Tuesday, August 25, 2009

आनंद जैसी फिल्में बार बार नही बनती । पार्ट-१


गीतकार गुलजार की ७३ वीं वर्षगा‌ठ पर विभिन्न चैनल अलग स्टोरी चला रहे थे । एक चैनल में आनंद का वो गीत जिंदगी कैसी है पहेली ...चल रहा था ..पैकेज में बताया जा रहा था गुलजार का ये अमर गीत आज भी दिल की गहराइयों को छू जाता है । हकीकत है कि इस गाने के गीतकार योगेश है ..इसी फिल्म का एक और गीत कहीं दूर जब दिन ढल जाये..के लेखक भी योगेश ही है । मैने तेरे लिये ...ना जिया जाय ना ..और मौत ती एक पहेली है के गीतकार गुलजार है । हालांकि इन सभी गीतों का संगीत अमर संगीतकार सलील चौधरी ने दिया है । १९७२ में बनी इस फिल्म के सारे किरदारो को देखकर ऐसा लगता है कि वे सब हमारे और आपके बीच के हों । पहले इस फिल्म के लीड रोल के लिये महमूद और किशोर कुमार को ह्रषिकेश मुखर्जी ने चुना था । इस सिलसिले में जब ह्रषि दा किशोर कुमार के आवास पर पहुंचे तो दरवाजे पर खडे चौकीदार ने उन्हे वहां से भगा दिया । दरअसल किशोर कुमार का एक स्टेज कार्यक्रम किसी बंगाली सेठ ने करवाया था । जब पैसे की भुगतान की बात आयी तो बंगाली सेठ ने तयशुदा पैसे नही दिये । किशोर कुमार के बारे में ये सबको पता है कि वो अपने मेहनताने में से एक रुपया भी कम नही लेते थे ..यहां तक कि कटे फटे नोट भी वो स्वीकार नही करते थे । उस बंगाली सेठ से किशोर दा की मारपीट भी हो गयी थी थी । तब किशोर दा ने अपने दरबान को ये स्पस्ट आदेश दे रखा था कि किसी भी बंगाली को घर के अंदर नही घुसने देना । जैसे ही ह्रषि दा ने अपना नाम मुखर्जी बताया दरबान ने उन्हें खदेड दिया । ह्रषि दा इस घटना से इतना आहत हुये कि उन्होने निश्चय किया कि इस फिल्म में किशोर कुमार को तो कभी नही लेंगे। बाद में महमूद से भी बात नही बनीं और इस फिल्म में दो नये अदाकार अमिताभ और राजेश खन्ना को ह्रषि दा ने लिया ।बाबू मोशाय राजकपूर ऋषि दा को कहा करते थे उसी से प्रभावित होकर निर्देशक महोदय ने बाबू मोशाय का करैक्टर आनंद में रखा । बाबू मोशाय उस दौर में एक प्रतीक बन गया था राजेश खन्ना और अमिताभ के संदर्भ में ।
अगली बार आनंद से जुडी कुछ और बातें )