Sunday, July 27, 2008

चैनल वालों को इंतजार है हरिकिशन सिंह सुरजीत की .........का ....

सीपीएम के वेटरन नेता है हरिकिशन सिंह सुरजीत । काफी दिनों से बीमार चल रहे है । उनकी हालत गंभीर है ..नोएडा के मैट्रो अस्पताल में भर्ती है । ९० के दशक के बाद की उनकी प्रत्येक गतिविधीयों का लगभग मुझे स्मरण है । लेकिन मुझे उनके पूरे जीवनक्रम की एक एक इंच की जानकारी प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।२३ मार्च १९१६ को इनका जन्म पंजाब के जालंधर बंडाला ग्राम में हुआ था। सन १९६४ से ये पार्टी के पोलित व्यूरो के सदस्य रहें । अप्रील २००८ के पार्टी कांग्रेस में इनकी गंभीर बिमारी के चलते पहली बार इन्हें पोलित व्यूरो में शामिल नही किया गया । हालांकि इन्हें पार्टी के विशेष आमंत्रीत सदस्य के रुप में केंद्रीय कमीटी में रखा गया है। सन १९३० में इन्होने भारत के स्वंत्रता आंदोलन में भगत सिंह की प्रेरणा से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की। २३ मार्च १९३१ को शहीदे आजम को अंग्रेजों ने फासी की सजा दी । उनकी पुन्यतिथी पर सुरजीत ने होशियारपुर न्यायालय के परिसर में तिरंगा फहराया उनके इस कारवाइ पर दो बार पुलीस ने उन्हें गोलियों का निशाना बनाया। उन्हें गिरफ्तार कर जब न्यायालय के सामने पेश किया गया तो इन्होने अपना नाम लंदन तोड सिंह बताया (one who breks london)। सन १९३६ में इन्होने कम्युनिष्ट पार्टी को ज्वाइन किया। अगंरेजों के खिलाफ इनकी लडाइ जारी रही। चिंगारी और दुखी दुनीया के प्रकाशन का जिम्मा अपने हाथों में लेकर अंग्रेजों से टकराव लेते रहे जिससे अंग्रेज सरकार ने इन्हें कइ बार गिरफ्तार भी किया । जब मुल्क आजाद हुआ तो ये सीपीआइ के पंजाब इकाइ के अविभाजित कम्युनिष्ट पार्टी के जेनरल सेकेरेट्री थे । मुल्क की आजादी के बाद इनकी लडाइ गरीब मेहनतकश और किसानों के वाजिब हक के लिये जारी रही । सीपीएम के वरिष्ठ नेता एके गोपालन के साथ केंद्र सरकार ने विशेष कानून बनाकर इनलोगों को गिरफ्तार किया। सन १९५० से १९५९ तक किसानों से अवैध लेवी वसूलने के सवाल पर एतेहासिक आंदोलन की इन्होने अगुवाइ की ।बाद में इन्हे अकिल भारतीय किसान सभा का जेनरल सेकेरेट्री बनाया गया । सन १९६४ में जब सीपीआइ टूटी तो सुरजीत ने अपने आपको सीपीएम के साथ रखा । उस समय जब सीपीएम के ९ पोलितब्यूरो के सदस्यों का चयन हुआ उनमें से एक सुरजीत भी थे । सन १९९२ में वे पार्टी के जेनरल सेकेरेट्री बनाये गये और सन २००५ तक इस पद पर रहकर पार्टी की सेवा करते रहे । सन १९९० की वीपी सिंह सरकार हो या १९९६ में देवेगौडा की सरकार सुरजीत ने तीसरे मोरचे के गठन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाइ । चलिये मैं आपको बता दूं कि चैनल में सुरजीत का ब्लू प्रिंट तैयार है लेकिन सुरजीत जिंदगी और मौत की लडाइ में ठिक उसी ढंग से लड रहे है जैसी जंग उन्होने अंग्रेजों के खिलाफ लडी थी । बीच में एक बार बाजपेयी जी भी बिमार पडे थे चैनल वालों ने उनके भी जीवनकाल का डाटा कम्पलीट कर दिया था । इसी जल्दीबाजी और खबरों में आगे बढने की ललक वाले चैनलों ने ने एक बार पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन के मौत की खबर गलत चला दी थी । भगवान बाजपेयी जी और सुरजीत दोनों को लंबी उमर प्रदान करें। मैनें सुरजीत के जीवन काल की छोटी कहानी आपके सामने रखा ...वक्त पर काम आ जाये चैनल वालों को रिसर्च करने की आवश्यकता नही पडेगी ।