Sunday, November 7, 2010

ऐतेहासिक होगा बिहार के लोगों का फैसला


पहले राष्ट्रमंडल खेल फिर ओबामा की भारत यात्रा ..और फिर एशियन गेम्स की चकाचौंध । शायद बिहार का चुनावी संग्राम मीडिया की सुर्खियां बटोरने में थोडा पीछे सा रह गया है। विभिन्न चैनलो और दिल्ली के पत्रकारों ने नीतिश कुमार की पुनः ताजपोशी कर दी है । पिछले दो महीनें से बिहार में हूं । बहुत सारे जगहों पर घूमा । यहां ऐसी कोइ लहर नही जो दर्शाती हों कि अमुक पार्टी को पूर्ण जनादेश देने के लिये जनता बेताब है । अगर पिछले २००५ के विधानसभा चुनावों की बात की जाये तो लालू के खिलाफ एक लहर सी पूरे प्रांत में चल रही थी जिसकी आंधी में सब उड गये और राज्य में एनडीए की सरकार बनी । वैसी आंधी या तूफान यहां देखने को नही मिल रहा है । हां एक बात जरुर नीतिश के चेहरे पर देखने को मिल रही है । सत्ता में वपसी को लेकर वह आश्वस्त ही नही बल्कि ओवरकन्फिडेंट नजर आते है । शाइनींग इंडिया के बाद शाइनिंग बिहार वाली चमक एनडीए के नेता और उनके समर्थक जरुर महसूस कर रहे है । टिकटों को लेकर एनडीए और जद यू में खूब घमासान मचा ..आखिरकार बात बनी और अब तो मात्र दो चरणों के चुनाव बाकि रह गये है । समीक्षकों का मानना है कि बढा हुआ वोट प्रतिशत नीतिश के गठबंधन को तो १५० से १७० सीट तक दिला सकता है या तो यह गठबंधन ८० - ९० सीटों तक सिमट जायेगा । २४३ सीटों पर अकेले चुनावी अखाडे में कूदी कांग्रेस अपने सीटों में कोइ खास इजाफा करने तो नही जा रही लेकिन इस पार्टी ने राजद-लोजपा और भाजपा जद-यू गठबंधन को खासा परेशान किया है । हालांकि राजद गठबंधन को कम ...लेकिन जद-यू गठबंधन को इसका ज्यादा नुकसान उठाना पड सकता है । जिस किसी सीट पर कांग्रेस ने जातीय समीकरण को ध्यान में रखकर दमदार प्रत्याशी उतारा है वहां राज्य की दोनो प्रमुख गठबंधन को नुकसान उठाना पड रहा है । पिछले कुछ चुनावों से राजद लोजपा गठबंधन में यादव जाति के लोगों को पासवान पर भरोसा नही था उसी तरह पासवान जाति को यादवों पर भरोसा नही था ..शायद यही कारण था कि हाजीपुर से पासवान को हार का मुंह देखना पडा था । इस बार स्थितियां बदली हुइ है । दोनो जातियां गोलबंद है अपने प्रत्याशियों की जीत के लिये । इसका फायदा इन दोनो दलों को मिल सकता है । लालू ने ७५ सीटें लोजपा को दी है ..लोजपा ने दिल खोलकर सवर्ण प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है । लालू की पार्टी से अपेक्षाकृत सवर्णों को कम सीट दी गयी है । लालू से सवर्ण जातियों को चीढ हो सकती है लेकिन शायद पासवान से नही । जैसे जैसे चुनाव अंतिम दौर में पहुंच रहा है ..अन्य मुद्दों पर जातिय फैक्टर ज्यादा हावि हो रहा है । जद-यू के अत्यंत पिछडी जातियों में सेंधमारी को लेकर विपक्षी राजद - लोजपा गठबंधन खासे परेशान है ..वहीं नीतिश कुमार सवर्णों में सबसे आक्रामक जाति की नाराजगी से परेशान दिख रहे है ।अलपसंख्यक वोटों में भी बिखराव दिख रहा है ..लेकिन इसका ज्यादा प्रतिशत लालू वाले गठबंधन की ओर जा सकता है ..जहां जहां कांग्रेस की ओर से दमदार प्रत्याशी है अलपसंख्यकों का झुकाव कांग्रेस की तरफ भी देखने को मिल रहा है । बटाइदारी कानून का मुद्दा हालांकि यहां नजर नही आ रहा लेकिन साइलेंट वोटरों की संख्या को देखते हुये इस मुद्दे का मुर्दा हो जाना कहना गलत होगा । नीतिश सरकार के द्वारा अमन चैन ..रोड के मामले में सुधार ..लडकियों को साइकिल वितरण जैसे विकास के मुद्दे लोगो को खूब भा रहे है ..लेकिन अफसरशाही के हिटलरी रवैये ..गरीबों को दी जाने वाली खाद्यान में घोटाले जैसे मुद्दे नीतिश सरकार के खिलाफ जा रहे है ।शायद यही वजह है कि नीतिश अपनी चुनावी सभाओं में कह रहे है कि सत्ता में वापसी पर भ्रष्ट अपसरों को जेल ही नही भेजेंगे बल्कि उनकी संपत्ती को जब्त कर उसमें स्कूल खोलेंगे । लालू अपनी सभाओं में उंची जातियों से खूब माफी मांग रहे है कह रहे है कि आज सारे सवर्ण जाति के लोग समझ रहे है कि लालू मुंह का फूहड है दिल से नही और नीतिश दिल के काले है । कांग्रेस और राहुल गांधी पर भी खासकर जद-यू की तरफ से खूब आक्रमण हो रहा है ..शरद यादव का बयान गंगा में फेंक देने वाला ..पर खूब हंगामा हुआ। कांग्रेस का मानना है कि जद-यू के वोट वैंक में सेंधमारी से एनडीए के लोग बौखला गये है ।विश्लेषकों का मानना है कि सन २००३ के राजस्थान विधान सभा चुनावों में अशोक गहलोत से राज्य की जनता को कोइ नाराजगी नही थी । सर्वेक्षणों में वेस्ट मुख्यमंत्री के तौर पर गहलोत सबसे आगे थे लेकिन जब चुनाव के परिणाम आये तो भाजपा ने कांग्रेस का सूपडा साफ कर दिया । गहलोत के खिलाफ नही बल्कि उनके मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ जबरदस्त ऐन्टीइंकंबेंसी मत पडे । कुछ क्षेत्रों में ऐसी स्थिति देखने को मिली लेकिन राजस्थान जैसे हालात यहां नजर नही आ रहे है । कुल मिलाकर यहां लडाइ दिलचस्प है और २४ तारिख को जब मतों की गिनती होगी तो बिहार के लोगों का जनादेश अपने आप में ऐतेहासिक माना जायेगा । लोगों ने विकास को ही तरजीह दी या जातिय समीकरण का ही ख्याल रखा यह देखना ज्यादा महत्वपूर्ण रहेगा ।

Saturday, August 14, 2010

पिपली लाइव का असली हीरो नत्था नही राकेश है ?


फिल्म रिलीज होने के पहले बहुत कुछ कयास लगाये जा रहे थे ..किसान कर्ज माफी.... ग्रामीण भारत की समस्या आदि आदि इस फिल्म का थीम है । सही मायनों में यह फिल्म मीडिया और खासकर खबरिया चैनलों को खबर लेती दिखती है । भाजपा नेता प्रमोद महाजन को गोली लगने के बाद चार दिन तक जिंदगी और मौत से वो जूझते रहे ..आखिरकार उनका दुखद अंत हुआ। लेकिन उन चार दिनों तक खबरिया चैनलों के रिपोर्टर ..खबरनवीस कम डाक्टर ज्यादा हो गये थे। स्टिक लेकर लीवर का नक्शा बनाकर वो बताते थे कि गोली गोल व्लाडर को छूती हुइ निकली है ..इसलिये संभावना है कि प्रमोद महाजन की जान आसानी से बच जाएगी ...कोइ कहता था कि नही मेडिकल साइंस के मुताबिक गोली लगने के बाद टेटनस का खतरा हो गया है ..इसलिये उनकी जिंदगी खतरे में है । कुछ ऐसा ही उदाहरण नत्था के साथ इस फिल्म में है । आत्म हत्या के डर से उसे एक दिन में २० २० बार शौचालय के लिये जाना पडता है । एक बार शौचालय करने के बाद अहले सुबह नत्था गायब हो जाता है । उसकी ट्टी पर कुमार दिपक नाम के रिपोर्टर का विश्लेषण शुर होता है ...नत्था गायब है ..लेकिन वहीं ये जगह है जहां नत्था ने अंतिम बार अपना मल त्याग किया है ...इसका पाखाना सफेद है ..इसलिये जाहिर है कि नत्था जिस मनोस्थिती से गुजर रहा है उस हालत में ऐसा ट्टी होना लाजिमी है ..यह मनोचिकित्सकों का भी मानना है । चैनलों में एक जीव है जिसका नाम ..स्ट्रिंगर होता है । कस्बे का संवाददाता होता है । राष्ट्रीय चैनलों में कस्बों की खबर गाहे बगाहे ही फलक पर आती हों लेकिन जब कोइ बडी घटना कस्बे के आस पास हो जायें तो वही स्ट्रिंगर चैनलों के लिये अति महत्वपूर्ण हो जाता है। जहानाबाद जेल ब्रेक के दौरान एक स्थानिय स्ट्रिंगर ने ही उस खबर को ब्रेक किया था ..चैनल की टीआरपी भी बढी ..हालांकि चैनल ने उस स्ट्रिंगर को प्रश्स्ती पत्र के साथ साथ सुपर स्ट्रिंगर बनाया और नकद भी दिया । खैर ऐसा सबके साथ नही होता है । कुछ ऐसा ही पिपली लाइव में राकेश नाम का किरदार है जो स्थानिय अखबार का संवाददाता है। नत्था की खबर उसी के अखबार में सबसे पहले छपी । बाद में यह बडी खबर बन गयी ..राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक हिल गयी । सारे चैनलों के बडे सूरमा पिपली पहुंच गये । एक बडे चैनल की बडी अंग्रेजीदा रिपोर्टर भी पहुंची ...राकेश उन्हें ऐसीस्ट कर रहा था । उन्हीं के साथ साथ घूमता था और उनके चैनल की टीआरपी बढाने में मदद कर रहा था । कुछ दिन साथ रहने के बाद राकेश ने मोहतरमा को अपना सीवी बढाया ...मोहतरमा ने उसे अपने पास रखने को कहा क्यूंकि उसकी नौकरी से कहीं ज्यादा नत्था की स्टोरी थी । उस गांव में एक और किसान कर्ज और भूख से मर जाता है लेकिन वो चैनलों के लिये खबर का हिस्सा नही बन पाता है ...राकेश और मोहतरमा में वैचारिक तकरार भी इसको लेकर होता है ,,लेकिन मोहतरमा भारी पडती है क्यूंकि वो बडे चैनल की बडी रिपोर्टर है । पीटूसी करने के पहले पिपली के धूल धूसरीत स्थान में फिल्ड रिपोर्टिंग करते वक्त वह अपना मेकअप करना नही भूलती । नत्था कहां है ..राकेश की खोजी पत्रकारिता रंग लायी और नत्था का उसने पता लगा लिया । मोहतरमा दौडती है साथ में और चैनलों के रिपोर्टर अपनी ओवी के साथ उधर लपकते है । इसी बीच एक विस्फोट मे राकेश की मौत हो जाती है ...नत्था गुडगांव निकल पडता है दाढी मुंडवाकर मजदूरी करने ...लेकिन खबर यही बनती है कि विस्फोट में नत्था ही मर गया । सारा मसाला खत्म चैनल वाले के लिये ...ओवी और चैनलों के काफिले दिल्ली कूच कर जाते है ..मोहतरमा सबसे अंत में निकलती है और अपने सहयोगियों से पूछती है ...राकेश कहां है ...वो फोन भी रिसीव नही कर रहा है। गाडी में बैठती है और वो भी वापस दिल्ली स्टूडियो कूच कर जाती है । दिल्ली के पत्रकारों को स्ट्रिंगर कहे जाने वाले ये जीव उनकी ओर आशा और विश्वास भरी नजरों से देखते है ..सोचते है हरि मिल गया ..अब भवसागर पार कर जायेंगे ......लेकिन काम निकलने के बाद यही दिल्ली वाले पत्रकार उस जीव का फोन भी नही रिसीव करते....हां उसके विजुवल्स पर नक्सल बगैरह की स्टोरी बना डालते है ....और दिल्ली की झाडियों के बीच भाव भंगिमाएं बनाकर एक पीटूसी पेल डालते है । ...चैनल पर चलता है ..गुमला के जंगलों से कुमार दीपक की ये एक्सक्लूसिव रिपोर्ट ..........

Tuesday, May 11, 2010

क्यूंकि मैं दूरदर्शन में हूं ।

हमारा दोस्त आशुतोष पाण्डेय है । दून में पढा है ..स्मार्ट भी है सिर्फ दिखने में ही नही बल्कि अपनी काबलियत से भी । कुछ दिन पहले वो एक साक्षात्कार में गया ..अंग्रेजी के लब्धप्रतिष्ठित चैनल में ..इंटरव्यू में उसके सामने थे उस चैनल के प्राइम टाइम एंकर या समझलिजीये बौस । सारे प्रश्नों का बेबाक उत्तर देने के बाबजूद उसे बताया गया कि आप दूरदर्शन में है इसलिये खबरें निकाल पाना आपके बस में नही है । आशुतोष ने मुझे बताया कि क्या खबरें निकालना सिर्फ निजी चैनलों के ही बस का है ? खबरें हम दिखाते है और हमारे चैनल के लोग मेहनत भी करते है हम खबरों में मसाले का छौंक नही दे पाते है ..उसे सनसनिखेज नही बना पा पाते है ..हम टी आरपी के खेल से भी अलग है ...हम थोडा पिछे रह जाते है लेकिन खबर पक्की जब तक नही हो जाये नही दिखा पाते है । खबरों के छौंक का एक छोटा उदाहरण हम आपसे शेयर करना चाहते है । भारत अमरीका परमाणु करार के मामले में राजनीतिक सरगर्मीयां अपने चरम पर थी । वाम पार्टियों का एक छोटा सा मूवमेंट भी खबर का एक अहम हिस्सा बन चुका था । एक शाम खबर आयी कि प्रकाश करात १० जनपथ में कांग्रेस अध्यक्ष से मिलने आ रहे है । १० जनपथ में उस समय संतन की भीड जुट गयी थी पूरे लाव लश्कर के साथ । तमाम तरह के लाइव इनपुट चैनल के महान रिपोर्टर अपने संस्थान के लिये कर रहे थे । ६ बजे का समय शायद निर्धारित था सीपीएम महासचिव का कांग्रेस अध्यक्ष से मिलने का । ९ बज गये थे ..लेकिन प्रकाश करात का कोइ अता पता नही था । प्राइम टाइम में एक लाइव इनपुट बडे चैनल के बडे रिपोर्टर ने शुरु किया । एंकर ने पूछा लेटेस्ट अपडेट बताइये । रिपोर्टर ने अपने स्पीच में जोरे बाजू का इस्तेमाल करते हुये ब्रेकिंग खबर दिया कि प्रकाश करात आये तो थे कांग्रेस अध्यक्ष से मिलने लेकिन वो पिछले दरवाजे से आये और मैडम सोनिया गांधी से मिलकर चले गये । रात के ११ बज गये थे सारे चैनलों ने वाइंड अप कर लिया । हम भी वाइंड अप हो गये । उस दिन मुझे पता चला दूरदर्शन और निजी चैनल का फर्क । मैने सोचा कि इस रिपोर्टर को शायद प्रकाश करात ने ही बताया होगा कि भइया हम पिछले दरवाजे से मिलकर चले गये । खबरों की खबर रखने वाले से हमारा क्या मुकाबला । बात आयी गयी हो गइ .. एक दिन के बाद प्रकाश करात की गोपालन भवन में पीसी थी । सारे अखबारनवीस और चैनल के बडे बडे रिपोर्टर पहुंचे थे । पीसी के बाद सवाल जबाब का सिलसिला शुरु हुआ। सब लोग थक गये अपने अपने सवाल पूछ कर ..मसलन आप लोग भौंकते है काटते नही ...बगैरह वगैरह । मुझे तो पिछला दरवाजा वाला सवाल दिमाग में घूम रहा था । मैने पूछ दिया कि कल आप १० जनपथ में पिछले दरवाजे से कांग्रेस अध्यक्ष से मिलने गये कृप्या आप बतायें एटमी करार पर क्या बात हुइ । प्रकाश करात ने कहा कि मैं कल दिल्ली में था ही नही । मैने अपना माथा पीट लिये । तब मुझे अहसास हुआ कि आखिर खबरों के निकालने की तरकीब क्या होती है । हाल ही में एक दिन गोपालन भवन में हरिकिशन सिंह सुरजीत पर एक बुकलेट का विमोचन था प्रकाश करात , सीताराम तथा कामरेड सुरजीत की पत्नी भी उपस्थित थी । इसी बीच हमारे दूरदर्शन के एक पत्रकार दोस्त ने फोन किया कि आलोक जी कानू सन्याल ने आत्म हत्या कर ली है हो सके तो इसपर एक बाइट ले लिजीये । निजी चैनल के एक बडे रिपोर्टर से हमने वह बात उन्हे कही कि प्लीज ये सवाल पूछिये ...उन्होने कहा कि हु इज कानू सान्याल ? दोस्तों तों वो बीट रिपोर्टर थे उसमें भी बडे चैनल के । यहां आप कतइ ये नही समझेंगे कि मैं अपनी शेखी बघार रहा हूं ... अरे हम तो रिपोर्टर कहलाने के तो काबिल ही नही है ...इसलिये कि दूरदर्शन में है ।


Tuesday, March 23, 2010

भूत पड गया लालाजी के चक्कर में - एक लोककथा


कायस्थ लोग कलम के तेज या कहे धनी होते है । बिहार में कहावत है कि क्षत्रिय के तलवार के धार से भी बडी धार होती है लालाजी के कलम में । लाला जी की नयी नयी शादी हुयी थी । पढे लिखे थे लेकिन कहीं नौकरी नही थी । एक आध साल के बाद उनकी धर्मपत्नी लगीं लाला जी को कोसने । रोज उलाहना देती कि बाबूजी कइसन करमकीट से वियाह कर दिहलन । पत्नी का ताना सुनते सुनते लाला जी परेशान हो उठे । एक दिन अपना कलम दावात उठाया और सोचे कि चलो नही कहीं कुछ रोजगार मिला तो बच्चों को पढाकर छोटा मोटा स्कूल खोल देंगे । अहले सुबह अपने घर का त्याग कर निकल पडे रोजगार की तलाश में । गर्मी का दिन था । चलते चलते भरी दुपहरिया में लाला जी पसीने पसीने हो गये । सुकुमार तो थे ही । दोपहर में एक पेड के निचे घर से बंधे हुये पोटली का खाना खाया । पेड की छांव में लालाजी को निंद आ गयी । खर्राटे लेकर सो गये । वह पेड भूतों का बसेरा था । शाम हुइ भूत जब लौटकर पेड पर वापस आये तो देखा कि एक आदमी सो रहा है । भूतों के तो पौ बारह हो गये उनमें से एक नौजवान भूत ने कहा ..अहा ..आज तो इंसान का ताजा खून पीने के लिये मिलेगा । तभी एक बुजुर्ग भूत ने अपने साथियों को समझाया ...अरे सब जानते है कि यह पेड भूतों का बसेरा है ..यहां तो कोइ इंसान दिन में भी नही फटकता । जरुर कोइ असाधारण इंसान है । बुजुर्ग भूत ने लालाजी को जगाया । लालालाजी की निंद टूटी तो आसपास भूतों के काफिले को देखकर उनके तो प्राण ही सूख गये । लालाजी ने सोचा मरना तो है ही क्यूं ना कुछ अक्ल का इस्तेमाल किया जाये । बुजुर्ग भूत ने लाला जी को डपटते हुये पूछा ..अरे इंसान के बच्चे तुम कौन हो ..तुम्हें डर नही लगा कि ये पेड भूतों का बसेरा है । लालाजी ने हिम्मत का प्रदर्शन करते हुये कहा ..हमें क्यूं डर लगेगा तुम लोग अब अपनी सोचों । बुजुर्ग भूत थोडा सहमा और बोला ..आखिर क्यूं ..। लालाजी ने कहा कि मैं इंद्र देवता का क्लर्क हूं ..मुझे देवता ने यहां भेजा है कि जाओ धरती पर और इस पेड के निचे रहने वाले भूतों का सर्वे करो । ये भूत निकम्मे और कामचोर है पूरी गिनती कर जल्द ही इन्हें खेतों में काम पर लगाओ। बुजुर्ग भूत ने लालाजी के पांव पकड लिये । हे किरानी महाराज सदियों से हमलोग स्वच्छंद जीवन जीते आये है । हमें ऐसी सजा नही दिजीये । ले देकर मामला रफा दफा किजीये । आप जो कहें हम करने के लिये तैयार है । लालाजी ने मन ही मन सोचा कि तीर सही निशाने पर लगा है । ठिक है देवता तो हम पर पूरा विश्वास करते है । चलिये रोज २० क्विंटल अनाज घर पहुंचा दिजीये मैं इस मामले को अपने रिस्क पर सुलझाने की कोशिश करता हूं। लालाजी घर लौट आये । बस अगले दिन से रोज २० क्विंटल अनाज लाला जी के घर रोज पहुंचने लगा । लालाइन को भी लगा कि बाप रे बाप हम झूठ ही अपने मर्दाना की काबलियत पर शक करते थे । लालाजी के घर अब खुशियों की बारिश होने लगी । यह सब देखकर लालाजी के पडोसी व्यापारी भाइ को नही सुहाया । सोचा कि लाला जी कि इस सफलता के पिछे क्या राज है ? व्यापारी ने अपनी पत्नी को जासूस बनाकर लालाइन से इसका भेद जानने के लालाजी के घर भेजा । लालाइन सीधी साधी थी सारा राज व्यापारी की पत्नी को बता दिया । व्यापारी ने सोचा अच्छा बेटा तो तुम्हारी सफलता का ये राज है । उसी दिन शाम को व्यापारी भाइ चल दिये उस भूतों वाले पेड के निचे । जानबूझकर मटियाकर सो गये । भूत आये । व्यापारी को जगाया । व्यापारी ने वही डायलाग बोला जो लालाजी ने भूतों से कहा था । भूत एक साथ जब डपटे तो व्यापारी महोदय के प्राण सूख गये । उन्होने सच्चाइ बता दिया । भूतों ने व्यापारी की खूब पिटाइ की और दंडस्वरुप उन्हें ये कहा कि तुम लालाजी को रोज २० किलो घी दंड के रुप में पहुंचाओ । व्यापारी भाइ मान गये । जाकर लालाजी से आरजू मिन्नत की तो लाला जी ५ किलो डेली पर मान गये । अब तो लालाजी के दिन और मजे से कटने लगे । एक दिन बुजुर्ग भूत ने अपने साथियों से मंत्रणा की कि कहीं ये लालाजी हमलोगों को वेवकूफ तो नही बना रहा है । अगले दिन बुजुर्ग भूत अपना चोला बदलकर कुत्ते के भेष में लालाजी के यहां पहुंचे । लालाजी के कुत्ते का नाम गिरधारी था ..लालाजी खाना खाने के बाद अपने कुत्ते को गिरधारी आ आ करके बुलाया । संयोग से बुजुर्ग भूत का नाम भी गिरधारी था । उसकी तो सिट्टी पिट्टी गुम । कुत्ते का भेष त्यागकर बुजुर्ग भूत लालाजी के चरणों में गिर पडा । हे किरानी महाराज मुझे माफ कर दिजीये मैने बेवजह आप पर शक किया । लालाजी को समझ में आ गया कि भाग्य ने गेंद तो फिर मेरे पाले में फेंक दिया है । लालाजी ने बुजुर्ग भूत से कहा देखो भाइ तुम्हें तो इसके लिये मुझे कडी से कडी दंड देनी चाहिये लेकिन चलो मैं तुम्हें बक्श देता हूं । हां तुम ऐसा करों कि रात में तुमलोगो मेरे गोदाम में आओं और जो कच्चा अनाज तुम लोग दे आते हो उसकी रोज पिसाइ करों । बुजुर्ग भूत ने एवमअस्तु कहा और वापस अपने पेड की ओर लौट आया ।

Friday, March 19, 2010

नजर सुरक्षा चक्र -- इलाज से बढिया ऐहतियात बरतें


नाम- मिसेज देसाइ ...राजस्थान की रहने वाली ..इनके पति बहुत बडे व्यवसायी है । दस साल पहले इनकी बर्तन की एक छो‍टी सी दूकान थी । अपनी मेहनत और कर्म के बलबूते आज इनकी बर्तन की तीन तीन बडी फैक्टरियाँ है । सब कुछ ठिक ठाक चल रहा था । एक दिन इनकी चाची सास इनके घर आ गयी ..बस बोलना शुर किया ..बाप रे बाप कितनी तरक्की तूने कर ली है ..ऐसा व्यापार ..इतने पैसे ..तेरी पत्नी के इतने गहने ..और एक मेरे पति जो सिर्फ गवांना जानते है बनाना नही । तभी चाची की दोनो आंखों से चिंगारी निकली ( ठिक वैसा ही जिस तरह रामायण सीरियल में राम के वाण चलने के बाद रावण तक पहुंचते पहुंचते ( रे यानि किरण का रुप लेकर पहुंचती थी ) और उसके बाद मिस्टर देसाइ की आँखो मे जाकर चुभ गयी । एक स्पेशल इफैक्ट होता है और मिस्टर देसाइ के शरीर का अग्र भाग बिल्कुल लाल हो जाता है । बस क्या था ..उसी दिन से मिस्टर देसाइ उखडे उखडे रहने लगे । धीरे धीरे उनका व्यापार भी उजडने लगा । पूरा परिवार परेशान हो उठा । भला हो मिसेज देसाइ का जिन्होने बिना अपनी पति के अनुमती के बगैर इस नंबर पर संपर्क किया ( ९३१२९२२६२२६) फिर एसएमेस किया ( एनएसके ५६७६७) और उसके बाद उन्हें मात्र २३७५ रुपये में मिला नजर सुरक्षा चक्र । दिव्य ऋषी संस्थान के वैग्यानिकों के द्वारा बनाया गयी एक ऐसी माला जिसके पहनने के बाद आपके इर्द गिर्द वह माला पोजीटिव एनर्जी क्रियेट करता है और आप पर डाले गये निगेटीव एनर्जी की काट करता है । माला के पहनते ही मिस्टर देसाइ का जीवन ही बदल गया और उनका व्यापार भी अपने पुराने ढर्रे पर आ गया । चाची सास आज भी उनके पास आती है और निगेटीव एनर्जी क्रियेट करती है लेकिन वाह रे नजर सुरक्षा चक्र का कमाल ..समझिये नजर लगानेवाली की ऐसी तैसी । पुणे की रहनेवाली पेशे से शिक्षिका बरखा गुप्ता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ उनकी भाभी ने बरखा की शादी काट दी । नजर सुरक्षा का लाकेट पहनते ही उनकी भी दुनिया बदल गयी । महामंत्रों के जाप इस लाकेट में इनबिल्ट है । नजर सुरक्षा ही है आपके भाग्य की चाबी ..और हां ३० दिनों के अंदर इस लाकेट ने अपना काम नही किया तो कंपनी आपसे ली हुइ सहयोग राशी भी वापस कर देगी । जल्दी किजीये क्या पता कोइ बुरी नजर आपका पिछा कर रही है । बचपन में हमारी मां नवरात्री के दिनों में हमारी नाभी पर काजल का टीका लगाती थी ...बुरी नजरों से बचाने के लिये ..गाय भैंस से दूध का व्यापार करने वाले अपने गौशाले में बंदर रखा करते है बुरी नजर से बचाने के लिये । २० साल पहले बिहार में एक अफवाह उडी कि भइया अपने घर पर पंजा छाप के लेबल की छपाइ करों नहीं तो घर की ऐसी तैसी हो जायेगी । सारे घरों पर पंजे का लेबल छप गया बुरी नजरों से बचने के लिये । कुछ वर्षों पहले अचानक गणेश जी दूध पीने लगे । हालांकि उन्हीं दिनों एक डेमों में एक प्रसीद्ध वकील ने गणेश जी को शराब भी पिला डाली । दूकानदार जब शाम को अपनी दूकान बंद करते है तो बंद शब्द का प्रयोग नही करके बढाना शब्द का उपयोग करते है । रवि शास्त्री ने अपना एकमात्र दोहरा शतक आष्ट्रेलिया के खिलाफ सिडनी में लगाया । उस मैच में जो जुराब उन्होने पहनी थी उसे लगाचार फटे चिथडे हालात में भी दस साल टोटके के तौर पर पहनते रहे ।तेंदुलकर अच्छी पारी खेलने के बाद और कपिलदेव क्रिज पर पहुंचने के पहले सूर्य भगवान को अभिनंदन करना नही भूलते । ऐसे में मेरी सलाह है आप सब टोटके को छोडकर नजर सुरक्षा चक्र को अपनाये कोइ विघ्न आपके पास नही फटकेगा ।