Monday, October 27, 2008

रविश कुमार मीडिल क्लास के नही लगते ?


रवीश कुमार को जानता था ..एनडीटीवी के बाद उनकी खबरों और रपटों को भी देखने लगा । इलैक्ट्रानिक मीडिया में वैसे भी खबरें कहां होती है ...रावण ने यहीं अपने पांव रखे थे ..सरक गयी चुनरी रैंप पर ..खैर इसमें तह तक जाने की आवश्यकता नही । एक दिन हाफ एन आवर रवीश कुमार का आ रहा था ..मेरे कुछ पत्रकार दोस्त जो मेरे साथ काम करते है ..बोले आलोक देखो यार बहुत अच्छी डाक्यूमेंट्री है ..मैं टीवी से चिपका ...कुछ लोग रविश कुमार के नाम से चिढते थे ..पहले तो उन्होने कहा बंद करो टीवी ..चैनल चेंज करों ..जाहिर था वो सब मेरे मित्र अंग्रेजी जर्नलिस्ट थे ..हमारे यहां आधे आधे घंटे पर हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में बुलेटिन प्रसारित होता है । खैर शुरु में तो उन अंग्रेजीदा पत्रकारों ने विरोध किया ..लेकिन जैसे जैसै कहानी आगे बढी ..सब के सब टीवी से चिपक गये । बात मीडिल क्लास के महानगर के समंदर में खो जाने की थी । एंकर कहता है कि मेरे चाचा ने अपनी बेटी की शादी के लिये गांव में कर्ज लिया था ...बडी जगहंसाइ हुइ थी ..कारें गिने चुने लोगों के पास होती थी ..लेकिन अब आम है । आज मेट्रों में सब कुछ उपलब्ध है ..लोन का पहाड जो आम आदमी के हाथ लग गया है ..हर चीज उपलब्ध है लोन पर ....प्रोग्राम खत्म हुआ ..सब को बडा अच्छा लगा ...उसी रात को सब एक महफिल में जुटे ...दो तीन भारी भरकम पत्रकार भी मौजूद थे ..अब हम सब यही चर्चा करने लगें ..वाह वाह ..क्या हाफ एन आवर था रविश कुमार का ..कोइ लोन वाले प्रसंग का जिक्र करता ...कोइ बजाज स्कूटर पर बैठकर रविश कुमार के जर्नलिस्टिक ऐप्रोच का बखान करता तो कोइ कुछ और भी...महफिल का एक बडा वक्त रविशकुमार के नाम खर्च हो गया ..भारी भरकम में से एक ने कहा ...शायद वो दूसरे की प्रशंशा सुनकर लगभग आपे से बाहर हो चुके थे ... बोले ..शर्म आनी चाहिये ..आप लोगों को .. कुछ करना नही चाहते ..अगर करतें तो रविश कुमार भला किस खेत की मूली है ..हिंदी जर्नलिस्म में आखिर रखा ही क्या है ...हम बोल नही सकते थे ..क्यूंकि कुछ भी बोलना आफत को न्यौता देना था । खैर बाद में हमलोगों ने रविश कुमार दूसरे भी हाफएन आवर प्रोग्राम को देखा करते रहें । कस्बा में भी रविश साहब ऐसा लगता है कि मीडिल क्लास के सच्चे प्रणेता है ....बस एक दिन टीवी पर देखा रविश कुमार ..साला मैं तो साहब वन गया ..ये बात दीगर थी कि साहब बनकर तनें नही थी । कोर्ट ..और टू पीस एंड थ्री-पीस ..विल्कुल इलिट लग रहे थे ..आम नही ..एंकरिंग कर रहे है हो सकता है कि मजबूरी हो लेकिन इस भेष में रविश कुमार मीडिल क्लास के नही अभिजात्य वर्ग के प्रणेता लगते है ।