Friday, December 26, 2008
शोले के महाराज
हमारे एक मित्र बनारस गये थे । उन्होने एक वाक्या सुनाया ..अच्छा लगा इसलिये आपलोगों के साथ भी शेयर कर रहा हूँ। सन १९७५ में शोले फिल्म की तैयारी चल रही थी ..जिपी सिप्पी इसे एक अनोखी फिल्म बनाना चाहते थे । खैर फिल्म अनोखी बनी भी । फिल्म के सीन में उन्हें घोडों के टाप की जीवंत आवाज चाहिये थी । लोगों ने सलाह दिया कि ऐसी आवाज तो बनारस के गोदइ महाराज के ही वश में है । सिप्पी ने उस महाशय से पूछा कितना पैसा लगेगा। खैर तीन चार लाख से अधिक भी सिप्पी देने को तैयार थे । गोदइ महाराज को इत्तला दी गयी कि बंबइ के बहुत बडे फिल्म मेकर अपनी फिल्म में आपके पास तबला बजवाने के लिये आ रहे है । स्वभाव से बेहद कंजूस गोदइ महाराज तैयार बैठे थे सिप्पी के लिये । सिप्पी बनारस पहुंचकर चल दिये गोदइ महाराज के यहां । महाराज ने सिप्पी साहब को अपने ड्रांइग रुम में बिठाया । ज्यादा बिजली के बील की खपत ना हो इसलिये वहां शून्य वाट का ही बल्ब हमेशा जलता था । सिप्पी साहब ने कहा महाराज फिल्म में आपसे तबले की थाप बजवानी है । महाराज बोले कि भाइ तबला बजवाना हो तो ठिक है और अगर खंजरी बजवाना हो तो सामने किशनवा ( किशन महाराज ) रहता है चले जाओं उसके पास । सिप्पी साहब ने कहा नही महाराज हम तो आप के पास आये है जितना आपको पैसा चाहिये ले लें। महाराज ने सोचा बढिया मुल्ला फँसा है ..बोले भाइ ४० हजार लूंगा । सिप्पी साहब ने हां कर दी । महाराज को लगा कि कितना बडा मूर्ख है । तुरंत मान गया ...ठिक है भाइ मैं ट्रेन से नही प्लेन से बंबइ जायेंगे । सिप्पी साहब ने कहा कोइ बात नही । फिर अचरज में पड गये महाराज ...बोले भाइ सिप्पी ऐसा करों कि ८ आदमी के प्लेन का भाडा मुझे नकदी दे दों । नकद पैसे भी मिल गये उन्हें। महाराज ने फिर कहा कि भाइ वहां फाइव स्टार होटल में हम लोग पांच दिन रुकेंगे । सिप्पी साहब ने कहा ठिक है । महाराज ने कहा कि उसका भी भाडा नकदी दे दो। वो पैसे भी मिल गये । सिप्पी साहब चले गये बंबइ। महाराज ने कहा कि कितना बडा मूर्ख है आसानी से ठगा गया । चय समय पर उन दिनों महाराज ने अपनी टीम के साथ ट्रेन में थर्ड क्लास का टिकट कटा कर पहुंच गये मुंबइ ..वहां उनका भतीजा रहता था उसी के यहां महाराज टिक गये । अमुक दिन पर महाराज को स्टूडियों ले जाया गया । सिप्पी साहब को बताया गया कि जब महाराज ट्रायल ले आप रिकार्डिंग आन कर दिजीयेगा। महाराज अपने तबले की थाप से सुनाने लगे ...देखो एक घोडा दौडेगा तो कैसे बजेगा ..और कइ घोडे दौडेंगे तो थाप क्या होगा । खैर रियाज खत्म हुआ ..तबतक रिकार्डिंग पूरी हो चुकी थी ।महाराज बोले चलो भाइ अब रिकार्ड करों मेरा रियाज खत्म हो गया । सिप्पी साहब ने कहा कि महाराज मेरा काम हो चुका अब आप चाहें तो जा सकते है । खैर सिप्पी साहब को फिल्म में एक ही घोडे को दौडाना था तबले की थाप पर ..लेकिन महाराज के अनोखे तबले की थाप ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होने फिल्म में सामूहिक घोडे के दौडने की भी आवाज को परदे पर दिखाया ।
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2 comments:
आप इतना अच्छा लिखते हैं किआपका ब्लॉग बार बार पढने का मन करता है । चूँकि आप हिन्दी में लिखते हैं तो थोड़े प्रयास से , बीच बीच में इंग्लिश के शब्द देवनागरी में लिखने से बच सकते हैं। कुछ उलझन होती है इस प्रकार की मिश्रित भाषा पढने में। "शेयर" "क्लीयर मैंडेट""पव्लिक "जैसे शब्दों के हिन्दी पर्यायवाची आप अवश्य ही जानते हैं फिर क्योँ ऐसी खिचडी भाषा का प्रयोग करें- अगर नहीं तो फिर उन शब्दों को roman script में ही लिखें, पढ़ना आसन होगा ? इसी तरह कभी कभी वर्तनी की भी गलती होती है , शायद google trasliteration की वजह से ।
किस्सा रोचक है, बेशक। क्या ही अच्छा होता कि यह सिप्पी-कैम्प या गोदई महाराज-कैम्प की ओर से जारी होता।
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