Friday, June 13, 2008

शायरी और शराब



हालांकि इस्लाम में शराब पीना वजिॆत है ..लेकिन उदूॆ शायरों ने जमकर शराब तो नही पी लेकिन धामिॆक उपदेशकों यानि वाइज की खूब फजीहत की...आइये देखते है कुछ चुनिंदा शायरों के चुनिंदा शेर...

शाम को जाम पिया सुबह को तौबा कर ली।


रिन्द के रिन्द रहें हाथ से जन्नत न गइ।। (अनाम)

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रखते है कहीं पांव तो पडता है कहीं और ।


साकी तू जरा हाथ तो ले थाम हमारा।। (इँशा)

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कजॆ की पीते थे मय-औ यह समझते थे कि हां ।


रंग लाएगी हमारी फाका-मस्ती एक दिन ।। (गालिब)

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अंगूर में धरी थी पानी की चार बूंदे ।


जब से वो खिंच गइ है , तलवार हो गइ है।। (अनाम)

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साकी तू मेरी जाम पे कुछ पढ के फूंक दे ।


पीता भी जाउँ और भरी की भरी रहे।। (अनाम)

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साकिया अक्स पडा है जो तेरी आंखों का ।


और दो जाम नजर आते है पैमाने में ।। (अनाम)
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दिल छोड के यार क्यूंकि जावे ?


जख्मी हो शिकार क्यूंकि जावे ?


जबतक ना मिले शराबे दीदार ,


आंखो का खुमार क्युंकि जावे ? (वली)

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रंगे शराब से मेरी नियत बदल गइ ।


वाइज की बात रह गइ साकी की चल गइ।


तैयार थे नमाज पे हम सुन के जिक्रे-हूर ।


जलवा बुतों का देख के नियत बदल गइ ।।


चमका तेरा जमाल जो महफिल में वक्ते शाम ।


परवाना बेकरार हुआ शमां जल गइ।। (अकबर)

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मस्जिद में बुलाता है हमें जाहिदे-नाफहम ।


होता अगर कुछ होश तो मैखाने ना जाते।। (अमीर मीनाइ)
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चलिये आज के लिए इतना ही पैग काफी है।