Tuesday, October 28, 2008

फिल्म इंडस्ट्री को कमजोर किजीये ..एमएनएस को जबाब मिल जाएगा ।

एम एन एस का नामलेवा कोइ नही था ..बिहार के कतिपय नेताओं ने राज को अमर कर दिया , कांग्रेस को लगता है कि राज को प्रोत्साहित करने से शिवसेना का वोट बंटेगा और आनेवाले चुनावों में कांग्रेस इसका फायदा उढा लेगी । बिहार के विद्यार्थियों के साथ जो कुछ भी मुंबइ में हुआ वह भारत की अखंडता और एकता पर हमला है । यह देश किसी के वाप की जागिर नही है और कोइ भी व्यक्ति या पार्टी संविधान से उपर नही है । सोमवार का इनकांउटर भी महाराष्ट्र पुलिस की विभत्स तस्वीर को बयां करता है । बिहार के छात्रों ने जिस प्रकार से बिहार में तांडव मचाया उसकी भी जितनी निंदा की जाए कम है । उनके उग्र होने से खासकर वैसे लोगों को खासी परेशानियों का सामना करना पडा जो बडी मशक्कत से दो महिने पहले से अपनी टिकट रिर्जव करा अपने घरों को लौट रहे थे । राज का सामना या शिवसेना का जबाब यही हो सकता है ..जितना भी औकात बिहार और यूपी के लोगों में है उसका इस्तेमाल करों और सिनेमाघरों में हिन्दी फिल्मों के प्रदर्शन पर रोक लगाओं । तालाबंदी करो सिनेमा हाल और पीवीआर में । कम से कम बिहार और यूपी में तो लोग ऐसा कर ही सकते है । फिल्म इंडस्ट्री जैसे ही रसातल की ओर जाते दिखेगी ..राज तो क्या ..रिजनल राजनीति करने वालों की महाराष्ट्र में दुकानदारी बंद हो जाएगी । वहां की स्थानिय जनता ही राज और शिवसेना को उसकी औकात बता देगी ।

4 comments:

Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " said...

सीधी- सपाट बात है, पैसे का सब खेल.
पैसा खींचो,मत करो बन्द बिहार की रेल.
बन्द बिहार की रेल,भले लोगों को दिक्कत.
राज का सिक्का ऊँचा औरजनता को दिक्कत.
कह साधक कवि,उलझ गई है देश-धर्म की बात.
पैसे का सब खेल है सीधी सपाट बात.

श्रीकांत पाराशर said...

Bhai, film industry men kewal marathi nahin hain, dusari baat yah bhi hai ki aam marathi doshi nahin hain. Rajniti se jude log aur unke gurge paisa aur post ka lalch dekar bheed ikatthi kar lete hain aur use bhadka dete hain. Desh bhar men jo marathi hain unko chahiye ki apne apne shahar men thakre ke khilaf virodh pradarshan shanti poorvak karen aur raj thakre tak yah sandesh pahunchayen ki maharashtra men jo ho raha hai usse desh ke anya bhagon me rah rahe marathi nishane par aasakte hain. agar unko kuchh bhi hua to uske liye thakre bandhu jimmedar honge. kya sare marathiyon ki roji roti ka intzam maharashtra men karne ke liye thakre saksham hain? aag lagana aasan hai, use bujhane men hath bhi jal sakte hain, raj thakre yah nahin samjh rahe hain.

Ek ziddi dhun said...

Priy dost, mujhe lagta hai ki thoda thande dimag se sochne kee jarurat hai.
aur ye mauka hamen apne gaddhe dekhne ka bhi ho sakta hai..

Dr. Nazar Mahmood said...

kya baat hai alok bhai
itni nafrat ke saath patrakarita samajh se dooor ki baat lagti hai,
patrakaaar ho, dono taraf dekho aur bada vision rakho, marathi bhi bharitya hi hain