Monday, May 26, 2008

एक अनाम कविता

आपको सांस लेने की स्वतंत्रता है।

आप जो चाहे कर सकते है॥

हर तरह के बंधनों को तोडने के लिए आप आजाद है।

आप जहां जाना चाहे जा सकते है॥

हर दिन आपका है।

जो चाहे बोल सकते है॥

जहां चाहे वहां रात बिता सकते है।

अपनी प्रतिग्या को भंग करने के लिये आप स्वतंत्र है॥

खुद की मुस्कान पर आपका हक है।

किसी भी तरह की शर्त के लिये आप बाजी लगा सकते है॥

लेकिन यह सब करते हुये हमेशा ध्यान रखिए कि किसी ना किसी की नजर आप पर है।

Friday, May 23, 2008

दो कुत्ते


दो कुत्ते थे शेरु और मोती ..शेरु दिल्ली के पाश कालोनी जीके(ग्रेटर कैलाश) में रहता था और मोती कल्यानपुरी में. हालांकि दोनो दोस्त थे। चार पांच महिने के बाद दोनो इंडिया गेट के पास मिले।शेरु ने कहा यार मोती मैं तो सबेरे उठता हूँ तो समझो कि कूडेदान में लजीज व्यंजनों की भरमार होती है ..खाते नही बनता...मोती ने कहा शेरु मोतिया गैरत के साथ जीनेवाला इंसान है लजीज भले ही मुझे खाने को नही मिलता लेकिन कल्यानपुरी वाले मुझे बुलाते है मोती आ.आ आ ..तभी मैँ उठता हूँ खाना खाने के लिये ...

Tuesday, May 20, 2008

दिल्ली का रेड लाइट एरिया



दिल्ली में ही नही बल्कि बाहर भी जीबी रोड मशहूर है ॥कहा जाता है रेड लाइट एरिया है । एक बार गया था उस रोड से ॥रिक्शे पर सवार होकर जब मैँ रोड क्रास कर रहा था तो मैं नजर बचाकर उन कोठों की ओर तांकने का लालच ना छिपा पाया...विभिन्न भंगिमाओं से कोठे की लडकियाँ राह आने जाने वालों को मानो दावत दे रही थी। रोड क्रास कर चुका था और वो हसीन नजारा भी। ये तो रजिस्टर्ड जगह है जहा मजबूरी में औरतें देह व्यापार के धंधे में लिपत है। लेकिन ऐसे कै जगह है जहां ये धंधे पुलीस वालों के सह्योग से हुआ करते है। समय बीता लगभग दो सालों के बाद मेरा एक दोस्त स्टिँन्ग आपरेशन के सिलसिले में मेरे पास आया बोला आइ कार्ड रख ले ..स्टिँन्ग करना है ...मैँ बोला किसका ..बोला धंधे वाली लडकियों का और उसमें शामिल सफेदपोश लोगों का। बोला रिस्क है लेकिन तेरे उपर आंच नही आने दूँगा।पहला पडाव ः- भीखाजी कामा प्लेस के सामने का हयात होटल ...दोस्त की नजरों ने तलाश लिया ..एक महिला के पास जाकर कुछ बोला मैं दूर ही था थोडा हिचकते हुए पास गया ..2500 में मामला तय हो गया ..उसने पैसे दे दिये ...थोडी देर के बाद दोस्त से कहा सुनी हो गइ ..औरत ने कहा जाओं यहा से औरत पहुंच गइ 100 नंबर वाले पीसीआर वैन के पास ...दोस्त गया और बोला कि इसने मेरे 2500 रुपये लिए है ..पुलीस वाले ने हडकाया और कहा कि भाग जाओं यहां से वरना अभी गिरफ्तार कर लूंगा ..दोस्त गिडगिडाने का नाटक करने लगा सब कुछ कैमरे में कैद हो रहा था ..रात के ग्यारह बज रहे थे ..धीरे धीरे भीड होने लगी वहां पर ..पीसीआर वाले नशे में धुत्त..और वो धंधे वाली लडकी ऐसे खडी थी जैसे वो उन कांस्टेबलों की बास हो ..मामला बिगडता देख ..दोस्त ने अपना आइ कार्ड निकाला और दिखाया साथ तब जाकर पुलीस वाले शांत हुए और उसका पैसा भी लौटा गये ..दोस्त ने यह खुलासा नही किया ...कि उसने हिडन कैमरे पर सब कुछ शूट कर लिया है । ( अगली बार दूसरे स्पाट की कहानी)




Saturday, May 17, 2008

तेल बचाओं

गाडियों के काफिले से उतरकर मंत्री महोदय एक संगोष्ठी का उद्घाटन करने जा रहे थे.......जिसका विषय था ....तेल बचाओं अपने और राष्ट्र के लिए भी....

Friday, May 16, 2008

जातीयता का महाभारत




कहा जाता है कि अंग्रेजों ने बहुत सी अच्छी और बुरी चीजें हिन्दुस्तान को दी।राष्ट्रीयता दी , इतिहास लेखन दिया साथ में सांप्रदायिकता और जातीयता की भी नेमत बख्शी । वैसे भारत में जातीयता मनुस्मृति की देन है।इसी जातियता ने हिंदुस्तान की हर पराजय में प्रमुख भूमिका भी अदा की। हेमू , बैरम खां से युद्ध में नही हारा बल्कि जातिय गद्दारी ने उसे हराया , शिवाजी को बनारस के ब्राह्णों ने उसका राज्यरोहन नही कराया क्यूंकि वह क्षत्रिय नही था।भारत में आपसी फूट के बल पर ही इस्ट इंडिया के पांव जमें। इस्ट इंडिया कंपनी ने पहले देशी लोगों से निम्नतर सेवाए लेनी शुरु की। उसके बाद उन्होने किरानी का काम लेने के लिए देशी लोगों को पढाना शुरु किया। 1834 में कानून के तहत एडीएम के पद पर देशी लोगों की बहाली शुरु कर दी गइ । फारसी उस समय शासन व्यवस्था की भाषा थी। पढने लिखने का सिलसिला उस समय कायस्थ जाति के लोगों में काफी पहले से था।मुगलों के समय से ही उन्होने फारसी पढना शुरु कर दिया था। इस खास जाति का जमाने के साथ बदलने की अद्भुत क्षमता है।अंग्रेजों की पढाइ में भी वे औरों से काफी आगे निकल गये थे। जमींदार और राजाओं के बेटोँ में भी शासक बनने की होड सी मच गइ। अब सारे लोग अंग्रेजी पढने की ओर उन्मुख हो गये। सर सैयद को भी लगा कि मुसलमान अगर अंग्रेजी नही पढेंगे तो शासक दल की पंक्तियों में शामिल नही हो सकेंगे। उन्होने अलीगढ में अंग्रेजी वर्नाकुलर स्कूल की स्थापना की । फिर क्या था पूरे हिंदुस्तान के मौलवियों ने फतवा जारी किया कि सर सैयद मुसलमानों को क्रिस्तान बनाना चाहता है।उसके बाद 1877 या 1879 में लखनऊ में अखिल भारतीय कायस्थ सम्मेलन हुआ। सम्मेलन के निर्णयानुसार जाति के नाम पर देशव्यापी कायस्थ पाठशाला खोलने की बात कही गइ।जाति के नाम पर अखबार निकला । इसके ठिक दो वर्षों के बाद पटना में अखिल भारतीय भूमिहार ब्राह्णण सम्मेलन का आयोजन हुआ। सम्मेलन के निर्णय के अनुसार ग्रियर्सन भूमिहार ब्राह्णण कालेज और स्कूलों की स्थापना की गइ। बाद में कालेज का नाम बदलकर लंगट सिंह कालेज ( मुजफ्फरपुर , बिहार में स्थित ) कर दिया गया , लेकिन स्कूल का नाम अभी भी ग्रियरसन भूमिहार ब्राह्णण कालेजियट बरकरार है। इसके दो वर्षों के बाद मारवाडी सम्मेलन हुआ। फिर अखिल भारतीय सरयूपारीन ब्राह्णण सम्मेलन । ब्राह्णण स्कूल और ब्राह्ण्ण अखबार निकाले गये जिसके संपादक प्रताप नारायण मिश्रा और पंडित मदन मोहन मालवीय जैसे विद्वान लोग हुए । इन सबका क्रम दो दो वर्षों का था । उसके बाद क्षत्रिय सम्मेलन हुआ। बनारस में उदय प्रताप क्षत्रिय कालेज खुला जिसमें क्षत्रिय लोगों को घुडसवारी सिखाया जाता था और उसके बाद उन्हे पीने के लिए दूध भी दिये जाते थे।20 वीं सदी की शुरुआत में अखिल भारतीय गोप सम्मेलन और 1911 में दुसाध सम्मेलन हुआ था ।जातीय सम्मान बढेँ तो जातिय हमलें भी तेज हुए। उन हमलों का काट ढूंढा गया । कायस्थों ने अपने को ब्रह्मण का मानसपुत्र चित्रगुप्त का वंशज कहा और उनकी पूजा अर्चणा शुरु कर दी । विरोधियों ने इसे जायज नही माना। कायस्थों की एक उपजाती के संबंध में केशकारों ने घिनौना अर्थ दे डाला। ब्राह्णणों ने भूमिहार ब्राह्णोणों को ब्राह्णण मानने से इनकार कर दिया। स्वामी सहजानंद सरस्वती ने बजाप्ता ब्रह्मषि वंश विस्तार ही लिख डाला। 1920-21 आते आते जातिय कटुता आसमान छूने लगी । गवरनर के सलाहकारों की ऐसेम्बली में तीन मंत्री हुआ करते थे , मौलाना मजहरुल हक , सर गणेश दत्त , और सच्चिदानंद सिन्हा। मौलाना मजहरुल हक साहब संत माने जाते थे लेकिन सर गणेश दत्त और सच्चिदानंद सिन्हा में भयंकर होड मच गइ।बिहार में कायस्थ बनाम भूमिहारों के बीच गर्दनकाट प्रतिद्वंदता शुरु हो गइ।सर गणेश दत्त ने पटना विश्वविद्यालय में पुअर भूमिहार ब्राह्णण स्टूडेन्ट स्कालरशीप की शुरुआत की जो आज तक जारी है।कहनेवाले तो यहां तक कहते है कि स्वामी सहजानंद की ताकत को कम करने के लिए बाबू राजेन्द्र प्रसाद की सलाह पर खेतिहर मजदूर सभा की निंव रखी गयी ।चुनाव जीतने के लिए कांग्रेसियों ने इसे जमकर भंजाया। कहा जाता है कि समाज शिक्षीत होगा तो जातियता की बिमारी स्वतः दूर हो जाएगी लेकिन इस दर्शन का विरोध स्वंय बिहार के कालेज तथा विश्वविद्यालयों में मिल जाऐँगे।दूर छोडिये आज भी पटना मेडिकल कालेज हास्टल का प्रत्येक रुम जातियों में बंटा पडा है। आजादी के बाद पंडित चंद्रदेव शर्मा के द्वारा लिखित " बापू के सपूतों का राज" नाटक प्रकाशित हुइ थी जिसे विहार सरकार ने बैन कर दिया था।25 साल के बाद पटना हाइकोर्ट ने इस बैन को हटाया। इस नाटक में जातियता का भयंकर वर्णण है। आजादी के बाद राम मनोहर लोहिया का नारा सौ में साठ हमारा है का लगा । काका कालेकर की अध्यक्षता में कमीशन की स्थापना की गइ। तत्कालिन सरकारों ने उसे लागू नही किया।मंडल कमीशन बना ॥उसकी रिपोर्ट भी ठंडे बस्ते में पडी रही ।1967 और 1974 के आंदोलन में जातीयता जडता टूटी थी । संघर्ष के दौरान जाति की बात नही उठी थी । 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने मंडल कमीशन को लागू किया जिसकी भयंकर प्रतिक्रिया हुइ।उस समय एक प्रश्न उठा था । आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व कौन कर रहा था । कोइ व्यक्ति तथा राजनीतिक दल नही बल्कि एक सयाने ने कहा ..मीडिया...। मीडिया हेडलाइन देकर इस आंदोलन को चला रहा था । वीपी सिंह की सरकार गिरते ही उसका काम हो गया । राव साहब की सरकार ने आराक्षण को अमली जामा पहनाया। विश्वविद्यालयो में हंगामा फिर शुरु हुआ, मीडिया ने तवज्जों नही दिया। आंदोलन अपनी मौत मर गया क्युंकि मीडिया का काम हो चुका था। उसका मुख्य मकसद वीपी सिंह की सरकार को गिराना था क्यूंकि प्रबंधन में मजदूरों की सहभागिता और संविधान में काम के अधिकार कानून को पूंजीपती वर्ग पारित नही होने देना चाहते थे।आम आवाम के अन्दर इतना आक्रोश था कि बिना कोइ ठोस कार्य किए लालू अपनी अनपढ वीवी के साथ बिहार में 15 बरस तक गद्दी पर बैठे रहे।पंडित को गाली देने वाले कर्पूरी ठाकुर के शिष्य लालू प्रसाद अब बिना पूजा पाठ के कोइ काम नही करते। पिता की मृत्यु पर समाजवादी नीतिश कुमार ने सर नही मुंडवाया था , बडी चर्चा हुइ थी , लेकिन पत्नी के मरने के बाद उनके समाजवाद की हवा निकल गइ।मुट्ठी भर सवर्ण कहने वाले नीतिश जी आज उसी की गोद में सो रहे है। संसकृत का श्लोक है कि जिस रास्ते बडे लोग जाते है वहीं रास्ता हो जाता है। लालू जी भी उसी रास्ते गये जिसपर जमींदार और कांग्रेसी गये । उसी की नकल होने लगी। मायावती और मुलायम भी उसी रास्ते पर चल रहे है।1974 में भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लडने वाले लालू प्रसाद बाद में खुद ही भ्रष्टाचार के प्रतीक बन गये। उत्तर भारत में माडल क्या है ? राजा , जमींदार और कांग्रेसी । बिहार के टिकारी राज्य के अन्तर्गत रहने वाले हर भूमीहार के यहा महंगा व्यंजन विरंज बनता है । बिहार के किसी भी दूसरे भूमिहारों के यहां यह व्यंजन नही बनता । टेकारी महाराज के यहां विरंज बनता था । जमींदारी उन्मूलन के बाद अपने को टिकारी महाराज मानते हुए उस क्षेत्र के गरीब भूमीहार के यहां भी यह महंगा व्यंजन बनता है।लालूजी मुख्यमंत्री बनने के बाद अपने गांव गोपालगंज के फुलवरिया गये । उनकी मां ने पूछा .. बबुआ तू का हो गइल बाडअ..। लालूजी ने कहा माइ हम बिहार के हथुआ महाराज हो गइल बानी।पटना जंक्शन पर एक बार बैठा था । एक बैँड बाजा बजाने वाला मजदूर भी मेरे पास बैठा था । मालूम हुआ कि वह रविदास है सट्टा पर बाजा बजाता है। एकाएक एक राजनीतिक पार्टी का जूलुस निकला । वह हंसा और बोला सब जात पर मरता है ..इ खातिर हमनी भी सब पार्टी छोडके अप्पन जात वाला पार्टी बसपा में चल गइली हे..स्पस्ट है संघर्ष से ही यह जातियता टूट सकती है ..दूसरा और कोइ रास्ता नही जिससे जातियता पर हमला हो सकें ।


( रविश कुमार की दवा की जाति के लेख ने मुझे प्रेरित किया कि जातियता के इस बहस को और आगे ले जाया जाय जिससे समाज में जडता खत्म हो। )


Saturday, May 10, 2008


मैथेमैटिक्स किंग वशिष्ठ नारायण

हाल ही में पटना के एक संस्थान ने वशिष्ठ नारायण जी के नाम पर अपनी संस्था का नामकरण किया। इस अवसर पर खुद वशिष्ठनारायण जी अपने परिवार के सदस्यों के साथ पहुंचे थे। गणित के इस जादूगर को जब मंच पर बुलाया गया तो वे कुछ गणीत के सूत्र ही बुदबुदा पाये।2005 में मैँ इनके गांव वसंतपुर पहुँचा था जो आरा शहर से 20 किलोमीटर की दूरी पर है । गांव के बीचोबीच एक पक्का मकान है। घर के बरामदे पर एक खाट पर सोये थे वशिष्ठ नारायण। मैने सिर्फ उनका नाम सुना था ।साक्षात देखने के बाद मेरे अंदर जो सुख की अनुभूती हुइ मैं उसका बयान नही कर सकता। उनके चेहरे पर मक्खियाँ भिनभिना रही थी । मैंने हांकने की कोशिश की तब वे जाग उठे। बहुत प्रार्थना करने के बाद परिवार के अन्य सहयोगियों की मिन्नत पर वे साक्षात्कार के लिए राजी हुए। जल्दी बोलिये क्या पूछना है....जरा अपना पेनवा दिजीयेगा बडा अच्छा है ,,पायलट का पेन मैनें पाकेट से निकाल कर दे दिया। अपने कुर्ते के पाकेट से उन्होने छोटे छोटे बंडल निकाले।जिसमें दो तीन चूडी ,कुछ धागे और बाल पेन का रिफील ...उन्होने मेरे पेन को उन्हीं सामानों के साथ रख लिया । मैने पूछा सर मैथ क्या है उन्होने मैथस के कुछ सूत्र बोलने शुरु किये। फिर वो ऐटम बम के बारे में बोलने लगे। उसके बाद उन्होने कहा चलिये अब भागिये यहां से ...मैने कुछ हठ किया तो उन्होने मुझे डांटते हुए मुझे वहां से भाग जाने के लिए कहा। खैर मुझे लगा कि इंटरव्यू के चक्कर में किसी की भावनाओं से खेलना ठिक नही है।घर के पूरे दिवार पर उन्होने मैथस के सूत्र और सीताराम से संबंधित भजन के सूक्त लिख रखे थे। बिहार के राजनीतिग्यो में लालूजी और रामविलास जी के बारे में उनके परिवारवालों ने खूब बडाइ की । केन्द्रिय मंत्री अर्जुण सिंह ने भी अपनी ओर से इस परिवार को मदद प्रदान की है। परिवार वालों ने एक वाक्या सुनाया ॥लालूजी वशिष्ठ बाबू का हालचाल जानने वसंतपुर पहुंचे। वशिष्ठ बाबू ने कहा कि ए लालूजी एगो रुपया देब...लालूजी के पास शायद पाकेट में एक सिक्का नही था..वशिष्ठ बाबू भडक गये कहा जो एक रुपया नही दे सकता वो हमारी मदद क्या करेगा। हालांकि उनकी मानसिक स्थिती ने ऐसा कहलवा दिया हो...पिछले कइ बर्षों से सिजोफ्रेनिया से ग्रसित वशिष्ठ बाबू के बारे में गांव वालों ने दिखाया मीडिल स्कूल जहां उन्होने अपनी प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की थी। पीपल का बडा सा पेड सूखा पडा था और स्कूल की जर्जर इमारतों को देखकर ऐसा लग रहा था कि मानों अब रो पडे॥पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपती एस एन पी सिन्हा ने वशिष्ठ बाबू पर एक वायोग्राफी लिखी है वि्श्व अप्रितम गनितग्य .इस किताब में उनके जीवन और उपलब्धियों पर लेखक ने बहुत ही सुंदर चित्रन किया है।पटना में आयोजीत समारोह में वशिष्ठ बाबू की मां ल्हासो देवी ने अपने संबोधन में सिर्फ़ यही कहा कि मेरे पुत्र को भला चंगा करने में लोग आगे आकर मेरी मदद करें।आइये हम सब मिलकर भारत के इस धरोहर के लिए आगे आकर मदद का हाथ बढायेँ।

Friday, May 2, 2008

लता की महानता का दूसरा पक्ष


लता एक ऐसा नाम जिनकी कृतियों के बारे में लिखना मेरे जैसों के वश की बात नही। स्वर कोकिला जैसे विभूषणों से अलंकृत इस महान गायिका जब अपने चरम पर थी तब ना जाने कितनी प्रतिभाएं काल के गाल में समाती चली गइ थी। लता ने किसी एक को अपने आगे ना पनपने का मौका दिया और ना ही आगे बढने का।लता ने अपने पूरे फिल्मी करियर में खासकर महिला गायिकाओं को अपना निशाना बनाया।तितली उडी ...फूल ने कहा तू आजा मेरे पास ..जैसे हसीन गाने को अपना सुर देने वाली गायिका शारदा.. लता की प्रताडना की सबसे अहम उदाहरण है।शंकर और जयकिशन की जोडी ने शारदा को ब्रेक क्या दिया ..लता ने शंकर जयकिशन के कंपोजीशन में गाना ना गाने का प्रण कर लिया । उन्हीं दिनों राजकपूर अपने सपनों की फिल्म मेरा नाम जोकर के निमाॻण में लगे थे । राजकपूर की बकायदा एक टीम थी जिसमें लता , मन्ना डे , मुकेश , शैलेन्द्र , हसरत जयपुरी और शंकर जयकिशन महत्वपूर्ण सदस्यों में से एक थे।मेरा नाम जोकर में शंकर जयकिशन बकायदा अपने कंपोजिशन तैयार कर चुके थे ।्अचानक लता ने राजकपूर से कहा कि शंकर को फिल्म से निकालो तभी मैं आपकी फिल्म में स्वर दे सकूंगी । राजकपूर के लिए ये कठिन मरहला था । राजकपूर ने शंकर जयकिशन को फिल्म से बाहर करने से इनकार कर दिया । मेरा नाम जोकर हिन्दी फिल्म इतिहास की बहुत बडी फिल्म होकर भी बाक्स आफिस पर पिट गयी । लोगों ने कहा लता ने नही गाया तो फिल्म को तो पिटना ही था। राजकपूर का एक बडा सपना खाक हो चुका था।खैर उसके बाद बाबी बनी , राजकपूर ने शंकर जयकिशन को चलता कर दिया , लता जी ने इस फिल्म में अपना बहुमूल्य सुर दिया । फिल्म ने टिकट खिडकी पर सफलता के झंडे गाड दिये। कुछ ही दिनों के बाद शंकर भी इस दुनिया से कूच कर गये।वाणी जयराम , हेमलता , चंद्राणी मुखर्जी , रुना लैला , सुधा मल्हो्त्रा ,प्रीती सागर ये कुछ ऐसे नाम है जो प्रतिभा संपन्न होने के बाबजूद लता की हेकडी के आगे नही टिक सकी और गुमनामियों के अंधेरे में खो गइ। लता के गाये कइ अमर गीतों के समानांतर क्या ये गाने आपके कानों में रस नही घोलते....बोले रे पपीहरा(वाणी जयराम) ....तुम मुझे भूल भी जाओं तो ये हक है तुमको (सुधा मल्होत्रा )..दो दिवाने शहर में (रुना लैला)..अंखियों के झरोखे से(हेम लता) ...तुम्हारे बिना जी ना लगे घर में (प्रीती सागर).....