Sunday, April 26, 2009

केरल जहां चुनावी मुद्दे राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय है ।


२० लोकसभा सीटों वाले केरल में लोकसभा चुनाव एक चरण में ही खत्म हो गये है । मीडिया में राजनीतिक रसूख रखने वाले राज्यों की तो खूब चर्चा होती है लेकिन साउथ इंडिया के इस राज्य पर राष्ट्रीय मीडिया ने ज्यादा तवज्जों नही दी । भला हो शशी थुरुर की तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस की उम्मीदवारी का जिसकी बजह से यह राज्य राष्ट्रीय मीडिया में थोडा स्पेस पा सका। यहां कहा जाता है कि एक बार तू तो दूसरी बार मैं। पिछली बार सीपीएम की अगुवाइ वाली लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट ने लगभग क्लीन स्वीप किया था ..२० में से १९ । एक सीट पर कांग्रेस की अगुवाइ वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के इंडियन मुस्लिम लीग के उम्मीदवार और वर्तमान में विदेश राज्य मेंत्री ई. अहमद मंजेरी सीट से जीत पाये थे । लगभग बीसों लोकसभा सीटों में कंपेनिंग एक तरह की । मुद्दों के क्या कहने ...अगर उत्तर भारत की बात करें तो राम और रोटी के साथ साथ नाली और गली भी लोकसभा चुनावों के मुद्दे होते है । यहां मुद्दे अलग किस्म के थे ..मसलन इजरायल सरकार के द्वारा गाजा पर हमले कर निर्दोष मुसलमानों का खून बहाया जा रहा है ..केंद्र सरकार का इस पर क्या स्टैंड है ....भरत अमरीकी परमाणु करार से भारत को क्या फायदे होने वाले है ....कांग्रेस को प्रो इजरायल बताने वाला लेफ्ट यह बताये कि बंगाल के भूतपूर्व मुख्यमंत्री २० लोगों के बिजनेस डेलीगेशन को लेकर इजरायल में क्या करने गये थे । चुनाव की तिथी घोषित होने के महज २ दिन पहले भारत सरकार ने इजरायल के साथ बडा मिसाइल डील क्यूं किया ? हालांकि स्थानिय मुद्दों की बात करें तो उनमें दो बडे ही महत्वपूर्ण थे । पहला ऐसएनसी लेवनीन डील जिसमें कहा जाता है कि कनाडा की कंपनी से हुए इस डील में तत्कालिन उर्जा मंत्री और वर्तमान में स्टेट सीपीएम सेकेरेट्री पिन्नारी बिजयन की कथित भूमिका पर राज्य सरकार के द्वारा लीपापोती की कोशिश की गयी है । दूसरा सबसे अहम मुद्दा यूडीएफ का एलडीएफ पर था कि लेफ्ट ने चुनावी लाभ के लिये अपने सिद्दांतो की बली देकर पीडीपी यानि पिपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के विवादस्पद नेता अब्दुल नसीर मदनी के साथ चुनावी तालमेल किया । ये वही मदनी है जिनपर १९९६ में हुए कोयंबतूर बम व्लास्ट का दोषी माना गया था और बाद में आठ साल की सजा भी हुइ थी । हालांकि बाद में कोर्ट इन्हें बेकसूर मानते हुए बरी कर दिया था । अगर पिछले विधानसभा चुनावों की बात करें तो कांग्रेस नीत यूडीएफ सरकार के मुख्यमंत्री ओमन चांडी के साथ मदनी के बडे बडे पोस्टर थे और जनता से यह कहा गया कि मदनी को झूठे आरोपों के तहत फंसाया गया है । हालांकि इस चुनाव में चांडी मतदाताओं से अपनी भूल के लिये माफी मांगते नजर आये । मदनी से जब हमारी बात हुइ तो मदनी ने कहा कि मुझे यूडीएफ के द्वारा फंसाया गया । मैं अगर अलगाववादी हूं तो यूडीएफ के परम सहयोगी इंडीयन मुस्लिम लीग क्या है ? कायदे आजम के द्वारा स्थापित इस पार्टी का झंडा आज भी पाकिस्तानी है । खैर पिनारी ने इस चुनाव में एक बहुत बडा जुआ खेला है ...लेफ्ट ने अपनी कूटनीति के तहत मुस्लिम लीग को घेरने के लिये पीडीपी को आगे किया है ..हालांकि इसका परिणाम यह हुआ है कि मल्लपुरम से मुस्लिम लीग के टिकट पर चुनाव लड रहे ई अहमद और पुनानी से किस्मत आजमा रहे इटी बशीर को पीडीपी की बजह से काफी पसीना बहाना पड रहा है । कहा जाता था कि बनातवाला हो या सुलेमान सेठ एक बार नामांकन करने आते थे और दूसरी बार जीत का प्रमाणपत्र लेने । आपको याद होगा कि पुनानी सीट को लेकर सीपीआइ ने पूरे राज्य में अकेले चुनाव लडने की घोषणा कर दी थी ..हालांकि बाद में समझौते के तहत सीपीएम ने सीपीआइ को वायनाड जैसी जोखिम भरी सीट दे दी वही पुनानी सीट पीडीपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार रंडथानी के लिये छोड दी । मल्लपुरम में हमने ई अहमद के बडे बडे कट-आउट देखें जिसमें अहमद यासर अराफत के साथ गले में गले डालकर शायद मतदाताओं को ये जता रहे थे कि फिलीस्तीन के सच्चे हितैषी वही है । उधर कांग्रेस के तिरुवनंतपुरम से उम्मीदवार शशी थुरुर को विरोधियों ने घेर रखा था उनपर आरोप लगाया जा रहा था कि उन्होने अपने एक लेख में इजरायल सरकार की वंदना की थी । थुरुर का कहना था कि मैनें हजारों लेख लिखें अगर उसमें से पांच लाइन इजरायल सरकार की किसी खूबी के बारे में रेखांकित किया तो विरोधी लोग उसी को लेकर मेरे पिछे पड गये है । वहां के लोगों की मानें तो उनका कहना था कि यहां के मतदाता विधानसभा चुनावों में सीपीएम के साथ तो हो जाते थे लेकिन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को सपोर्ट करते थे...बजह थी कि केंद्र की राजनीति में सीपीएम की किसी भूमिका का ना होना । हालांकि सन १९९६ के लोकसभा चुनावों के बाद जिस तरह से तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने में लेफ्ट ने हरकिशन सिंह सुरजीत की अगुवाइ में किंग मेकर की भूमिका निभाइ तब से केरल के मतदाताओं को लगा कि लेफ्ट भी केंद्र की राजनीति में भूमिका निभा सकती है । उसके बाद से लोकसभा के चुनावों में लेफ्ट का प्रदर्शन निरंतर बेहतर होता गया । शायद यही कारण है कि वर्तमान तीसरे मोर्चे के घटक दल भले ही केंद्र में अपनी भूमिका को लेकर ओपेन है लेकिन लेफ्ट नन कांग्रेस और नन बीजेपी की सरकार बनाने के लिये ज्यादा मुखर है ।