कोर्ट ने एचएमवी कंपनी को १० लाख रुपये शहीदों के परिवारों को इस गाने की रायल्टी के रुप में अदा करने के निर्देश दिये । लगभग १७०० गाने को कलमबद्ध करने वाले इस महान गीतकार को १९९७ में दादा साहेब फाल्के अवार्ड से नवाजा गया । राष्ट्र प्रेम से लोगों के अंदर जोश का संचार करने वाले इस गीतकार का अंतीम समय काफी मुश्किलात और गुरबतों से जूझता हुआ बीता ....इस पिंजडे के पंछी का दर्द दुनिया नही समझ पायी ..और कवि प्रदीप यह गाते हुए इस दुनिया से विदा हो गये ...चल अकेला चल अकेला चल अकेला तेरा मेला पिछे छूटा राही चल अकेला।