Saturday, February 16, 2013

लेफ्ट का आखिरी किला या सरवाइवर ?


त्रिपुरा में विधानसभा चुनावों में प्रत्याशियों का भाग्य इवीएम मशीन में स्टोर्ड हो चुका है । बंगाल और केरल जैसे लेफ्ट रुल्ड स्टेट को कवर करने के बाद त्रिपुरा के राजनीतिक तापमान और मुद्दों को नजदीक से देखने का मौका मिला । शायद उत्तर पूर्व के राज्यों में इतना सभ्य , सुसंस्कृत और सुंदरता को समेटे शायद ही कोइ दूसरा राज्य हो। ६० विधानसभा सीटों वाले इस राज्य में वामफ्रंट ( सीपीएम, सीपीआइ, आरएसपी, फारवर्ड ब्लाक ) और कांग्रेसनीत गठबंधन (कांग्रेस, एनपीटी, एनसीटी ) के बीच कडा मुकाबला है । मुद्दों की अगर बात की जाये तो लेफ्ट फ्रंट का दावा है कि उसने राज्य में अशांति और गुंडागर्दी को खत्म कर इस राज्य को ना सिर्फ शांति और अमन की पटरी पर लाया बल्कि विकास का लाभ समाज के निचले पायदान पर खडे लोगों तक पहुंचाया । पिछली बार ६० में से ४९ सीटें जीतनेवाली लेफ्ट फ्रंट का आदिवासी समाज के बीच भी गहरी पकड है । इसका सबूत है कि पिछले चुनाव में एसटी के लिये सुरक्षित २० सीटों में से १९ पर वाम फ्रंट ने अपना कब्जा जमाया था । इसके अलावा केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं को लागू करने में यह राज्य ना सिर्फ नार्थ-इस्ट राज्यों में नंबर वन है बल्कि अखिल भारतीय स्तर पर भी ये राज्य टाप टेन पर है । हालांकि विपक्ष का मानना है परिवर्तन की हवा  का असर बंगाल के बाद यहां भी महसूस किया जा रहा है । कांग्रेस का कहना है कि राज्य में सिर्फ उसी का विकास हुआ जो सीपीएम के कैडर हैं । आम आदमी वहीं रहा जहां पिछले २० सालों से था । लेफ्ट की ओर से उनके केंद्रीय नेताओं ने राज्य में अपनी पार्टी के पक्ष में जोरदार प्रचार किया । वृंदा करात , सीताराम येचुरी मोहम्मद सलीम सहित मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने अपनी पार्टा के लिये खूब पसीना बहाया । वहीं कांग्रेस की ओर से केंद्रीय मंत्री दीपा दास मुंशी वित्त मंत्री चिदांबरम सहित कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी  अपनी ओर से खूब जोर लगाया । हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का प्रस्तावित दौरा रद्द होने के बाद राज्य कांग्रेस को फजीहत का सामना करना पडा । लेकिन बाद में राहुल गांधी ने ताबडतोड छः जनसभायें करके कांग्रेस के खेमें में उत्साह का संचार कर दिया । राजनीतिक पंडितों का कहना था कि अगर राहुल गांधी नही आते तो कांग्रेस का कबाडा निकल जाता । कांग्रेस के लिये सबसे परेशानी का सबब ये है कि १९८९ में उनकी सरकार यहां रही और राज्य में गुंडागर्दी और आतंक का बोलबाला रहा। इस दाग से कांग्रेसी अभी भी उबर नही पाये है और राज्य कांग्रेस ने सभाओं में कहा है कि अगर इस बार उनकी सरकार बनी तो उस गलती को दोहराया नही जाएगा । इसके अलावा लेफ्ट फ्रंट का एक और संगीन आरोप है कि कांग्रेस का गठबंधन उसी आएनपीटी से है जिसके सर्वेसर्वा बिजय रांकल कभी टीएनबी छापामार दस्ते के हेड हुआ करते थे । वहीं टीएनबी जिसने ८० और ९० के दशक में बंगाली समुदाय और आदिवासी समुदायों के बीच खून की होली खेली थी । हालांकि कांग्रेस का कहना है कि रांकल अब राजनीतिक पार्टी के हेड है और वर्तमान में विधायक भी है ।
राजनीतिक तापमान और भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है इसका फैसला आगामी २८ तारिख को हो जाएगा लेकिन एक बात तय है कि पिछले १९ बरसों से लगातार सत्ता पर काबिज लेफ्ट को गद्दी से उखाडना कांग्रेस के लिये उतना आसान नही होगा । वैसे आम हिंदुस्तान से कटे इस राज्य में आपको भी आना चाहिये । शांति और भयमुक्त वातावरण के साथ अनेकों ऐसे पर्यटक स्थल है जहां आप अपने आपको प्रकृति से काफी करीब पायेंगे ।

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